एमिली डिकेंसन – नई धारा की कवयित्री
“मै कोई भी नहीं, तुम कौन हो
क्या तुम भी, कोई नहीं हो ?
एमिली डिकेंसन की इस कविता से आशय निकाल सकते हैं कि एमिली बहुत ही अकेली और अपने जमाने में अलग किस्म की कवयित्री रही होंगी । अकेलेपन को उन्होंने अपना साथी बनाया और बहुत कम लोगों को बनाया अपना राजदार | 10 दिसम्बर 1830 में एक संभ्रांत परिवार में जन्मी एमिली डिकेंसन अमेरीका की ही नहीं विश्व की जानी मानी कवयित्रियों में एक मानी जाती हैं | यह एक आश्चर्यजनक बात है कि उन्होनें 1800 से अधिक कविताएँ लिखी लेकिन ज्यादातर कविताएँ उनके मरने के बाद ही प्रकाशित हुईं ।उनकी कविताएँ अपने समय के आगे थीं।कविताओं में शीर्षक नहीं होते थे और उस समय लिखी जाने वाली कविताओं से बहुत ही अलग थीं। छोटी पंक्तियाँ, बैलेड स्टेंजा, कोई शीर्षक नहीं ।
10 दिसम्बर 1830 को अमेरिका में जन्मी एमिली तीन भाई बहनों में दूसरे नम्बर पर थीं।एक संभ्रांत परिवार,जहाँ दादा का नाम एम्हर्स्ट कॉलेज की स्थापना से जुड़ा था,पिता एडवर्ड डिकसेंन एक वकील होने के साथ एक सत्र कांग्रेस के सदस्य थे । घर का माहौल पढाई लिखाई का था । माँ इमिली पास के शहर की थीं, कम बोलती थीं और परिवार के सदस्यों के देखरेख में ज्यादा समय बिताती थीं।एमिली को पढ़ने में रूचि थी लेकिन उन्हें धार्मिकता पसंद नहीं थी।स्कूल में लैटिन और जीव विज्ञान उनके प्रिय विषय थे।छोटी बहन लिविनिया और भाई ऑस्टिन के साथ उनका बचपन अच्छे से बीता।लेकिन
शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण उन्हें स्कूल से ज्यादा घर में ही समय बिताना पडता था।साधारण शक्ल सूरत लेकिन सफाई पसंद एमिली को बचपन से ही पत्र लिखने का शौक था।ग्यारह वर्ष की आयु से उन्होंने लिखना शुरू किया और अपनी सहेलियों को खूब पत्र लिखे।पत्र लिखने की ये आदत उनकी बनी रही और 1890 के दशकों में उनके मरने के करीब अस्सी साल बाद ये पत्र तीन अंक में प्रकाशित हुए । जिस दशकों में एमिली बडी हो रही थीं, वो एक भिन्न समय था।अमेरिका में रेलरेड बन रहे थे, आर्थिक प्रगति हो रही थी, रोमांस का
समय पनप रहा था, लोग धार्मिकता को लेकर सवाल कर रहे थे।उस माहौल में लोग सहजता से अपने आपको पहचानने का प्रयास कर रहे थे।एमिली पत्रों के माध्यम से अपने को व्यक्त करती थीं।उन सहेलियों में जेन हम्प्री और सूजन गिलबर्ट (जो कि बाद में उनके भाई ऑस्टिन की पत्नी बनी) सर्वोच्च स्थान में हैं । उन पत्रों में उपहास, हास्य के साथ साथ एक अकेलापन भी है | एमिली ने अपनी अल्पायु में हमेशा एक लड़ाई लड़ी – अकेलेपन से,बंधनों से, आधुनिक मूल्यों की स्थापना में।पूरे परिवार में वो अकेली थीं जो कि धर्म के नाम पर बलिदान से लड़ती रहीं।खुद में खुद की पहचान ढूढँती रहीं | एमिली अलग – थलग थीं और बीस वर्ष की आयु के बाद जैसे उन्होंने घर की चाहरदीवारी को अपना लिया।पचीस वर्ष की आयु में अपनी माँ की बीमारी के कारण उन्हें सामाजिक दायरों से अलग होना पडा ।
