शतबार नमन! शतबार नमन!!
हिमालय की ऊँचाई पा,
जिसका जीवन रहा सफल;
गतिक जीवन से यकायक,
हो गया जो निष्पंद, निश्चल;
रहा जीवन-पर्यंत जो-
निन्छल, निर्विकार, निर्मल;
शैलेन्द्र सा विराट, विमल-
शैलेन्द्र-व्यक्तित्त्व था धवल!
झंकृत-जीवन से हो मौन,
टूट गये वीणा के तार;
चलते-चलते ही मानो वे-
ओझल हो गये क्षितिज पार;
खोजते रहे हम बार-बार-
पर पा न सके कोई आसार;
शैलेन्द्र सा वह आकार,
बन गया निमिष में निराकार!
लेखक वह मौलिक चिन्तक-
वह कवि और साहित्यकार;
मेधा, कर्मठता, निष्ठा संग-
शिक्षा, संस्कृति का अवतार;
वह शैलेन्द्र-विशालता सम-
छोड़ गया कीर्ति- भंडार!
‘लिफाफा देखकर’ उठा जाग,
ललित निबंध का वह राग;
‘निराला जीवन और साहित्य’
शोध-प्रबंथ का वह भाग;
‘अद्भुत रस और भारतीय काव्यशास्त्र’,
नये रूप में काव्य-सुवास;
‘शब्द पके मन आंच में’ संग मुक्तक वे ‘बहुत दिनों के बाद’!
संपादित ‘कलम उगलती आग’,
दिला गई कारगिल याद;
‘शिक्षा के नाम पर’ आवाज,
गूंजी ले ‘समय और समाज’;
‘प्रामाणिक जीवनी’ खोल गई-
जयप्रकाश संघर्ष का राज;
‘दुर्गासप्तशती’ काव्यानुवाद,
‘भारतीय कला संस्कृति’ पर प्रकाश्य!
जिनका जीवन अलंकृत रहा-
‘पद्मश्री’ उपाधि के अनूरूप;
समाज सेवा में बढ़कर जो रहे-
विधान सभा के सदस्य रूप;
लोकसभा सदस्य स्वरूप,
कुलपति कीर्ति के अभिरूप;
अंतर विश्वविद्यालय गति में,
छायी जिनकी अनुभूति अनूप!
भारत भर में सकल सुधीजन,
करते जिन्हें शत-शत नमन;
स्मृति पर उस शैलेन्द्र के-
अर्पित हैं ये श्रद्धा-सुमन!
नमन हे कवि-मनीषी!
हिन्दी करती तेरा स्तवन;
हे वरेन्य साहित्यकार,
हे शैलेन्द्र शतबार नमन!
शतबार नमन! शतबार नमन!!
योगेन्द्र प्रसाद मिश्र
अर्थमंत्री, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
पटना,बिहार