जुझारू नेत्री-रोज़ा लुईज़ मक्कॉली पार्क्स

जुझारू नेत्री-रोज़ा लुईज़ मक्कॉली पार्क्स

रोज़ा लुईज़ मक्कॉली पार्क्स (4 फ़रवरी 1913 – 24 अक्टूबर 2005) अफ़्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्त्ता थीं जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस ने “द फ़र्स्ट लेडी ऑफ़ सिविल राइट्स” (नागरिक अधिकारों की पहली औरत) और “द मदर ऑफ़ द फ्रीडम मूवमेंट” (आज़ादी लहर की माँ) नामों से पुकारा।

रोजा पार्क्स का जन्म 4 फरवरी 1913 को टस्कजी, अलबामा अमेरिका में हुआ था। उनकी माँ लियोना एडवर्ड्स मिक कोहली एक स्कूल टीचर थी। रोजा के पिता जेम्स मिकोली पेशे से एक कारपेंटर थे और घर निर्माण का काम करते थे। रोजा के पूर्वज गुलाम थे।

रोजा के जन्म के तुरंत बाद उनका परिवार पाइन लेबल, अलबामा चला गया जहाँ वे अपने दादा दादी के साथ रहने लगे।जब रोजा सिर्फ 2 साल की थी तब उसके छोटे भाई सिल्वेस्टर का जन्म हुआ। उसके बाद रोजा के पिता काम की तलाश में घर छोड़कर चले गए। बड़े होते समय रोजा ने अपने पिता को बहुत कम ही देखा।रोजा जब छोटी थी तब अफ्रीकन अमेरिकन अश्वेत लोगों के खिलाफ़ रंग भेद बहुत आम बात थी।“जिम क्रो” कानून ने रंगभेद को बढ़ावा दिया। श्वेत और गोरे लोगों की व्यवस्था बसों, ट्रेन्स, पार्क्स, पीने के पानी के नल, चर्च, होटल, सिनेमाघर और रेस्टोरेंट में अलग रखी जाती थी।यहाँ तक अमेरिकी फौज में भी रंगभेद का भयंकर बोलबाला था।

जब रोजा पाइन लेबल में रहती थी, उस समय गोरों की सेना – ‘कू क्लक्स क्लान’ बहुत सक्रिय थी।उसके सैनिक सफेद कपड़े पहनते और अपने मुँह को एक नुकीले हूड से ढलते थे।दक्षिण के शहरों में और पूरे अमेरिका से इस समूह के सदस्य राजनीतिक इलेक्शन जीतने में उन लोगों की मदद करते थे।अफ्रीकन अमेरिकन, रोमन कैथोलिक, यहूदी और विदेशी लोगों से नफरत करते थे।आतंकी संगठन ने बहुत से अफ्रीकन अमेरिकन लोगों का कत्ल भी किये थे।रोजा की माँ ने उसे पढ़ना सिखाया। 6 साल की उम्र में रोजा ने अफ्रीकन अमेरिकन बच्चों के एक कमरे वाले स्कूल में पहली क्लास में दाखिला लिया। यह स्कूल साल में सिर्फ पांच महीने ही चलता था, जबकि गोरे बच्चों का पक्की बिल्डिंग वाला नया स्कूल साल में नौ महीने खुला रहता था।पाइन लेवल में अश्वेत बच्चों का स्कूल सिर्फ छठी कक्षा तक ही था, इसलिए रोजा को आगे की पढ़ाई के लिए मोंटगोमरी अलबामा जाना पड़ा।किसी तरह रोजा ने अपने हाई स्कूल की पढा़ई को पूरा किया।

रोजा की मुलाकात रेमंड पार्क्स नामक एक व्यक्ति से हुई।रेमंड अश्वेत लोगों की एक मुक्ति संगठन में बहुत सक्रिय था। रोजा को बहुत गर्व था कि रेमंड अश्वेत लोगों के अधिकारों के लिए लगातार अपनी आवाज बुलंद करता था। दिसंबर में रोजा और रेमंड ने शादी की।

1940 के शुरू में रोजा (NAACP) नेशनल एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल संस्था की सदस्य बनीं। यह संगठन अश्वेत लोगों के हितों के लिए और उनके साथ दुर्व्यवहार बंद करने के लिए काम करता था। पार्क्स एक लंबे अरसे से उस संस्था का सदस्य था। NAACP के सदस्य बनने के तुरंत बाद रोजा उसकी मोंटगोमरी शाखा की सेक्रेटरी चुनी गईं।

