उम्मीद की ज्योति
जीवन परिचय की बात हो तो शायद ही पूरी हो पाए जीवन से मुक्कमल या भली भांति परिचित होना , मगर चुकी यह औपचारिकता है अपना परिचय देना तो यही कहूंगी कि मेरा जन्म गया जिला के गांव पूरा में दिनांक बीस नवंबर को हुआ, सौभाग्यशाली हूँ कि मैं उस घर में जन्मी जहाँ मेरे पिताजी, दादा जी परिचय के मोहताज नहीं थे, कर्मठ शिक्षाविद्, शांत व्यक्तित्व और संवेदनशील कवि एवम् लेखक रहे मेरे दादा जी की प्रथम पौत्री होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ मेरे प्रथम गुरु भी वही थे जिन्होंने स्वयं के बनाए सरकंडे की कलम से मुझे अक्षरों से परिचित कराया वर्तनी से अवगत कराया, यही वजह रही कि मैं शिक्षा और साहित्य को लेकर शुरू से बहुत सजग रही किसी भी चीज को जल्दी ग्रहण कर लेती थी, स्मरण शक्ति भी ईश्वर की कृपा से अच्छी रही जिसकी वजह से प्राथमिक शिक्षा से लेकर एम. ए, बी एड जोकि विवाह उपरांत किया प्रथम आती रही, मेरी स्नातकोत्तर तक की शिक्षा-दीक्षा मुजफ्फरपुर से हुई बाद में बी. एड जमशेदपुर विमेंस कॉलेज जमशेदपुर से किया!
पढ़ने की इच्छा तो बचपन से बलवती रही मेरे पापा क्रमशः चंपक, नंदन, सुमन सौरभ से लेकर रामकृष्ण परमहंस, शारदा देवी से लेकर विवेकानंद की जीवनी पर आधारित किताबें लाया करते थे जिसको मैं मुश्किल से दो दिनों में ख़तम कर लेती थी मेरे बाल-मन पर उन सभी के आदर्श जीवन का छाप जो पड़ी वह आज तक है! चूंकि मेरे पापा साहित्य पटल के उदीयमान कवि लेखक और साहित्यकार रहे हैं इसलिए वागर्थ, कादम्बिनी, सरिता युग निर्माण योजना, अखंड ज्योति जैसी असंख्य धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक किताबें हमारे घर में आती थी जिसे मैं अपना दैनिक कार्य जल्दी से जल्दी निबटा कर पढ़ने बैठ जाती थी और उन कहानियों में कहीं गुम हो जाती, घर में सब मुझे किताबी कीड़ा कहते, शायद नहीं कहूंगी विश्वास से कहूंगी कि आज अगर मुझमें लिखने की कला या प्रेरणा मिली है तो मेरे पापा की लायी उन किताबों और साहित्यिक विचार विमर्श से जो पापा के साथ होता था! मैंने अपनी प्रथम कविता आठवीं कक्षा में लिखी थी !
मेरे पापा आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के परम स्नेही शिष्यों में एक थे इसलिए उनसे दो चार बार मिलने का सुख, उनके जन्मदिन के अवसर पर आयोजित अमृत महोत्सव में मेरा प्रथम काव्य पाठ, उनके मुख से अमृत-तुल्य आशीर्वचन सुनने का सौभाग्य आज भी मुझे रोमांचित कर देता है!
बचपन से लेकर आज तक मुझे कई व्यक्तियों और व्यक्तित्व ने अत्यंत प्रेरित किया है जिनमे कुछ मेरे घर में ही मौजूद रहे मेरी मां, मेरे पापा और मेरे दादाजी मेरे पति और मेरे शिक्षक!
