फ्रांस की वीरांगना – जोन ऑफ़ आर्क

फ्रांस की वीरांगना – जोन ऑफ़ आर्क

अमेरिका के प्रेसीडेंट रूजवेल्ट ने एक बार अपने भाषण में कहा था “महिलाएँ देश की सम्पदा हैं। उनकी भलाई देश की भलाई है। यदि वे दुर्बल हैं तो देश दुर्बल है।”

इस बात की पुष्टि मुंशी प्रेमचंद ने भी किया है – “किसी भी देश का विकास और खुशहाली उसके उन युवा बच्चों पर आधारित है जिन्हें पुरुष नहीं बल्कि माताएँ बनाती हैं। वे पुरुषों से किसी बात में कम नहीं, उनका सच्चा उत्साह, देशभक्ति, स्वाभिमान, पवित्रता, सहानुभूति और अन्य गुण पूजा के योग्य हैं। उदाहरण स्वरुप – अहिल्याबाई, रानी पद्मिनी, रज़िया सुल्तान, चाँद बीबी, नूरजहां, झाँसी की रानी इत्यादि कई ऐसी वीरांगनाएँ हैं जिन्होंने मरना पसंद किया पर मरते दम तक जन्मभूमि पर आँच नहीं आने दिया। इतिहास इसका साक्षी है।

फ्रांस की वीरांगना “जोन ऑफ आर्क” भी विश्व इतिहास की एक कड़ी हैं। जिस समय फ्रांस और इंग्लैंड शतवर्षीय युद्ध में व्यस्त थे जो एडवड तृतीय के युग में सन् १३२८ ई० में प्रारम्भ हुआ था और जो सन् १४५३ में हेनरी षष्ठ के युग में समाप्त हुआ तो उस समय अंग्रेज शहर-पर-शहर जीत रहे थे और बड़े-बड़े प्रान्तों और शहरों को अधिकृत कर चुके थे।राज्य के अधिकांश भाग अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित हो चुके थे। फ्रांसवासी की दशा दयनीय थी, जनता पराजय से दुःखी थी। करीब पांच वर्ष के अन्दर ही इंग्लैंड ने लगभग समूचा फ्रांस अधिकृत कर लिया और जब ऑर्लियन्स की घेराबंदी में सफल होने को थे तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। जोन ऑफ आर्क एक देवदूत की भाँति अवतरित हुई जिसे ईश्वर ने फ्रांस की दुर्दशा पर दया करके उसके बचाव एवं सहायता के लिए भेजा था।

जोन ऑफ आर्क डोमरेमी स्थित लोरीन के एक किसान परिवार की लड़की थी।उसका जन्म १४१२ ई० में हुआ। माता-पिता ग़रीब थे।जोन के माता-पिता जैक्स डी आर्क एवं इसाबेल रोमी थे। वे मज़दूरी कर पेट पालते थे।जोन ऑफ आर्क घरेलु कार्य निबटाती, खेतों में कार्य करती, बकरियाँ भी चराती थी। उस समय अंग्रेजों का आतंक चरम पर था। आये दिन स्थानीय लोगों के घरों में आग लगा देते।वहां के लोग प्रायः कहा करते थे कि जिस फ्रांस को एक औरत ने अपने हाथों खोया है वह एक लड़की के सहारे ही स्वाधीन होगा।इसका जिक्र ब्रंस नामक फ्रांसीसी कवि ने भी किया था और यह भविष्यवाणी उस समय सच होती दिखाई देती है जब १३ वर्षीय जोन ने स्वप्न देखा की महान देवदूत जिब्राइल,संत कैथेराइन और संत मार्गरेट प्रकट होकर उसे आदेश दे रही हैं कि अपने देश को दासता से मुक्त करो,यही ईश्वर की इच्छा है।यह बात उसके मन में घर कर जाती है।

उसके अंतस में अनेक गुण विद्यमान थे, वह पुण्यात्मा थी,निडर थी,देश प्रेमी थी।वह चर्च में जाती है और प्रभु ईसा को याद कर कहती है– परमपिता मेरी मदद कर, मुझे देशभक्ति की क्षमता प्रदान कर ताकि मैं अपनी मातृभूमि को आज़ाद करा सकूं।उसकी प्रार्थना ईश्वर के दरबार में स्वीकार हो जाती है।अपने आप को वह स्फूर्त महसूस करती है।जब अपने पिता से इस विषय में बात करती है तो नकारात्मक जवाब मिलता है। वह अधिकारियों और पादरी से आग्रह करती है कि मुझे कैंप में भेजा जाये,वह ईश्वरीय आदेश को पूरा करना चाहती है।