मोंटगोमरी की बसें लोगों को यह रोज़ाना याद दिलाती कि उनके शहर में रंगभेद बड़े पैमाने पर है।अश्वेत लोग बसों में सिर्फ पीछे की सीटों पर ही बैठ सकते थे।कुछ बसों में अगर अश्वेत आगे वाले दरवाजे से घुसते तो टिकट खरीदने के बाद उन्हें उतरकर दोबारा पिछले दरवाजे से चढ़ना पड़ता था।कभी कभी जब अश्वेत लोग नीचे उतरते होते तो ड्राइवर बस शुरू कर के आगे चला जाता था।

1943 में एक दिन रोजा भीड़ भरी बस में आगे वाले दरवाजे से चढ़ी। बस ड्राइवर जेम्स ब्लैक ने उन से उतरकर पिछले दरवाजे से चढ़ने को कहा। रोजा ने यह नहीं किया क्योंकि वह अब बस में चढ़ चुकी थी। पिछले दरवाजे से चढ़ नहीं पाती क्योंकि इतनी भीड़ थी कि पिछले दरवाजे से अंदर घुसना असंभव था। पर उसके बावजूद रोजा बस से उतरी पर वह फिर से चढ़ नहीं पाई।बस आगे चली गई ।रोजा को अगली बस का इंतजार करना पड़ा।

12 साल बाद 1955 में रोजा पार्क्स एक दिन फिर से जेम्स ब्लैक से मिली। उस समय रोजा मोंटगोमरी से एक डिपार्टमेंट स्टोर में एक टेलर की असिस्टेंट थीं। वह काम खत्म करके घर लौट रही थीं। वह क्लीवलैंड एवेन्यु से बस पकड़ी और बस के मध्य भाग में बैठ गयी।अश्वेत लोगों को बस के मध्य और पिछले भाग में बैठने की इजाजत नहीं थी, जब कोई गोरा मुसाफिर खड़ा हो।

अगले स्टॉप पर बस में कुछ गोरे मुसाफिर चढ़े और भीड़ की वजह से वह बस के बीच वाले भाग में गए जहाँ रोजा बैठी थी। ड्राइवर ने रोजा की कतार के चार अश्वेत मुसाफिरों से उठने को कहा। उसमें से तीन तो उठ गए पर रोजा पार्क्स नहीं उठी। उन्होंने गोरे मुसाफिरों के जितना बस का किराया दिया था। उन्हें पता था कि मोंटगोमरी के नियमों के अनुसार उन्हें उठना चाहिए था। पर वह यह भी जानती थी कि वह कानून भेदभाव वाला था। जब रोजा नहीं उठी तब जेम्स ब्लैक ने पुलिस को बुलाया जिसने रोजा पार्क्स को गिरफ्तार कर लिया।

दिसंबर 5 को रोजा को स्थानीय कोर्ट में पेश किया गया जहाँ उन्हें रंगभेद के कानून का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया। उन पर $10 और साथ में कोर्ट कचहरी के खर्च का जुर्माना लगा। रोजा के वकीलों ने इसे गलत निर्णय के खिलाफ़ उच्च कोर्ट में अपील की।

रोजा की गिरफ्तारी का अफ्रीकन अमेरिकन समाज के सख्त विरोध किया और दिसंबर 5 के बाद से मोंटगोमरी पब्लिक बसों पर पूर्णतः बहिष्कार किया। काम पर जाने के लिए लोगों ने अन्य साधन अपनाए। कुछ लोग फैक्टरी और ऑफिस साइकिल पर गए। उन्होंने अक्सर लंबी यात्राएं पैदल ही तय की।

बस बहिष्कार के मुहिम की अगुवाई डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने की। वह डेक्सटर अवेन्यू बापटिस्ट चर्च के नए युवा पादरी थे। 5 दिसंबर की शाम को किंग ने एक विशाल जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने लोगों के बहिष्कार का कारण समझाया । उन्होंने कहा, ” एक समय आता है जब लोग अत्याचारों से तंग आ जाते हैं, आज शाम मैं अत्याचारियों से कहना चाहता हूँ कि लंबे अरसे से जुल्म सहते सहते अब हम बिलकुल थक गए हैं। हम रोज़ रोज़ बेइज्जत होने से तंग आ चुके हैं।हम अत्याचार की ठोकरें खा खाकर अस्वस्थ हो गए हैं।“

