माँ शारदे की रहे कृपा
पीले पत्तों से
झरे गम सारे
खिली खुशियां
बन नव कलियां
आया लेकर
नव हर्ष नव उत्साह
बसन्त ये
खिली पीली सरसों
चमकी सूरज की लालिमा
खिली कोपलें कोमल कोमल
नई पत्तियों से हुआ
श्रृंगार पेड़ों का
बसंत आया बन
खुशियों भरे नव जीवन
का दूत
माँ शारदे की रहे कृपा
बरसती सदा
करते करते बारम्बार
नमन हम जोड़ हाथ
न हो कमी कोई
सोच विचारों की
बस चलती रहे कलम
बन धारा शब्दों की
आयी बसन्त ऋतु
ले खुशियों का
पैगाम
सजा जीवन यूँ
नव हर्ष से सारा
चली मध्यम मध्यम
हवा ये मतवाली
गुदगुदाती मन
सहलाती गालों
को यूँ बन मधुमास
आया बसन्त
लेकर यूँ खुशियों की
सौगत आनंद से सराबोर
है बसंत
आयी बसंत ऋतु
रहे न कोई भी
मन उदास
रंग दो उसे यूँ
नए हर्षोल्लास से
सजा दो मन का यूँ
कोना कोना।।
मीनाक्षी सुकुमारन
साहित्यकार
नोएडा