संदेशे आते हैं

संदेशे आते हैं

 

नव वर्ष के अनेक सन्देश मेरे मोबाईल पर दोस्तों और रिश्तेदारों के आये। सबों को यथोचित धन्यवाद ,शुभकामनाएं भेजती जा रही थी। कुछ ऐसे भी नंबर थे जो अपरिचित थे पर शुभकामनाएं ही तो दे रहा है बेचारा जो भी है यह सोच कर प्रत्युत्तर दे रही थी। अचानक एक सन्देश मिला जो नव वर्ष कि शुभकामना के साथ अधिक आत्मीयता और निकट ता का अहसास दे गया। सन्देश के नीचे लिखा नाम मुझे पुलकित कर गया। जाने क्या सोच कर मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा पर दिल के किसी कोने में इस भूले बिसरे शख्स की आवाज़ सुन ने की इच्छा हुयी

इस संदेशे को डिलीट करने को दिल तैयार नहीं था। चुपके से इस नंबर को सेव कर रख लिया। …………

कई दिन बीत गए। जीवन की आपा धापी में मैं भूल गयी कि शायद कोई अब तक अपने भेजे संदेशे के उत्तर के इंतज़ार में बैठा होगा। उसका सन्देश मेरे मोबाइल के इन बॉक्स में पड़ा पड़ा दम तोड़ रहा था। वो बेचारा मेरे प्रेम भरे संदेशे के इंतज़ार में अंतिम सांसें गिन रहा था। मैं किसी अल्हड़ तरुणी की तरह बेफिक्र अपनी ही धुन में मगन थी। ………………. उस मजनू की भी हिम्मत दूसरा सन्देश भेज कर मुझे झकझोरने की नहीं हो रही थी इसीलिए तो वो ख़ामोशी से मेरे अत्याचार को बर्दाश्त कर रहा था। गृहस्थी की जिम्मेवारियां ,नौकरी ,सामाजिक दायित्तव निभाते हुए दिल की आवाज़ सुन ने की भी फुर्सत नहीं मिली। …………।

कई महीने बाद आफिस के किसी काम से मुझे अकेले ही लखनऊ जाने का अवसर मिला। अकेली थी शायद इसलिए ,या नए शहर में किसी को जानती नहीं थी इसलिए या सिर्फ दिल की आवाज़ सुनकर मैंने कांपते हाथों से अपने मोबाइल में दबे पड़े उस इनबॉक्स के सन्देश को खोजने की कोशिश की। जाने क्यों दिल की धड़कन कुछ तेज सी हो गयी। अनजाने डर से या फिर पुराने टूटे बिखरे सम्बन्धों की याद से उंगलियां कांप रहीं थीं।बड़ी मुश्किल से अपनी बेकाबू होती हुयी उँगलियों से मैंने उस मोबाइल नंबर का काल बटन दबा दिया। ……। “हैलो “वर्षों बाद वो चिर परिचित आवाज़ सुन कर या पैंतीस वर्ष पहले टूटे रिश्ते को याद कर या फिर ख़ुशी से मेरी आँखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली ………. शब्दों ने होंठो को छूने से इंकार कर दिया। बिन कुछ कहे ही मैंने फोन रख दिया।

पैंतीस वर्षों पहले की यह आदत आज अनायास याद आ गयी। उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे। अक्सर जब उसका फोन आता और आस पास कोई बैठा होता मैं चुप चाप आवाज़ सुन कर फोन रख दिया करती। यह सिलसिला दिन में कई बार चलता। कभी रौंग नंबर कह कर मैं रख देती और कभी यूँ ही बिन कुछ कहे ही। मेरी इसी अदा पर शायद उसे प्यार आ गया था। अजीब सा मौन संवाद चलता रहता। ………. दोनों की खामोशियाँ बहुत कुछ बयान कर जाती और एक अनाम रिश्ते में हम दोनों बंधते चले गए ……। न कोई कसमें न वादे ,न ज़िन्दगी भर साथ निभाने के सपने और न ही एक दूसरे के लिए जान देने की ख्वाइश। …………. बस प्रेम का ऐसा रिश्ता ,जो न कभी बंध पाया और न जुड़ पाया। फिर इतने वर्षों बाद यह उलझन क्यूँ? ……… समझने की उम्र तो अब हुयी है। वो तो बचपना था। क्या दिल अब भी बच्चा है? उधेड़बुन में ध्यान ही नहीं रहा कि घंटी फिर बज रही है। इस बार स्वर को संयमित कर ‘हैलो ‘ कहने की बारी मेरी थी। ……… आंसुओं को धीरे से साड़ी के आँचल से पोछते हुए मैंने पूछा ‘कैसे हैं.…। ”ठीक हूँ ,खुद को चिकोटी काट कर देख रहा था शायद ……. ख्वाब है या हकीकत। ……… आज सूरज किधर निकला है। तुम तो फोन ही नहीं उठाती। …।”

