” शून्य से समग्र की ओर “….
इस विराट ब्रह्मांड में हमारे होने का सत्य ही यह जीवन है ।धरती पर बसे हर जीव की अपनी एक कहानी है। संवेदनाओं की अनुभूति गहरे चिंतन के बाद अभिव्यक्ति का वह भास्वर बनती है जहां पारस्परिक एकात्मकता जीवन को मजबूती प्रदान करती है। कहते जिसका जितना समर्पण होता है उसको उतना ही अधिक प्रभुत्व प्राप्त होता है । जीवन जीने के लिए हमारे भीतर अनंत जिज्ञासाएं है । जीवन जीने की कला हर किसी को नया रूप प्रदान करती है । हर व्यक्ति अपने ही धुन, अपनी ही लय, अपने ही विस्तार का मालिक होता है ;लेकिन जब बात सामाजिकता पर आती है तो कुछ ऐसे आतंरिक संकल्प उभर कर सामने आते हैं जहां व्यक्ति के कर्म ही उसके वजूद को विस्तार देते हैं।
मैंने अपने जीवन को इस स्वर में पिरोया कि-
” किसको क्या मिला इस जग में
यह हिसाब मत करना
अपने बूते भर का बस तू
हक अदा करते रहना …….”
22 दिसम्बर 1975 जाड़े की कनकनाती भोर , गहरा कुहासा, बित्ते भर की दूरी में भी जहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ,साल का वह सबसे छोटा दिन, बरूआरी गांव दरभंगा जिला के गोसाईं घर में एक किलकारी गूंजी, जिसका नाम उमा पड़ा।माँ शांति देवी और पिता हरे राम सिंह किसलय । मैं अपने माता पिता की दूसरी संतान थी। मुझसे पहले मेरे बड़े भैया श्री राम सिंह है । मेरे बाद मेरी छोटी बहन सीमा और उसके बाद छोटा भाई अमनदीप सिंह । हम चारों भाई बहन की परवरिश बड़े ही अनुशासित माहौल में हुई । पिता वायुसेना में और हमारी माँ ने कुशल गृहणी का फर्ज अदा करते हुए हमारी परवरिश की। ककहरा मैंने श्रीनगर के स्कूल में सीखा । उसके बाद पिता का स्थानांतरण पठानकोट, पंजाब में हो गया वहां से मैंने केन्द्रीय विद्यालय से कक्षा तीन तक पढ़ाई की फिर केंद्रीय विद्यालय सदर बाजार दिल्ली कैंट में आठवीं तक और बेंगलुरु से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास करके एल.डी आर्टस कालेज अहमदाबाद से हिन्दी में बी.ए , गुजरात यूनिवर्सिटी एम.ए और बी एड किया। 1996 में जब मेरा विवाह हुआ था तब मैं बीए द्वित्तीय वर्ष में थी। एक से बढ़कर एक रिश्ते और प्रस्ताव विवाह के लिए आ रहे थे। बड़े अधिकारी सरकारी और गैर सरकारी नौकरी वाले भी , जो एक बार में ही विवाह के लिए हामी भर देते थे और जब विवाह तय होने की प्रक्रिया शुरू होती तो दहेज 7 ,8 ,9,..13 लाख तक पहुंच जाता। हमने अपने पिता से प्रश्न किया कि सब पसंद है , अच्छा लग रहा है तो दहेज क्यों….? आपने जो मुझे संस्कार दिया है उससे मैं अपने जीवन को जी लूँ गी ,इसलिए मुझे ऐसे किसी व्यक्ति से विवाह नहीं करना जो दहेज की मांग कर रहे हैं । मेरे इन्ही शब्दों के कारण संभवतः अरविंद सिंह के साथ मेरी अरेज मैरेज हुई। विवाह से पहले मैंने उन्हें देखा भी नहीं था। वे एक आदर्श जीवन साथी बने ।पिता से जो संस्कारों मिले उसमें आत्मविश्वास मेरे पति ने भरा और विवाह उपरांत मुझे अपनी पढ़ाई पूरी की आज्ञा मिली । हमारा संयुक्त परिवार है मां गोदावरी देवी (सास )पिताजी रामाधार सिंह (ससुर) और छोटी बहन रेखा( मेरी ननंद )जो विवाहित है। उनके पति मनोज सिंह वायु सेना में कार्यरत हैं और अपने दो बच्चों के साथ वह बीदर कर्नाटक में रहती हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे लिए मायका और ससुराल में कोई अंतर नहीं था । परिवार में बड़ी आत्मीयता मिली । मान सम्मान और रिश्तों की अहमियत मिली ।
