*सिर्फ एक देह नहीं है औरत*
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” *औरत काम पे निकली थीं*
*बदन घर रख कर*
*ज़िस्म खाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे* !! “
औरत की आजादी की बात जब भी की जाती है तो एक सवाल अब भी जेहन में कौंधता है कि क्या औरत का अस्तित्व सिर्फ एक शरीर में सिमटी चीज है या इसके अन्तर्गत एक रूह एक आत्मा भी रहती है । आजादी के करीबन सत्तर साल गुजर गए पर औरतों के लिए आज भी हम एक महफूज वातावरण तैयार नहीं कर पाए । बात घर के चहारदीवारी के भीतर की हो या पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के जद्दोजहद में लगी कैरियर वुमेन की, अपने अस्तित्व की सुरक्षा का सवाल आज भी यथावत है । अब भी समाज में ऐसे बीमार मानसिकता वाले लोग हैं जिनकी नज़र में औरतें सिर्फ एक देह होती हैं, भूख मिटाने का सामान और मनोरंजन करने का बहाना होती हैं । ऐसी बीमार प्रवृत्ति ही यौन हिंसा, यौन शोषण और उत्पीड़न जैसे अपराध को जन्म देती है । यौन उत्पीड़न का मतलब ही है कि जब स्त्री को सिर्फ भोग्या मान लिया जाए । उससे शारीरिक रिश्ता बनाने के पहले उसकी सहमति की जरूरत भी न समझी जाए
गलत तरीके से महिला के अंगो को स्पर्श करना भी यौन उत्पीड़न है, साथ ही व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में तरक्की का लालच देकर औरतों का शारीरिक शोषण करना भी इसी तरह का अपराध है ।
यौन उत्पीड़न के मामले सिर्फ महिलाओं के बीच ही नहीं बल्कि बच्चों के साथ भी ऐसी दुर्घटनाएँ होती हैं । इस अपराध का शिकार होने वाला व्यक्ति समाज और परिवार के डर से अपने मुँह नहीं खोलता और अपराधी के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता है । अमूमन ऐसे मामलों में गुनाह करने वाला व्यक्ति महिला का परिचित या सगा संबंधी ही होता है । इसलिए भी महिलाएँ यौन उत्पीड़न के खिलाफ किसी को कुछ बोल नहीं पाती । दरअसल पीड़िता को इस बात की चिंता होती है कि यदि वह खुद के साथ घट रही घटनाओं को सबों के साथ साझा करेगी तो लोग उसे ही चरित्रहीन और बदनीयत समझेंगे । वो कहते हैं ना —-
” *औरत अपनी बात बताए तो भी मुजरिम होती है*
*औरत अपनी बात छुपाए तो भी मुजरिम होती है* । “
इस तरह की विकट परिस्थिति महिला को शारीरिक नुकसान तो
पहुँचाती ही है मानसिक और संवेदनात्मक रूप से भी घायल कर देती है । उसे डर होता है कि कोई उसकी पीड़ा न समझेगा और शायद उसे ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाएगा ।
सबसे पहले तो ऐसी समस्या के समाधान के लिए खुद को मजबूत बनाना चाहिए । स्वयं को सुलभ न बनाएँ और किसी से भी उतना ही सरोकार रखा जाए जितने की जरूरत हो ।जब हम बिना किसी ठोस वजह के अपरिचित से भी बातचीत कर रहे होते हैं, अक्सर घर से बाहर रहते हैं तो दूसरों की नज़र में भी हल्का लगने लगते हैं । ऐसे में यौन उत्पीड़न की संभावना जन्म लेती है ।
यौन उत्पीड़न के अधिकतर मामले महिलाओं के साथ ही होते हैं । इस तरह की समस्या की शिकायत महिलाएँ राष्ट्रीय महिला आयोग में कर सकती हैं । बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न और शोषण को रोकने के लिए भी कई विभाग बने हुए हैं और कई सामाजिक संस्थाएँ भी इस मामले को रोकने के लिए कार्य कर रही हैं
पर इस तरह के मामले में सबसे जरूरी चीज है जागरूकता और हिम्मत ।
जिस औरत के साथ इस तरह के हादसे होते हैं, वो सदमे में जा सकती है । साथ ही समाज के प्रति उसका नजरिया नकारात्मक हो सकता है । यदि उसे अपने आस-पास कोई ऐसा सदस्य नहीं दिखाई देगा तो वह आत्महत्या तक की सोच लेती है, इसलिए जरूरी है कि हम यौन शोषण का शिकार हुई महिला के साथ सहानुभूति से पेश आएँ ।
हमें पीड़िता के साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहिए कि वो सारी बातों की जानकारी हमें दे दे । उसे सँभलने का पूरा मौका दें और तब ही उससे सवाल पूछें । उन्हें कभी अकेला न छोड़ें और पूरी कोशिश करें कि महिला अपने साथ हुए हादसे को विस्मृत कर अपना ध्यान दूसरे सकारात्मक चीजों में लगाएँ । इस तरह की समस्या से निपटने के लिए ही आजकल स्कूलों में छात्राओं को ” गुड टच और बेड टच ” के बारे में जानकारी दी जाती है ताकि बच्चियों को जब भी ऐसा लगे कि कोई उसके शरीर के साथ खेलने की कोशिश कर रहा है तो वह अपने परिवार को इसकी जानकारी दे । इस तरह का अपराध करने वाले पुरूषों की मानसिकता को भी सबके सामने लाने की जरूरत है ताकि वह अन्य महिलाओं को भी शिकार न बना ले । यौन उत्पीड़न एक सामाजिक कोढ है जो औरतों को सिर्फ एक मनोरंजन की वस्तु समझता है । आज के इस दौर में जब महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही है, तो फिर यह भी जरूरी है कि वह इस तरह की बीमार सोच का विरोध करें ।
:—डॉक्टर कल्याणी कबीर
वरिष्ठ साहित्यकार और प्रिंसिपल
जे.के.एम. डिग्री कॉलेज