जाने कितनी ख्वाइशें दिल में उठीं और कितने सवाल दिमाग में। ……… पर बिना कुछ कहे सुनती रही’ अच्छा बताओ कैसी हो ‘ . ”आपके शहर में हूँ। आफिस के कुछ काम से दो दिनों के लिए आयी थी…….”.

” अरे अरे तो पहले क्यूँ नहीं बताया मैं तुम्हें लेने आ जाता। ……”. मेरी बात को काट ते हुए कहा उसने। ……. कहाँ हो मैं अभी आता हूँ।” ……. इतनी आत्मीयता इतना अधिकार और इतनी सहजता थी उसकी बातों में। …… यह मैंने पहले कभी महसूस किया था ऐसा याद नहीं आ रहा।आँखों में आंसू बार बार आ कर मुझे हैरान परेशान कर रहे थे। मेरी आँखों में इतना पानी जाने कहाँ से आ गया। ऐसा लगता है मनो गोमती का सारा पानी यही से जाता है। बात कर थोडा मन हल्का हो गया था पर आँखें अब भी भारी थीं ………….

दिन भर के काम के बाद हम दोनों मिले थे। इतने लम्बे अंतराल के बाद मिलन। …। एकबारगी उसे मैं पहचान ही नहीं पायी थी। कच्ची उम्र का वो हीरो कहीं खो गया था ,खूबसूरत ज़ुल्फ़ों की जगह अब चाँद नज़र आने लगा था। फैशनेबल कपड़ों की जगह साधारण सी कमीज़ की उम्मीद मुझे नहीं थी। आँखों के नीचे झुर्रियों से अधेड़ उम्र लगने लगी थी। बाल भी कम थे और मूंछें भी सफेदी लिए दिख रही थीं। मेरी आँखें उस दीवाने को तलाश रहीं थीं जो सुबह शाम नए नए टी शर्ट पहन कर अपनी मोटर साईकिल से मेरे घर के तब तक चक्कर लगाता रहता जब तक मैं उसे एक झलक न दिखा दूं। जाने कौन सा काम करता था जिसमें उसे इतनी फुर्सत मिलती थी कि जिस लड़की का नाम तक उसे नहीं मालूम उसके आगे पीछे घूमता रहे। ……. एक झलक पाने के लिए रात भर तारे गिनता और दिन भर गलियों के चक्कर लगाता।

गाडी में उसके साथ आज अकेले बैठते मुझे न लोगों कि चिंता थी न समाज का दर। इस शहर में मुझे कोई नहीं जानता। इसलिए जब उसने कही लॉन्ग ड्राइव पर चलने को कहा तो मैं सहर्ष तैयार हो गयी पर पूरे रास्ते हम दोनों अपनी अपनी यादों में ही खोये रहे। ………. कभी किसी ने प्यार का इज़हार नहीं किया था पर दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित ज़रूर थे। प्यार था भी या नहीं यह मैं नहीं कह सकती। ……। यदि सिर्फ आकर्षण था तो आज इतने लम्बे अंतराल के बाद मिलन पर आंसू क्यों ? हम दोनों ही तो अपने अपने परिवार में सुखी थे। दोनों के वैवाहिक जीवन सुखमय कहे जा सकते हैं तब ईश्वर ने ये कैसा जाल बिछा दिया। ……

 

डाॅ जूही समर्पिता

झारखंड, भारत

 

 

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