बस यूँ ही चलते जाना है
कौन कहता है आसमां में सुराग नही हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।
मेरा जन्म महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में 29 सितंबर 1968 को हुआ,विविध पारिवारिक कारणों से या यूं कहें कि मां के देहावसान के कारण 1978 में जमशेदपुर आना हुआ। फिर स्कूली शिक्षा एवं कॉलेज की शिक्षा सब यहीं से पूर्ण हुई।सामाजिक विज्ञान (इतिहास) में रांची विश्वविद्यालय से शिक्षा वाचस्पति(पी.एच.डी)। संयोगवश विवाह भी यहीं और नौकरी भी यहीं हो गयी।फिलहाल झारखंड सरकार में शिक्षिका के पद पर कार्यरत ।
शिक्षा में अनवरत अपनी उत्कृष्ट सेवा देने ,नवीन विचार,तथा लगातार बेटियों को पढ़ने हेतु प्रेरित करने के लिए वर्ष 2017 में राष्ट्रपति से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार,प्राप्त हुआ।शहर में शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनी।जबकि मनोरंजक बात यह थी कि मेरे परिवार में सभी शिक्षक थे ,तो मैं बी एड करने के बाद भी शिक्षिका नहीं बनना चाहती थी।प्रशासनिक सेवा में जाने की तम्मना थी लेकिन तब न तो आज की तरह हर वर्ष परीक्षा होती थी न ही राज्य स्तरीय परीक्षा में सही चयन।इन्ही कारणों से बिहार में आयोजित बाल विकास परियोजना पदाधिकारी में दो परीक्षा उत्तीर्ण होने के बावजूद साक्षात्कार में छंट गयी।तब मन में एक ख्याल आता रहा कि यदि पैसा देकर नौकरी में जाना पड़ा तो मुझसा बेईमान कोई नही और यदि बिना किसी घूस के नौकरी मिली तो मुझसा ईमानदार कोई नहीं। एक
और परीक्षा दे रखी थी तो उसमें बिहार सरकार में शिक्षिका के पद पर मेरा चयन हो गया।
पहले ही दिन से तमन्ना थी कि सरकारी विद्यालय की छवि बदलूंगी लेकिन आशाओं पर तब तुषारापात हुआ जब मेरी पहली पोस्टिंग घर से 55 कि.मी दूर मुसाबनी में हुई तो मैं बस घर से विद्यालय जाने और वापस आने की ही चिंता में अपना समय व्यतीत करती।लेकिन ईश्वर की मेहरबानी से एक वर्ष में ही मैं जमशेदपुर आ गयी।तब गहराई से समाज में घुस कर कभी बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा तो कभी विद्यालय के बाह्य स्वरूप को समाज ,विभाग सभी की मदद से आकर्षक बनाया।फिर बच्चों के लिए रोज एक नई कल्पना मन में आने लगी और मेरा जुनून बढ़ता गया। मैं तन मन धन से विद्यालय और बच्चों के लिए समर्पित हो गयी।
ऐसे ही देशभक्ति के क्रम में हिंदी प्रेम बढ़ता गया जिसे मैंने कॉलेज के जमाने से रोक रखा था तो खाली समय अपनी रचनाओं के लिए देकर साहित्य जगत में भी अपनी जगह बनाने की कोशिश की ।इस क्रम में समाज और शिक्षा जगत ने भरपूर सम्मान दिया।जिसने निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित किया।
अपने काम को मैं बेहतर कर सकूं इसके लिए परिजनों का सहयोग,गुरु का मार्गदर्शन मिलता रहा। हर पल सीखने की चाहत ने कुछ न कुछ ज्ञान हमेशा दिया है।बहुत कुछ विद्यालय के बच्चों के लिए करने की चाहत है।देखे कहाँ तक सफलता मिलती है।अपने जीवन में विभिन्न सम्मानों को प्राप्त कर और अधिक कार्य करने को प्रेरित होती रही हूँ।कुछ सम्मान जो मिले वह यह हैं-
साहित्यिक सम्मान
साहित्य के क्षेत्र में भी अतुलनीय योगदान।समय समय पर बच्चों में हिंदी प्रेम जगाने तथा उन्हें प्रेरित करने हेतु डॉ नरेंद्र कोहली जी द्वारा अक्षरकुम्भ अभिनंदन,भारतीय साहित्यकार संसद समस्तीपुर एवमं देवघर द्वारा सम्मानित,अभी अभी आलेख हेतु राजभाषा विभाग एवम गृह मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी परिषद द्वारा सम्मान।
सामाजिक सम्मान
सामाजिक सरोकारों हेतु हिंदुस्तान द्वारा माँ तुझे सलाम,बैंड बाजा बाराती सम्मान रेड एफ एम द्वारा, प्रभात खबर,अपराजिता सम्मान,कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
मैं शहर की कई संस्थाओं से जुड़ कर अपनी सेवा दे रही हूँ और कुछ न कुछ नया सीख रही हूँ।विभिन्न साहित्य संस्थाओं यथा बेनीपुरी साहित्य परिषद, अखिल भारतीय साहित्य परिषद,इंडियन हिस्टोरिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट कोलकाता, सहयोग बहुभाषीय संस्था,त्रयायुष कल्याण केंद्र जमशेदपुर,फेथ इन इंडिया,फाउंडेशन फ़ॉर कृष्ण कला केंद्र एंड एडुकेशन नोयडा में सक्रिय।
तीन पुस्तकें मेरी प्रकाशित हुई हैं समर्पिता(कथासंग्रह),1857 की क्रांति और छोटानागपुर, वो लम्हे,(काव्य संग्रह)
मेरी रुचि साहित्य ,समाज सेवा,एवं देश विदेश में भ्रमण की है।आलेख,संस्मरण, कहानियां एवं कविताएं लिखती हूँ।
विशेष रुचि मेरी है—महिला आत्मनिर्भरता को एवम बालिका शिक्षण को प्रोत्साहन।
डॉ अनिता शर्मा
साहित्यकार एवं शिक्षाविद
जमशेदपुर