शहीदों के नाम
आज मौन हैं मेरे शब्द
नहीं लिखनी मुझे कोई कविता
क्या सचमुच इतने समर्थ हैं मेरे शब्द ?
इतनी सार्थक है मेरी अभिव्यक्ति / कि
रच दूँ आपके बलिदानों को सिर्फ एक
कविता में……
हाँ, नहीं लिखना मुझे अपने जज्वात
अपने अंदर उपजे असीम वेदना की लहर….
कैसे व्यक्त कर दूँ कुछ चन्द शब्दों में
आपके बच्चों की उस चीत्कार जो आपके
पार्थिव शरीर से लिपट कर गूंजी थी…
और किया था आपकी माँ ने अपनी
ममता का अंतिम श्राद्ध
क्या लिख पाऊँगी/ कि मृत्यु के पलों में भी
बह रहे थे आपकी आँखों से
देश भक्ति का प्यार / कि
आपने कहा होगा फहरा लूँ आज तिरंगे को
आखरी बार / कि
गोलियों से छिदे सीने में भर ली होगी
वतन की पवित्र मिट्टी / कि
आपने अपने कुनबे को ” हम जैसों “के
हवाले कर हो गए शहीद …
मत रोकना आज मेरे कलम से बहते रक्त…..
सचमुच व्यर्थ हैं मेरे शब्द
खोखले हैं मेरे आसूँ / जो आपकी बलिदान
का मान नहीं रख सकते ।
पर डरती हूँ कि आपकी बलिदान भी न
बना दी जाये बस एक ” टॉपिक ”
जिस पर लिखी जाती रहे …
कोई कविता , कोई कहानी या लेख…
बस इसी इंसाफ के इन्तजार तक मौन हैं मेरे शब्द
नहीं लिखनी मुझे कोई कविता …..
सत्या शर्मा ‘ कीर्ति ‘
लेखिका
रांची ,झारखण्ड