एक दिन पिता से विरोध के बावजूद जोन, बेकुंवर जाकर राजा चार्ल्स से मिलती है और बताती है की ईश्वर ने उसे आदेश दिया है कि फ्रांस के लिए लड़ो।पर १६ वर्षीय जोन पर किसी को विश्वास नहीं होता। जनवरी १४२९ ई० में जोन एक सैन्य अधिकारी की सहायता से पुनः राजा चार्ल्स से मिलती है।अपने छह विश्वासपात्र साथियों के साथ पुरुष वेश में राजा चार्ल्स के पास जाती है और कहती है कि छिपने के बजाये बहादुरी से लड़ना अच्छा है।लेकिन राजा चार्ल्स उसकी बातों पर विश्वास करने से पहले धर्मगुरुओं और पादरियों से मुलाकात करता है।जब जोन ने उन्हें आर्लीयन्स पर विजय पाने की भविष्यवाणी की और उसने अपनी दैवीय शक्ति से कैथरीन चर्च में छिपी हुई तलवार लाने को कहा तो लोग आश्चर्यचकित रह गए, तलवार उन्हें वहीं से प्राप्त हुई।

तब राजा चार्ल्स ने उसे चढ़ाई का आदेश दिया।२७ अप्रैल १४२९ को जोन ने सैनिकों की सहायता से अचानक देववाणी सुनकर आक्रमण कर दिया।कुछ ही समय में वह आर्लीयन्स को जीत गई। वह घायल थी फिर भी राजा चार्ल्स को विजय समाचार सुनाने पहुँच गई।इस प्रकार एक-एक करके अधिकांश प्रांतों को वह अंग्रेजों से जीत कर राजा चार्ल्स को फ्रांस की गद्दी पर बैठा दिया।

इसके बाद जोन ने पेरिस को आज़ाद कराने का संकल्प लिया पर दुर्भाग्यवश वह अंग्रेज़ों के हाथों में आ गयी। इस क्रम में उसका एक भाई भी मारा गया। जोन को जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया।अंग्रेजों ने कूटनीति कर फ्रांस की जनता में जोन के प्रति भ्रान्ति फैलाई।उसे चुड़ैल, शैतानी शक्ति कहकर जनता के बीच बदनाम किया गया।उसकी वेश भूषा, पुरूष वस्त्र को लेकर उस पर कई आरोप लगे।

३० मई १४३१ को धर्मगुरुओं और पादरियों ने जोन को ज़िंदा जलाकर मारने का आदेश सुनाया।आश्चर्य की बात कि फ्रांस की जनता ने उसका साथ नहीं दिया। यही नहीं जिस राजा को उसने राजसिंहासन पर बिठाया वो भी साथ न दे सका।जोन को एक खम्भे से बांधकर उसके चारों तरफ आग लगा दी गई।वह अंतिम समय तक ईश्वर को पुकारती रही और उसका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।

२० वर्ष बाद चार्ल्स सप्तम ने उसे संत का सम्मान दिया पर तब उसका अस्तित्व समाप्त हो चुका था। उसका जीवन हमें वीरता, दृढ़ता, देशभक्ति की प्रेरणा देता है। यह संसार का कठोर सत्य है कि जोन ने फ्रांस को आज़ादी दिलाई पर उसे त्याग और बलिदान के बदले यातनाओं के सिवा कुछ न मिला।लेकिन वह अपना नाम विश्व इतिहास में दर्ज करा गयी।

सन्दर्भ ग्रन्थ

1. ‘जमाना’ के अप्रैल अंक १९०९ में प्रेमचंद की जीवनी ‘जोन ऑफ़ आर्क’

2.आज तक : जन्मदिन विशेषांक फ्रांस की वीरांगना जोन ऑफ़ आर्क, नई दिल्ली, ६ जनवरी २०१५.

डॉ विनीता कुमारी

पटना, भारत

लेखक परिचय

मनेर में जगतारिणी उच्च विद्यालय की शिक्षिका रही।साहित्य में बचपन से रुचि रही है।विद्यार्थी जीवन से ही पत्र -पत्रिकाएं पढ़ने का शौक रहा|धीरे -धीरे सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए लेखन की ओर बढ़ी। कविताएं और कहानियों का लेखन| संग्रह शीघ्र प्रकाशित होना संभावित|

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