मेरी चेतना के किसी निर्वासित कोने में कुछ विशिष्ट कर गुजरने का भाव हमेशा सोया पड़ा रहता है, उसे जब जगाया जाता है मेरे लिए असंभव शब्द का अर्थ नहीं रह जाता। मैंने अपने करियर की शुरुआत कॉरपोरेट सेक्टर से की थी। शिक्षा के क्षेत्र में मेरे पदार्पण का श्रेय मेरे हिंदी के प्रोफेसर शर्मा को जाता है ।वह हमेशा ही मुझे वाक् पटु और प्रतिउत्पन्नमति कहकर संबोधित करते थे ।इन दोनों शब्दों की गंभीरता का ज्ञान उस वक्त तो मुझे बिल्कुल नहीं था। मैं बड़ी ही अल्हड़, उन्मुक्त, बेवाक और हंसोड स्वभाव की थी। दुनियादारी,करियर ,जीवन का लक्ष्य यह सब बातें मेरे लिए बेमानी सी थी । ग्रेजुएशन इसी मस्ती में बीता । बी.ए फाइनल का रिजल्ट देखने कॉलेज गई थी। प्रथम श्रेणी में बहुत ही कम छात्र पास हुए थे ,जिनमें से मैं भी एक थी। इत्तेफाक से प्रोफेसर साहब नोटिस बोर्ड के पास मिल गए। उन्होंने जिस प्रसन्नता से मेरा अभिवादन किया था वह अवर्णनीय है। उन्होंने मुझे बी. एड करने की सलाह दी पर मैंने एम.ए में दाखिला ले लिया । एम.ए के बाद उन्होंने फिर बी.एड की सलाह दी ।इस बार अपने गुरु का आग्रह मानकर बी.एड में दाखिला ले लिया । पर फॉर्म भरते समय बड़ी बेबाकी से मैंने कहा था कि-” दाखिला तो ले रही हूं लेकिन आप की तरह टीचर नहीं बनूंगी।” मेरी बेतुकी बात पर वे केवल हंसे थे ।आज वही हंसी मेरे जीविकोपार्जन ,मेरे व्यक्तित्व के विकास ,मेरी सामाजिक छवि का अटल आधार बनी। बी एड की पढ़ाई के दौरान मैंने शिक्षक धर्म का वास्तविक अर्थ जाना । विद्वानों ने सच कहा है -“भट्टी में जलकर ही कुंदन सुंदर आकार में ढलता है।” बी.एड का ट्रेनिंग सत्र भी कुछ ऐसा ही था। मेरे ज्ञान चक्षु खुल चुके थे ।मैंने अब यह बखूबी समझ लिया था कि समाज में आदर्शवादी सफल व्यक्तित्व के निर्माण हेतु शिक्षक धर्म का निर्वहन करना है। विश्वविद्यालय स्तर पर आयोजित कई कार्यक्रमों में मेरे लेखन धर्मिता को एक व्यापक मंच मिला ।वाद- विवाद प्रतियोगिता ,गायन प्रतियोगिता, कविता लेखन ,कहानी लेखन में सराहना एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। विद्वानों एवं शुभचिंतकों के सकारात्मक कथन मेरे आदर्श बनते चले गए और नकारात्मक लोगों की टिप्पणियां प्रेरणा स्रोत ।
1999 मैं जमशेदपुर में रहने की शुरुआत हुई । करियर में परिवर्तन आया। एक तरफ जमशेदपुर के एस .सी .सी.एन चैनल पर जमशेदपुर में माधुरी दीक्षित के बड़े फैन पप्पू सरदार जी का एक इंटरव्यू कार्यक्रम में काम किया। उसके बाद आकाशवाणी जमशेदपुर में मेरा वॉइस टेस्ट क्लियर हो गया ,लेकिन इसी बीच बी.एड में दाखिला होने के कारण मुझे जमशेदपुर से अहमदाबाद जाना पड़ा। B.Ed करने के बाद पुनः सन 2001 में मैं जमशेदपुर आई।
अहमदाबाद अब बिल्कुल छूट सा गया।परंतु अहमदाबाद में मायका होने के साल में दो एक बार आना जाना होता था ।पारिवारिक जिम्मेदारियों ने जमशेदपुर से बांधा । एक ओर डिग्रियों ने मुझे शिक्षिका के रूप में विद्यालय से जोड़ा और वहीं दूसरी ओर आंतरिक प्रतिभा ने साहित्य से जोड़ा। नया माहौल ,नए लोग वहीं केंद्रीय पुस्तकालय बिहार एसोसिएशन में मेरी मुलाकात डॉ सी.बी सिन्हा से हुई। 2001 पी.एच.डी करने के सिलसिले में मैं उनसे मिली थी ।