1
स्त्री बढ़ रही है, बदल रही है
सब खुश हैं
सब
यानी समाज, पुरुष
सूचना तंत्र
इन सब मे
स्वयं स्त्री शामिल नही है
2
स्त्री बदल रही है
पुरुष खुश है
खुश है
कि वही बदल रही है
पुरुष के अनुरूप
स्त्री के अनुरूप
पुरुष को नही बदलना पड़ा
3
स्त्री का पुरुष होते जाना
स्त्री का
उधर्वगामी विकास है
स्त्री से दूर जाती स्त्री
भीतर से बेचैन है बहुत
4
एक दिन
सब तरफ होंगे
पुरुष ही पुरुष
पुरुष स्त्री को ढूंढेगा
और स्त्री देह में उसे
पुरुष मिलेगा
स्त्री भी स्त्री ढूंढेगी
और स्वयं की देह में
पुरुष गड़ा पाएगी
5
8 मार्च
पुरुष के लिए
शर्म का दिन है
कि स्त्री के लिए नही बना पाए
स्त्री जैसी दुनिया
जीने के लिए मजबूरन उसे
पुरुष होना होगा
वीरेंदर भाटिया
साहित्यकार