घर और बाहर के हालात ने उन्हें मजबूर किया कि वो अपने आप में सिमट जाएँ।कविताएँ तो उन्होंने बहुत लिखी और 1858 के दशक में उन्होंने अपनी लिखी हुई कविताओं को संग्रहित करना शुरू किया, 60 ऐसी सिली हुई किताबों में उनकी 1800 कविताएँ हैं जो कि करीब
आठ सालों में उन्होंने संग्रहित किया। इस तरह कविताओं के संग्रह को उन्होंने प्रकाशित नहीं किया।1863 में लिखी हुई उनकी एक कविता उनकी दुनियाँ से अलग रहने की मानसिकता को दर्शाती है । वो एक गुमनाम कवयित्री थीं । उन्हें कविताओं के प्रकाशन से ज्यादा कुछ चुनिंदा लोगों को पत्र लिखने में ज्यादा आनंद आता था |
1859 से 1862 तक में उनकी मात्र सात कविताएँ प्रकाशित हुई। उस समय के समाज में स्त्री के कर्तव्य उसके अधिकार से बड़े थे।शायद उन्होंने स्त्री के अन्य स्वरूप की परिकल्पना की थी जो कि घर – परिवार बच्चों के अलावा अपनी अलग पहचान बनाने के बारे में सोच रही हो।एमिली के किसी रोमांस के बारे में हम बहुत नहीं जानते थे लेकिन उन्हें जार्ज हेनरी गॉल्ड से थोडा रोमांटिक लगाव था।अपनी कविताएँ भी वो उनको भेजती थी |उसके बाद एक प्रेस्टीबीरियन धर्मप्रचारक से लगाव हुआ।थोड़े पत्र व्यवहार के बाद वो बंद हो गया।वो उन्हें “फिलाडेल्फिया” के नाम से याद करती हैं।अपने अकेलेपन को जो कि माँ की
बीमारी, भाभी सूजन की व्यस्तता और दुनियाँ और धर्म से बेलगाव होने के कारण अपना हथियार बना लिया।एकांतता में सहजता उनका पर्याय हो गया ।
अमेरीकी गृह युध्द के दौरान उन्होंने अपने आपको कविताओं में व्यक्त किया । इन कविताओं में मनुष्य की चाहत,उसकी कमजोरियाँ और अंदर की लड़ाई के बारे में लिखा |
एमिली की कविताओं में स्त्री की व्यथा, स्त्री की मनोस्थिति, कैसा लगता है उसे जब वह अधिकार की नहीं बल्कि सामाजिक पायदान में भी नीचे के स्तर पर होती है, के विषयों पर कलम चलाया । इस दौरान वो थॉमस हिगिन्सन के सम्पर्क में आई जो कि अपने खूबसूरत लेख लिखने के कारण प्रसिद्ध थे । महिलाओं और उनकी मनस्थिति के बारे में लिखी हुई कविताएँ उन्होंने हिगिन्सन को भेजकर उनकी राय लीं । अकेलेपन से लड़ती हुई एमिली, हिगिन्सन को अपना ‘रक्षक’ मानती हैं जिन्होंने उन्हें जिंदा रखा।लेकिन 1865 के बाद शारीरिक अस्वस्थाओं और आँखों की बीमारी के कारण उन्होने घर से निकलना ही बंद कर दिया ।
1874 में पिता के मरने के बाद उन्होंने थोड़े समय के लिए दुनियाँ से फिर से दोस्ती कर ली । कहते हैं 50 वर्ष में उन्होंने एक जज से मुहब्बत और दोस्ती कर ली थी ।