उन्होंने मुझसे कुछ प्रश्न किए थे और साथ में यह सुझाव दिया कि B.Ed हो तो विद्यालय से क्यों नहीं जुड़ जाती । उनके सहयोग से ही मैंने टैगोर अकादमी में इंटरव्यू दिया और वहां हिंदी शिक्षिका के रूप में नियुक्त हुई। पुस्तकालय में सदस्यता लेकर किताब पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ, साथ ही वहां साहित्यिक माहौल मिला ।हिंदी परिषद से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।डॉ रागिनी भूषण, डॉ त्रिभुवन ओझा,डॉ सत्यदेव ओझा ,डाॅ पी.सी पांडे , डाॅ दिलिप ओझा, आदरणीय सुरेश सिंह, दिनेश सिंह जी से मुलाकात हुई और साहित्यिक गतिविधियों का सिलसिला भी प्रारंभ हुआ। वही मेरी मुलाकात निर्मल मिलिंद जी से हुई ।बाल साहित्य और मेरी कविता सुनने के बाद उन्होंने मेरे लेखन की सराहना की और यह भी कहा कि कलम अगर यूं ही चलती रहेगी तो आप एक बहुत बड़े आकार में परिवर्तित होंगे। लेखनी को यूं ही मजबूती से पकड़े रहो। डॉ सत्यदेव ओझा जी ने मुझे पुस्तकों से जोड़ा।वे मुझे मेरे विद्यालय के पते पर ही कुछ पुस्तकें पोस्ट किया करते थे। मैं और मेरे छात्र इन किताबों को पढ़ते थे और अच्छा अच्छी खासी साहित्यिक बहस भी हमारे बीच हुआ करती थी ।जमशेदपुर के साहित्यिक समाज के साथ-साथ रांची विश्वविद्यालय से “छायावादी लघु प्रबंध काव्य -एक अध्ययन” विषय पर पीएचडी करने के दौरान डॉ दिनेश्वर प्रसाद, डाॅ रीता शुक्ल ,डॉ अरुण कुमार,डाॅ जंग बहादुर पांडे के मार्गदर्शन में साहित्यिक गहराई की समझ विकसित हुई ।
जमशेदपुर में टैगोर अकैडमी, एस.डी.एस.एम स्कूल फॉर एक्सीलेंस, राजेंद्र विद्यालय ,दिल्ली पब्लिक स्कूल जमशेदपुर में पढ़ाने का मौका मिला। इस स्कूल में मैंने 12 वर्ष या यूं कह लीजिए कि एक युग बिताया ।यहां बिताए हर लमहे मेरे लिए अनमोल रहे। बहुत कुछ सीखा मैंने यहां ।मेरे करियर का ग्राफ भी बहुत ऊंचाई तक गया। परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसी परिवर्तन के फलस्वरूप मैंने दिल्ली पब्लिक स्कूल से इस्तीफा दिया और प्राचार्य के रूप में जेवियर इंग्लिश स्कूल सरायकेला से जुड़ी । 19 वर्षों के इस लंबे अंतराल और जीवन उपयोगी संघर्षों ने एक बहुत सुखमय पारिवारिक संसार दिया । जहां बड़ा बेटा आदित्य नारायण सिंह पढ़ाई के लिए बेंगलुरु निकला ।वहीं छोटे बेटे चिन्मय शालीन की पढ़ाई के लिए मुझे भी जमशेदपुर से बाहर कार्य करने का मौका मिला। झारखंड से दूर बड़ौदा गुजरात के एक सी बी एस ई स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति मिली ।
जीवन के खट्टे मीठे अनुभव, समय का उतार-चढ़ाव, संघर्ष की पराकाष्ठा , श्वेत श्यामल चेहरे के पीछे के रहस्य, लोगों से प्रेम के साथ-साथ आपसी प्रतिस्पर्धा ने भीतर की अनुभूतियों को शब्दों का जामा पहनाया और लेखन काव्यमय हो उठा। कहानियों में पात्र जिंदा होने लगे। साहित्यिक प्रतिभा ऊंचाइयां छूने लगी ।
5 वंदना और 21 गीत लिखें जिन्हें विभिन्न मंचों से प्रस्तुत किया ।”नश्तर”यह एक काव्य श्रृंखला है इसमें मनुष्य की कई सोच पर चिंतन एवं व्यंग्य कसती 51 कविताएं लिखी है ,जो अप्रकाशित
हैं । 21 लघु कथाएं लिखी हैं जो अभी अप्रकाशित हैं। विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों एवं झारखंड प्रदीप में सात लेख छपे हैं। तीन शोध पत्र छपे है। शेष 13 अप्रकाशित है । एक कहानी दैनिक समाचार पत्र प्रभात खबर में छपी ।शेष 10 अप्रकाशित है। “झारखंड कुसुम” पुस्तक में तीन कविताएं छपी साथ ही दीया प्रकाशन द्वारा “साहित्य समीधा” गद्य पद्य संग्रह में भी एक कविता और कहानी छपी। विभिन्न मंचों से कविता पाठ करने का अवसर मिलने लगा ।इस मंच से जमशेदपुर के वरीय कवियों की अध्यक्षता में कविता पाठ, कहानी पाठ और लेखन बारीकियों से रूबरू हुई।