पब्लिक बसों का बहिष्कार साल भर से ज्यादा चला।उस दौरान किसी भी अश्वेत ने मोंटगोमरी अलबामा की पब्लिक बसों में सवारी नहीं की।

रोजा पार्क्स और डॉक्टर किंग समेत कई अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया।जिन लीडरों ने बस बहिष्कार का नारा दिया,उनके घरों पर बम फेंके गए।

13 नवंबर1956 को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया और पब्लिक बसों में रंगभेद को गैरकानूनी ठहराया। 31 दिसंबर को यह निर्णय जब मोंटगोमरी पहुंचा तब बसों का बहिष्कार समाप्त हुआ।

कई लोगों का मानना है कि अमेरिका में सभी लोगों के लिए समान अधिकारों की लड़ाई रोजा पार्क्स की गिरफ्तारी के बाद ही शुरू हुई।मई में सुप्रीम कोर्ट ने एक और निर्णय लिया और अश्वेत और गोरे बच्चों के लिये अलग अलग स्कूलों को भी गलत और गैरकानूनी ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पब्लिक बसों और स्कूलों में तो रंगभेद बंद हुआ पर उसके बावजूद अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव चलता रहा।नागरिक अधिकारों की लड़ाई के कई मोर्चे और रैलियों में रोजा पार्क्स ने भाग लिया।

रोज़ा पार्क्स को टेलीफोन पर तमाम धमकियों मिलती थीं। उनका परिवार उनकी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित था।रोजा और रेमंड रोजा की माँ के साथ मोंटगोमरी छोड़कर डेंड्राइट मिशीगन चले गए।

1965 में रोजा ने अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधि जॉन कोनयर्स के डेटराइट ऑफिस में काम करना शुरू किया| रोजा ने अपने काम के दौरान बहुत से अश्वेत लोगों की मदद की ।

1970 दशक रोजा पार्क्स के लिए मुश्किल भरे थे| लंबी बीमारी के बाद उनके पति का देहांत हुआ। इसके बाद कुछ समय बाद उसके भाई सिल्वेस्टर भी गुजर गए और फिर रोजा की माँ भी चल बसी।

1987 में रोजा ने ‘रोजा एंड रेमंड पार्क्स इंस्टीट्यूट फॉर सेल्फ डेवलपमेंट’ स्थापित की। इस संस्था ने बहुत से युवा लोगों को उनकी पढ़ाई पूरी करने में मदद दी।

रोजा पार्क्स को अक्सर ‘नागरिक अधिकार आंदोलन की जननी’ माना जाता है और उनका आंदोलन अमेरिका में कई जरूरी सुधार व प्रगतिशील परिवर्तन लाया।अब अमेरिका में किसी भी व्यक्ति के साथ उनकी नस्ल, रंग, धर्म, नागरिकता के आधार पर किसी भी होटल, रेस्टोरेंट या कार्यस्थल पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। हर एक नागरिक का वोट देने का अधिकार भी पूरी तरह सुरक्षित है।

सेवानिवृत्ति के बाद, पार्क्स ने अपनी आत्मकथा लिखी और इस बात पर ज़ोर देना ज़ारी रखा कि न्याय के लिए संघर्ष में अभी और काम करना है।पार्क्स को राष्ट्रीय मान्यता मिली, जिसमें NAACP का 1979 का स्पिंगर्न मेडल, प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम, कांग्रेसनल गोल्ड मेडल और यूनाइटेड स्टेट्स कैपिटल के नेशनल स्टैच्यूरी हॉल में एक मरणोपरांत प्रतिमा शामिल है। 2005 में उनकी मृत्यु के बाद, वह कैपिटल रोटुंडा में “लाई इन ऑनर” से सम्मानित होने वाली पहली महिला थीं। कैलिफोर्निया और मिज़ूरी 4 फरवरी को उनके जन्मदिन पर रोजा पार्क्स दिवस मनाते हैं,जबकि ओहायो, औरिगन और टेक्सस 1दिसंबर को उनकी गिरफ्तारी की सालगिरह मनाते हैं।

सुमन त्रिपाठी

लेखक परिचय…..

लेखिका पुरुलिया ,पश्चिम बंगाल में निवासी हैं और पेशे से शिक्षिका।इनकी कविताएं एवं कहानियां अमर उजाला, गृहस्वामिनी , कत्यूरी मानसरोवर,धर्म युद्ध, इंडिया गैप्स टुडे, जन प्रवाह, सरस्वती प्रेम इत्यादि में प्रकाशित हुई हैं।

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