उनका यह प्रेम प्रसंग बस पत्रों और कविताओं तक सीमित रहा । कहते हैं जज ओटिस ने जब उनसे शादी की बात की तो उन्होंने कहा “नहीं दुनियाँ का सबसे असरदार शब्द है ।” उनकी ये बेबाकियत और मसखरापन उनकी सभी चिट्ठियाँ और कविताओं में दिखता है। माँ के मरने के बाद उन्होंने लिखा – “जब तक वो हमारी माँ थीं, हम उनके करीब नहीं थे।लेकिन जब वो हमारी बच्ची बन गई तो स्नेह लौट आया ।” अपनी माँ की पूरी लग्न और भक्ति से उन्होने चार वर्षों तक सेवा की।मरने के पहले वो अकेली हो गई थीं। एक-एक करके सभी साथी विदा हो रहे थे।मात्र 56 वर्ष की आयु में 15 मई 1886 में दुनिया को अलविदा कहने वाली इस एकाकी एमिली ने अपनी कविताओं से दुनियाँ को अभिभूत कर दिया।लीक से हटकर उनकी कविताएँ अपने समय से बहुत आगे थीं और इनकी कविताओं का 1950 के
दशकों में लोगों को उनके महत्व का पता चला | आज वाल्ट व्हिटमेंन के साथ ही उनको अमेरिका के दो प्रसिद्ध 19 वीं शताब्दी के कवियों की श्रेणी में रखा जाता है ।
एमिली के मरणोपरांत उनकी बहन लाविनिया ने 1890 में उनकी कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित करवाया जो कि आधुनिक कविता को एक नया आयाम देता है।आज उनकी कविताएँ डटालियन, जापानीज,जर्मन इत्यादि भाषाओं में प्रकाशित हैं । दुनिया के लिए उन्होंने अपनी कविताएँ तीन खंडो में, पत्र तीन खंडों में घरोहर के रूप में छोड़ी ।
उनकी तुलना शेक्सपीयर, सॉफो और काटोलस से की जाती है । उनका एक पत्रों का संग्रह जो कि उन्होंने अपनी भाभी सूजन को लिखा था, बहुत प्रसिद्ध है | हावर्ड और एम्हर्स्ट कॉलेज के आनलाइन संग्रह में एमिली की लिखी हुए पांडुलिपियाँ उपलब्ध है।एमिली के भाई ऑस्टिन ने उनके संबंध में लिखा है “एमिली का लिखा हुआ अपने समय से
अलग था और पाठकों को आकर्षित करता था | उनकी सोच अलग थी, वो एक चमकती रोशनी थी और उसको उन्होंने खुली छूट दे रखी थी । आज डेढ सौ वर्षो के बाद अमेरिका के साथ-साथ पूरे विश्व में उनको याद किया जाता है एक नायिका के रूप में! उसका कारण है लीक से हटकर चलने की उनकी आदत । दुनिया को उन्होंने लिखने की एक नई सृजनात्मक गति दी।थोडी अलग हटकर तो वो थीं ही । ईसाई धर्म को मानने के बावजूद चर्च से अलग-थलग रहती थीं । पिता के बहुत प्रोत्साहन ना होने के बावजूद एमिली ने अमहर्स्ट कॉलेज से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की | शादी नहीं की और अपनी आजादी के साथ जिया। विशेषतः प्रेम,धर्म, पृथकात्मकता और प्रकृति पर लिखने वाली एमिली भावनाओं को स्वच्छंद शब्दों में बाँध देती थीं।सुन्दर शब्दों का चयन और गहरी भावनाएँ , ये उनकी कविताओं की पहचान है।
“होप” पर लिखी उनकी पंक्तियाँ
“होप इज द थिंग विद फेदर”
