स्वागत गणतंत्र

स्वागत गणतंत्र

स्वागतम सुमधुर नवल प्रभात,
स्वागतम नव गणतंत्र की भोर,
स्वागतम प्रथम भास्कर रश्मि,
स्वागतम पुन:, स्वागतम और।

जगा है अब मन में विश्वास,
कि सपने पूरे होंगे सकल,
कुहुक कुहकेगी कोयल कूक,
खिलेगा उपवन का हर पोर।

युवा होती जायेगी विजय,
सुगढ़ होता जायेगा तंत्र,
फैलती जायेगी मुस्कान,
विहंसता जायेगा जनतंत्र।

कल्पनाएं सब होंगी सुफल,
धारणा पर होगा व्यवहार,
होगी सद्व्यवहारों की जीत,
ओ असत्व्यवहारों की हार।

राष्ट्र का और बढ़ेगा मान,
करेगा अर्जित नव सम्मान,
गुंजेगा चहुदिश राष्ट्र का मान,
संग वीणा के अद्भुत तान।

आज के दिन सब जुट कर संग,
करें भारत मां से अनुयास,
संचरित हो जन-जन में शक्ति,
परस्पर और बढ़े विश्वास।

रह सकें मिल-जुल कर हम संग,
बिखेंरें चहुँदिश सुमधुर रंग,
रख सकें परचम की हम शान,
हो सकें इस पर हम कुर्बान।

भूल कर भेद-भाव हर एक,
करें गणतंत्र का हम अभिषेक,
गुंजाएं राष्ट्रगान की तान,
तिरंगा ऊंची भरे उड़ान।

यही है भक्ति, यही है ध्येय,
मांगते सब मिलकर यह दान,
देव दो आज यही वरदान,
राष्ट्र का अभ्युर्थित हो मान।

प्रो. सरन घई
संस्थापक
विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा

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