आधी आबादी- पूरी आबादी की जननी
आधी आबादी पूरी आबादी की जननी है । पर फिर भी हर युग में इन्हें अपना स्थान बनाने और बचाये रखने में संघर्ष ही करना पड़ा है।खैर आज की परिस्थिति काफी अलग है या यों कहूं कि पहले से संतोषजनक है क्योंकि सुखद परिवर्तन हुआ है ।खैर…. संघर्ष आज भी जारी है ।
इतिहास में ऐसी कितनी ही महनायिकाएँ हुईं हैं जिन्होनें हर युग में अपनी बुद्धिमता से या अपनी कला-कर्मठता से अनूठी मिसाल कायम की है।ऐसी औरतों ने अपने चातुर्य का परिचय देते हुए अपने साहस का परचम लहराया और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनीं ।
यों तो कई नाम ज़ेहन में आते हैं पर आज मैं आपको बताउंगी अंग्रेजी उपन्यासकार जेन ऑस्टेन के बारे में… ऑस्टेन मेरी प्रिय लेखिकाओं में से एक है ।
अंग्रेज़ी कथा साहित्य में जेन आस्टिन का विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म सन् १७७५ ई. में इंग्लैंड के स्टिवेंटन नामक छोटे से गांव में हुआ था। मां-बाप के सात बच्चों में ये सबसे छोटी थीं। इनका प्राय: सारा जीवन ग्रामीण क्षेत्र के शांत वातावरण में ही बीता।सन् १८१७ में इनकी मृत्यु हुई।
जेन की शुरूआती शिक्षा उनके पिता और बड़े भाइयों द्वारा ही करवाई गई लेकिन जेन के पास अपनी किताबों का भी एक संसार था और उन्होनें पढ़ कर काफी ज्ञान अर्जित किया । सबसे ख़ास बात यह कि उनकी लेखनी में तंज या करारे कटाक्ष और ह्यूमर की भी जगह थी जो आमतौर पर पुरुषों के लेखन का विषय मानी जाती हैं। जेन को बचपन से जो पारिवारिक माहौल मिला था वह पठन- लेखन को समर्पित था।जेन की माँ लेखिका थीं,दो बड़े भाई एक कॉमिक वीकली निकलते थे- सो जेन का इसी सांचे में ढल जाना स्वाभाविक था ।
किशोरावस्था में ही जेन ने कहानियां, नाटक आदि लिखना शुरू कर दिया था।यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि उस दौर में लेखन का कार्य औरतों का काम नहीं माना जाता था। लेखन से कमाई करना तो और भी बड़ा पाप था। इसलिए जेन के शुरूआती उपन्यास छद्म नाम से छपे। उनका लिखा परिवार और दोस्तों के बीच पढ़ा जाता। यहां पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि अगर हम सोचते हैं कि पश्चिमी देशों में औरतों की परिस्थिति बेहतर थी तो गलत होगा-यह जो स्त्री-पुरुष के मध्य की खाई थी यह हर देश में थी – हर युग में थी ।
जेन आस्टिन के उपन्यासों में हमें १८वीं शताब्दी की साहित्यिक परंपरा की झलक मिलती है। विचार एवं भावक्षेत्र में संयम और नियंत्रण, जिन पर हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का संतुलन निर्भर करता है, इस क्लासिकल परंपरा की विशेषताएं थीं।दैनिक जीवन के साधारण कार्यकलाप-जो एकदम गौण से लगते हैं या जिन्हे ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता, उनके उपन्यासों की आधारभूमि है। असाधारण या प्रभावोत्पादक घटनाओं का उनमें कतई समावेश नहीं।
जेन आस्टिन की कहानियों में भावुकता है, व्यंग्य है, सटीक कटाक्ष है,प्रेम है और सामान्य जीवन से जुडी बातें हैं।तत्कालीन लिखे गए साहित्य से इत्तर है जेन की कहानियों का खाका – और यही सब सामान्य- सहज सी बातें उनकी लेखनी को औरों से विशेष बनाती है।स्त्री-पुरुष-संबंध प्रायः उनके उपन्यासों का केंद्र-बिंदु ज़रूर है, लेकिन कहानी घूमती है नायिका के इर्द गिर्द -यानी कि कहानी का मुख्य किरदार हमेशा स्त्री रही है।उनके नारी पात्रों का दृष्टिकोण इस विषय में पूर्णतया व्यावहारिक है। उनके अनुसार प्रेम की स्वाभाविक परिणति विवाह एवं सुखी दांपत्य जीवन में ही है।यह भावना दर्शाती है कि जेन विवाह की पवित्रता में विश्वास करतीं थी,लेकिन केवल सामाजिक या परम्परागत निभाव के लिए शादी करना उन्हें मंजूर नहीं था।इसलिए वे ताउम्र अविवाहित ही रहीं।