सुंदर अभिव्यक्ति के साथ साथ एक चाहत को व्यक्त करती हैं | एमिली को सफ़ेद रंग के कपड़े पसंद थे । लेकिन लोगों से मिलना जुलना ज्यादातर पत्रों के माध्यम से होता था । आज एमिली ने बहुत ही कलाकारों को प्रेरित किया है ।
हाल में ही आई फिल्म “द पियानो”उनकी कविताओं और लेखन से प्रेरित है।कैम्पस नॉवेल “नाइट ऐँड साइलेंस’ में एमिली के कॉलेज जीवन को दर्शाया गया है । उनकी बहुत कविताएँ संगीत में ढ़लकर प्रेरणा स्त्रोत हैं आज ।
“यस्टरडे इज हिस्ट्री” इनकी बहुचर्चित कविता जो अमेरिका की चाहरदीवारी लांघकर यूरोप में बहुत प्रसिद्ध हुई थी । सहज शब्दों की जादूगरी और कम शब्दों में कमाल, एमिली की इसी खासियत की दुनिया दीवानी है । उनकी छवि भी ऐसी थी जो कि एक कौतूहल पैदा करती थी क्योंकि एक पर्दा डाल रखा था उन्होंने । “मास्टर” के नाम से उन्होंने किसी छुपे प्रेमी या कुछ कहते हैं प्रेमिका के नाम उन्होंने पत्र लिखे थे।उनके पत्र रिसर्च के विषय हैं आज।
विविध भावों को दर्शाती उनकी कविताएँ सहज हैं और भाव बदलने में माहिर।रोशनी से नहीं दृश्य से अदृश्य छोटी कविताओं में अपरम्पार सुंदरता है । एमिली खुद सतरहवीं शताब्दी की
मेटाफिजीकल सोच से प्रभावित थीं | विलियम लैक और एडगर ऐलेन पो जो कि अमेरिका के प्रसिद्ध कवि थे, एमिली उनकी कविताओं से प्रभावित थीं । दोनों ने प्रेम और मृत्यु पर लिखा है।एमिली की कविताओं ने जाने कितने कवियों और लेखकों को प्रेरणा दी हैं ।एमिली क्यों महत्वपूर्ण हैं आज भी?क्योंकि वो लीक से हटकर थीं । एमिली की लिखित
“कोई भी कायर आत्मा मेरी नहीं है” यह कविता उनके मरने पर पढी गई थी । अपने समय से आगे एक स्वतंत्र आत्मा जो कि प्यार और मृत्यु के बीच भटकती रही, उनके दर्द को समझती रही | एक “रिबेल” जो कि अलग रहकर भी अपनी पहचान बनाना चाहती थी और उसमें कामयाब भी हुई । ये एक बिडम्बना ही है कि इस गहरे व्यक्तित्व वाली महिला को केवल सफेद रंग पसंद थे जब कि उनके जीवन के कैनवास में अलग अलग रंग थे और लोगों ने उन्हें भिन्न भिन्न रंगों में देखा । शायद एक कैनवास काफी नहीं है उनको समझने के लिए।उम्मीद की यह कविता….
“अगर मै
एक भी दिल को टूटने से बचा पाऊँ
तो मैं समझूगीं
मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया”
उनको पहचानने के लिए काफी है ।
डॉ. अमिता प्रसाद
लेखिका परिचय
मूलत : बिहार के भागलपुर जिले की हैं । पढाई लिखाई पटना और दिल्ली से हुई |
1985 में आई. ए. एस. में चयनित होकर कर्नाटक राज्य में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहीं ।
हिन्दी में लेख लिखने से उन्होंने अपने लेखन की शुरूआत की थी । अभी छोटी कहानियाँ, कई विषयों पर लेख लिखती हैं । बहुत जल्दी ही अपनी कहानियों का संकलन प्रकाशित करने की कोशिश कर रही हैं । कहानी लेखन के अलावा ऐतिहासिक जगहों पर घूमने में रूचि रखती हैं ।