सौभाग्यवती रहूँ

अमर ज्योति

मैं कहां जाऊंगी
मैं तो आती रहूंगी यूहीं
सांसे टूटने तक अपनी
गुनगुनाती रहूंगी यूहीं!!
जब भी डूबने को होगा
सांझ का ये सूरज,
जुगनू बन आंगन में तेरे
टिमटिमाती रहूंगी यूहीं…
मोल नहीं मांगूंगी कभी
अपनी मोहब्बत का,
हक अदा करूंगी सदा
अपनी इस उल्फत का,
बेमोल अपने प्यार को
लुटाती रहूंगी यूहीं…
मैं कहां जाऊंगी..
हों बहारे या फिजाएं
कोई भी मौसम आए जाए,
जीवन में तेरे बन मधुबन
सुगंध फैलाती रहूंगी यूहीं..
मै कहां जाऊंगी..
हर सुख हर दुख
साथ ही बाटेंगे ,
जनम जनम का ये रिश्ता
साथ ही काटेंगे,
सात जनम का बंधन सजन
निभाती रहूंगी यूहीं..
मैं कहां जाऊंगी..
मैं चंदा नहीं मैं तारा नहीं
असमय छुप जाऊं ,
वो उजियारा नहीं
मैं तेरी अमर -ज्योति पिया,
जीवन में तेरे प्रेम- बाती बन
जगमगाती रहूंगी यूहीं..
मैं कहां जाऊंगी
मैं तो आती रहूंगी यूहीं..
सांसे टूटने तक अपनी
गुनगुनाती रहूंगी यूहीं..

अर्चना रॉय
प्राचार्या सह साहित्यकार
मांडू,रामगढ़ (झारखंड)

तीज
भादो मास
स्त्रियों का आस
संस्कारों का है वो बीज
लो आ गई हमारी तीज

उमंग और उत्साह है
श्रींगार है
सिन्दूर भरी मांग
माथे पर चमकती दमकती बिंदिया
मेहंदी से रची हथेलियाँ
कलाइयों में खनकती चूड़ियाँ
पाज़ेब और बिछुओं की रुनझुन
गूँज रही है घर अांगन

व्रत है निर्जल
ओज है मुखमंडल
पूजा है शिव पार्वती की
पति की दीर्घायु की

भक्ति के गीत
मंत्रों के उच्चारण
मन में लिए विश्वास
दृढ़ संकल्प के साथ
हम सब करते है साथ साथ

अनिता सिन्हा

सिंदूर

इक़ रंग लगा , रंग गई मैं
तन – मन की सुध खो गई मैं
एक पद चिन्हों पर चल कर
जाने दूर कितने पहुँच गई मैं
कुछ नये कुछ पुराने रिश्तों में
सिमटी – सिमटी सी रह गई मैं
“दो अंकुरित” सा बीज मिला
बन वृक्ष देखो वह तैयार हुआ
जो रंग लगा था मुझ पर वो
रंग नहीं “सिंदूर” था …. वो
लगते ही तन – मन रंग गई मैं
बस अब एक ही चाहत है
इस प्रीत की, इस मनमीत की
इस रंग भरी ही जाऊँ मैं..!
इस रंग भरी ही जाऊँ मैं..!!

प्रीति मिश्रा ” प्रीत”

 

सौभाग्यवती रहूं सदा सदा के लिए

तेरे प्रेम के सिंदूर से मेरा जीवन हो सप्तरंग
तेरे स्नेह की बिंदिया से फिले रहे मेरा मुख
तेरे विश्वास की चुडिय़ां से खनकती रही मन
तेरा मंगल होना ही मेरा मंगलसूत्र रहे
तेरी खुशियों मे मेरे पायल की छुनछुन
तेरी सफलता की खुशी से ओठ सुर्ख लाल रहे
तुझे न दुनिया की नजर लगें मेरे नयनों के काजल से
न कोई रिति रिवाज के संग
मैं तो चाहूँ तेरे संग का रंग
जब तक मैं हूँ तू रहे मेरे संग
तेरे एहसास से ही मेरे धडकनों को
गति मिले धडकता रहे दिल
तेरी ख्याहिशें ही मेरी ख्याहिशें रहे
तेरा ख्वाब ही मेरा ख्वाब रहे
तेरी खुशियां ही मेरी खुशियां रहे
तेरा गम ही मेरा गम
मेरा प्रेम बस प्रेम रहे
इस पर न चढें स्वार्थ अहंकार
जैसा कोई भी दुनिया का रंग
मैं मैं न रहूं तू हो जाऊं
अपने प्रेम से कर दे मुझे
सौभाग्यवती सदा सदा के लिए

अर्पणा संंत सिंह

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