जेन आस्टिन की कहानियां समाज सुधार की प्रवृत्ति में बिलकुल नहीं थी।उनके उपन्यासों में मानव जीवन की नैसर्गिक अनुभूतियों का व्यापक दिग्दर्शन मिलता है।कला एवं रूपविधान की दृष्टि से भी उनके उपन्यास उच्च कोटि के हैं।
इंग्लैंड के ग्रामीण क्षेत्र में साधारण ढंग से जीवनयापन करते हुए वहीं के साधारण दिनचर्या से किस्से चुन कर उन्हें कहानियों में बुनने की कला जेन में थी ।शायद तभी उनकी कहानियां पाठकों से जुड़ पाईं क्योंकि वे समाज का दर्पण थीं , किरदार भी अपने आस पास के समाज से ही उठाएं है -मगर जब पात्रों को संवाद दिए तो खासकर अपनी नायिका को साहसी और सशक्त दिखाया है – क्योंकि स्त्री पुरुष के मध्य के भेद को वे मिटाना चाहती थीं।पात्रों की संरचना में उनके आस पास की तत्कालीन स्थिति की जानकारी मिलती है।अपने आसपास के साधारण जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति ही उनकी रचनाओं में मुखरित थी ।
केवल 41 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह देने वाली जेन ने उपन्यासों के जरिये अपने आस पास के समाज को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।यह एक विडंबना है कि जेन की कृतियों को उनके जाने के बाद ज्यादा प्रसिद्धी मिली। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में सेन्स एन्ड सेंसिबिलिटी, मेंसफील्ड पार्क, प्राइड एन्ड प्रिज्यूडिस, ‘एम्मा आदि शामिल हैं।अधिकाँश पर फिल्में भी बन चुकी हैं जो पाठक नेटफ्लिक्स या अन्य ओ.टी.टी. चैनल्स पर देख सकते हैं।
उनकी कहानी में स्त्री पात्रों की बड़ी ही विशेष भूमिका होती है मुख्यतः नायिकाओं की – जिस समय में उन्होनें पात्र गढ़े थे या कहानियां रचीं थीं तब उस पुरुषप्रधान समाज में औरतों की भूमिका गौण सी ही होती थी।
जेन ऑस्टेन ने अपनी नायिकाओं के माध्यम से तत्कालीन समय के सामाजिक परिवेश का बखूबी से ताना बाना बना है।उस समय औरतों को किन दुविधाओं का सामना करना पड़ता था -पारिवारिक समस्याएं-शिक्षा- शादी …अगर आप इनकी नायिकाओं की पात्र संरचना का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि नायिका भावुक तो होती थी मगर साथ ही बड़ी पढ़ी लिखी-खुले विचारों वाली भी , वह समझदारी से अपनी समस्याओं का निदान करती थी।गौर कीजियेगा कि कहीं भी आप किसी काम काजी महिला का ज़िक्र नहीं पाएंगे..महिलाओं का ज़्यादा पढ़ लिख जाना या काम करने पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह ही लगा है।ऐसे माहौल में जेन ऑस्टेन -स्त्री होते हुए भी इतनी सफल लेखिका के रूप में आगे आईं मगर कहीं न कहीं सामाजिक स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए उन्होनें छद्म नाम अपनाया और खूब ख्याति पायी ।
यह दर्शाता है कि उनमें आगे बढ़ने की कितनी ललक थी और उन्होनें पुरज़ोर कोशिश की तभी आज अपनी कहानियों के माध्यम से वे आधी आबादी की प्रेरणास्रोत बनीं।जेन ने सदा अपने किरदारों के माध्यम से अपनी बात सामने रखी है – सामाजिक ऊंच-नीच को मुखरित भी किया है , प्रश्न भी उठाये हैं ,और अपनी नायिकाओं के ज़रिये औरतों के आत्मसम्मान की रेखा भी खींची है।