मेरी माँ ने मुझे न केवल जन्म ही दिया है बल्कि मुझमें वह सारे संस्कार दिए जो एक आदर्श माँ दे सकती है बातों से ही नहीं उनका खुद का सरल, सहनशील स्वभाव, किसी से कोई उम्मीद न रखना और संतोषी गुण ने हमेशा मुझे आकर्षित किया! मेरे पापा की क्या बात करूं आज भी अगर मजबूत खड़ी हूँ तो उनकी सीख उनकी बातों की वजह से उनके खुद के जीवन के संघर्ष को मैंने आंखों से देखा है महसूस किया है मगर कभी परिस्थितियों के आगे उनको झुकते नहीं देखा, उनसे जूझते देखा है सदा अपने कार्य क्षेत्र में ईमानदारी और सजगता की उनकी भावना ने मुझे काफी प्रेरित किया है!
शिक्षक के रूप में भी मुझे कई आदर्श मिले जिनमें मेरे मैट्रिक परीक्षा के दौरान के ट्यूशन के शिक्षक झा सर का स्नेहिल स्वभाव उनके जीवन के आपाधापी ने मुझे जीवन को देखने का मजबूत दृष्टिकोण दिया, मेरी बी एड के दौरान मेरी व्याख्याता जूही मैम से भी मुझे आगाध प्रेम और ममता मिली उनकी भी कर्मठता, गतिशीलता और व्यस्तता के बावजूद एक सरलता, सहजता ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया है विवाह उपरांत मेरे पतिदेव का मेरी शिक्षा को लेकर सजगता और निस्वार्थ सहयोग ने मुझमें कई गुना हिम्मत दी शादी से पहले मेरी सोच कि शादी के बाद मेरी पढ़ाई रुक जाएगी इस सोच को मेरे पति ने निर्मूल कर दिया उनका ही साथ रहा जिसकी वजह से मैं शादी के बाद एम. ए और बी. एड कर पायी, उनकी इच्छा हमेशा यही रही कि मैं अपनी खुद की एक पहचान बनाऊँ! हरसंभव मेरे लिए वह खड़े रहे अपनी मीडिया की नौकरी में होते हुए भी वह समय निकालकर अच्छे साहित्यकारों और व्यक्तित्व से मिलते-मिलाते ताकि मुझे सीखने और बढ़ने की प्रेरणा मिले!
मेरे जीवन में मैंने कई उतार-चढ़ाव देखे, देख रही हूँ आज भी, मगर हर बार यही सोचा मैं पहली और आखिरी नहीं जो संघर्ष से गुजर रही हूँ और मेरे पापा की एक बात जो बचपन में कहीं थी उन्होंने कि”एक सच्चा कलाकार कभी दुखी नहीं होता” उस पंक्ति ने हर बार मुझमें उठने की, चलने की, लिखने की हिम्मत दी है और मैंने देखा है कि जब-जब मैं ज़्यादा परेशान निराश हुई हूँ, हारने लगी हूँ तभी मेरी किसी कविता का सर्जन हुआ है मुझे खुद आश्चर्य होता है कि कैसे लिख गई!
वैसे तो अभी तक मेरी कई कविताएँ, लेख, संस्मरण छपती रही हैं कई किताबों, समाचार पत्रों में, कुछ पुरस्कार भी प्राप्त हुए, कई साहित्यिक गोष्ठियों में काव्य पाठ का मौका मिला और मिल रहा है मगर सच यही है कि मैं लिखती हूँ अपने लिए, अपनी आत्मा के लिए, एक सुकून मिलता है लिखकर ऐसा सुकून जिसे बयान करना मुश्किल है मेरे लिए, सारे बोझ उतर जाते हैं दिल के और फिर से उठने की मुस्कुराने की हिम्मत मिलती है मुझे लिखकर!
” जब नहीं होता भरोसा खुद पर
जब अपने लगते हैं बेगाने
तब उभरती है पन्नों पर
कविता दिल को बहलाने!
जब भावनाओं का सागर
आता है दिल को भरमाने
तब कविता मांझी बनकर
उस पल आती है समझाने!
कभी निराशा के तम से
लगती हूँ जब मैं घबराने
कविता ही आती है तब
उम्मीद की ज्योति दिखलाने!
अर्चना रॉय
प्राचार्या (मणिपाल इंटरनेशनल स्कूल)
मांडू (रामगढ़)
झारखंड