इश्क करो ख़ुद से और ख़ुदा से ….

 

इश्क करो ख़ुद से और ख़ुदा से ….

 

इश्क, प्रेम का वह रूप है जिसमें कोई किसी में लीन हो जाना चाहता है …. फिर चाहे वह अपनी अंतरात्मा हो या अपना ईश्वर ! इश्क यानी प्रेम भक्ति का भी एक प्यारा रूप है जो समर्पण माँगता है तभी तो उसका सफर रूमानियत से रूहानियत की ओर होता है ।

 

प्रेम में आप यदि किसी जीव को आत्मा समझकर प्रेम करते हैं तो आप अध्यात्मिक हैं। क्योंकि अध्यात्म आत्मा से जुड़ा हुआ हैं, जहाँ अटूट विश्वास और प्रेम होता है।परमात्मा के निकट जाने का रास्ता भी प्रेम है। परमात्मा के साम्राज्य में दाखिल होने के लिए हमें ‘आध्यात्मिक प्रेम’ की आवश्यकता होती है।हमारी आत्मा में प्रेम शुरू से ही है, क्योंकि कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में आत्मा प्रेम के महासागर से एक बूंद के रूप में अलग हुई थी। प्रभु के अनंत साम्राज्य से आने के बाद हम स्थायी शांति और प्रसन्नता तब तक नहीं पा सकते, जब तक हम अपने मूल स्रोत से नहीं जुड़ जाते। आप किसी से प्रेम करते हैं तो स्वयं को उससे अधिक मानने लगते हैं। यही तो आपका समर्पण है जो स्वार्थ से पड़े होता है और तब इश्क अमर हो जाता है ।

 

अर्पणा संत सिंह के मार्गदर्शन में निकालने वाली अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका गृहस्वामिनी के इस प्यारे से अंक में सिर्फ़ इश्क़ ही इश्क़ है । इस अंक में मुझे अपनी उपस्थिति बतौर अतिथि संपादक अत्यंत सुखद है । दुनिया के कोने-कोने से इश्क़ के रंग में रंगी हुई बेहतरीन रचनायें आपके सम्मुख हैं । यहाँ प्रेम आध्यात्मिक , आत्मिक और ऐतिहासिक भी है । रचनाओं में विविधता रखने की कोशिश की गई है । आशा है हमेशा कि तरह इस अंक को भी पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा ।

 

इश्क़ होता ही है इतना प्यारा कि इसकी वजह से आपके अंदर इतने बदलाव आते हैं कि आप की विचारधारा सोच और दर्शन सब बदल जाता है ।

 

इश्क़ या प्रेम के कई स्वरूप हैं । ईश्वर से भक्ति प्रेममार्ग है। अध्यात्म ज्ञान मार्ग है। प्रेम के मार्ग में ईश्वर को पाने के लिए भक्ति और प्रेम की आवश्यकता होती है। गृहस्थ जीवन में जब पति-पत्नी एक दूसरे का वरण करते हैं तो उनमें प्रेम भाव समर्पण के कारण ही होता है ।भक्त भगवान के प्रति अपना सर्वस्व समर्पण कर देता है तभी तो वह आनंद पाता है ।

 

इश्क़ शब्द ही बहुत प्यारा और अपनेआप में बड़ा व्यापक अर्थ लिए हुए है । इसकी पगध्वनि जानी-पहचानी है और अहसास बड़ा ही सुखद है । इश्क़ में पड़ना या किसी और से इश्क हो जाने से ज़्यादा जरुरी है … ख़ुद से इश्क होना । जब आप ख़ुद से इश्क करेंगे तब सारी कायनात सुंदर दिखेगी । तब आप खुदा से इश्क़ करेंगे और फिर चारों ओर प्रेम ही प्रेम दिखेगा। प्रेम ख़ुद से , पेड़-पौधे से, पर्यावरण से, इंसानियत से और ईश्वर से ! फिर इश्क रूमानियत से रूहानियत की ओर कब कदम बढ़ा लेगी पता ही नहीं चलेगा।

 

इश्क़ के आहट पर अपने भीतर का आत्मालोचन करने की भी ज़रूरत है। सच्चा प्रेम पाने के लिए हमें अपनी आत्मा के मौन और ज़रूरत को समझना होगा।इतिहास गवाह है ऐसे कई सच्चे प्रेमियों के अमर प्रेम की। सती का प्रेम, समर्पण , त्याग और तपस्या का ही फल था तभी तो उन्हें देवों के देव महादेव पति रूप में मिले । राधा और कृष्ण के प्रेम को कौन नहीं जानता । प्रेम भी वही से परिभाषित होकर पूर्ण होती है । सीता माता और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का प्रेम तो एक आदर्श प्रेम का उदाहरण है । एक माता का अपने बच्चों के प्रति जो प्रेम होता है, वह वात्सल्य प्रेम अतुलनीय है । प्रेम है तो जीवन है और बिना प्रेम के हम जीवित रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते ।

सारिका भूषण 

कवयित्री, लेखिका एवं लघुकथाकार

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