उनकी नायिका अक्सर पढ़ी लिखी , सुलझे विचारों की सशक्त महिला होती है -अब भले ही हम उनके बहुचर्चित उपन्यास ‘प्राइड एंड प्रेज्यूडिस ‘ की लिज़्ज़ी (एलिज़ाबेथ ) की बात करें जो बहुत ही बोल्ड एंड ब्यूटीफुल है- हालांकि लिज़्ज़ी बड़े ही साधारण परिवेश से सम्बन्ध रखती हैं पर वाक् चातुर्य और आत्मविश्वास से सबकी धज्जियाँ उड़ा सकती है ।उसे पता है कि वह क्या चाहती है या फिर बात करें ‘सेंस एंड सेंसिबिलिटी’ की एलिनोर की– नायिकाएं सामाजिक परिस्थिति से जूझती हैं पर हार नहीं मानती और आत्मबल ऊंचा रखती हैं – सामाजिक बंधन में जकड़ी ,हौसला रखती स्त्री के स्वरों को मुखरित करना जेन की कहानियों में प्रमुख स्थान पाता है।
सामान्य जन जीवन से जुड़ीं असामान्य पात्रों की रचना करने का अद्भुत समावेश है जेन की लेखनी में।
साथ ही इस तथ्य पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि जो निर्बल स्त्रियां रही होंगी या यों कहूं जो समाज-भीरु रहीं होंगी उनको भी लेखिका ने अपनी कहानियों में -अपने किरदारों में जगह दी है । उस समय पुरुष-संचालित समाज में औरतों का क्या स्थान था,क्यों स्त्री हमेशा अपने पिता,भाई,पति या पुत्र पर निर्भर होती थी -यह सब लेखिका ने अपनी कहानियों में पिरोकर दिखाया है – यहां पर आप शार्लेट (प्राइड एंड प्रेज्यूडिस ) को याद कर सकते है जो गरीब घर से आती है और सिर्फ इसलिए मिस्टर कॉलिंस से विवाह कर लेती है क्योंकि उसे पता है कि वह न ही सुन्दर है और न ही ज़्यादा पढ़ी लिखी,न ही उसमें सखी एलिज़ाबेथ जितना साहस है।उसकी कॉलिंस से शादी मात्र एक समझौता होती है पर यहां पर भी जेन ने शार्लेट को प्रैक्टिकल ही दिखाया है कि वक़्त रहते उसने शादी कर ली ।
कहने का तात्पर्य यह है कि जेन की कहानियों में स्त्री किरदार बहुत ही शोषित/पीड़ित नहीं दिखाया गया है । कई किरदारों में मुझे लगता है कि कथा शिल्पी ने कथानक में स्वयं को ही नायिका का रूप दिया है और अपने विचारों को आज़ाद ख्याल वाली नायिका के द्वारा दिखाया है।
वर्तमान समय में जेन के उपन्यास विश्वविख्यात हैं और बहुचर्चित भी – अपनी कहानियों के माध्यम से जो संकल्प जेन ने उठाया था वह आज नारी सशक्तिकरण का परचम बन कर लहरा रहा है ।
मेरा निजी मत है कि जेन ने अपनी मनःस्थिति का चित्रण अपनी नायिकाओं द्वारा किया होगा -जेन की सोच-उनकी विचार शैली अपने समय से काफी उन्नत व निर्भीक रही है-यही देखने मिलता है उनकी नायिका में ।
नमन है उनकी सोच,उनकी लेखनी व उनके अदम्य साहस को ।
अनु बाफना
दुबई,यू.ए.ई
लेखक परिचय:-
पेशे से कॉर्पोरेट ट्रेनर अनु बाफना अपनी कंपनी की निदेशक हैं और वर्तमान में दुबई में प्रवास करती हैं ।
साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर इनकी कलम चली है-हिंदी व अंग्रेज़ी- दोनों भाषाओं में निर्बाध लिखती हैं ।हिंदी में दो संग्रह आ चुके हैं और कई साझा संकलनों का भी हिस्सा रही हैं।’यू.ए.ई’से प्रकाशित पत्रिका ‘अनन्य’ की सह-सम्पादिका हैं। भारत,केन्या व दुबई के मंचों पर और वहां स्थित भारतीय दूतावास में भी काव्य पाठ व संचालन! विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।