पद्म श्री रमाकांत जी ,डाॅ अवि राज , पदम अलबेला,डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ,डॉ संजय पंकज एवं मंजीत सिंह जैसे बड़े हस्ताक्षरों के साथ कई मंच साझा हुए। गद्य और पद्य दोनों में लेखन प्रारंभ हो गया । कई आलेख समीक्षाएं प्रकाशित हुई ।”खेल -खेल में “- बाल गीत एवं कविताएं” प्रकाशित हुई । साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय साहित्य परिषद में संगठन मंत्री का दायित्व मिला ।नारायणी साहित्य अकादमी जमशेदपुर की इकाई की जिला अध्यक्ष बनी। दिनकर परिषद में कार्यकारिणी सदस्य ।इसके साथ -साथ जमशेदपुर में सक्रिय संस्थाएं जैसे “जनवादी लेखक संघ “,”हुलास- हास्य कवि मंच”,” कविता पावस”, “सृजन संवाद”,” बहुभाषी संस्था- सहयोग” इत्यादि में सदस्यता एवं सहभागिता रही। जमशेदपुर में आयोजित कई साहित्यिक कार्यक्रमों में मंच संचालन करने का मौका मिला ।इसके साथ- साथ रांची में आयोजित मुशायरा ,राजगंगपुर, रायरंगपुर उड़ीसा में भी कवि सम्मेलन में भाग लिया। अनवरत हिंदी साहित्य लेखन के कारण हिंदी के क्षेत्र में योगदान हेतु सम्मान( हिंदी दिवस 2016) जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा दिया गया। 26 मार्च 2019 विदुषी सम्मान -2019, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रदान किया गया। 14 सितंबर 2019 “मानवीय दृष्टिकोण समरसता और गांधी” विषय पर आलेख अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में विश्व हिंदी परिषद द्वारा सम्मान पत्र मिला। इसके साथ- साथ जमशेदपुर आकाशवाणी जमशेदपुर में काव्य पाठ करने का अवसर मिला। जमशेदपुर की स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में कई रचनाएं प्रकाशित हुई ।
आदरणीय नंद कुमार उन्मन, श्री राजदेव सिन्हा,श्री शेष नाथ शरद, श्री दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश, डाॅ शांति सुमन, डाॅ अरूण सज्जन, श्री श्यामल सुमन, श्री हरिकिशन चावला,डाॅ सी भास्कर राव , डाॅ जूही समर्पिता, श्री अस्थाना जी श्री जयनंदन जी आदि साहित्यिक विभूतियों ने भीतर के आत्मविश्वास को वह ऊंचाई प्रदान की ।जहां मुझे अपने होने का सत्य दिखाई देने लगा। जनवाद की सशक्त आवाज आदरणीय नंदकुमार उन्मन जी के संपर्क में गीत रचना की बारीकियां सीखी।मेरी ये पंक्तियाँ जी उठी –
” रोज अपनी ख्वाब की तस्वीर बनाते हैं हम ,
कभी अपनी या किसी की तकदीर बनाते हैं हम ।
नव गीत की शीर्ष हस्ताक्षर डॉ शांति सुमन एवं डाॅ रागिनी भूषण जी की गीतात्मक शैली के प्रभाव से मेरे भीतर सस्वर प्रस्तुति की कला विकसित हुई । डॉ जूही समर्पिता जी ने मंच संचालन के माध्यम से विभिन्न मंचों से जोड़ा । तुलसी भवन में वरिष्ठ रचनाकारों का वक्तव्य सुनने का अवसर मिला और साहित्यिक संपर्क बढे। सामाजिक ,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना, इससे संबंधित कार्यक्रम में मंच संचालन, सभा गोष्ठी कार्यशाला का आयोजन,प्रखर वक्ताओं को सुनना एवं विद्वत जनों के साथ साहित्यिक विमर्श करना, सशक्त एवं धारदार रचना धर्मिता के माध्यम से व्यक्ति विशेष में मर्यादित संवेदनाओं का संचार करते हुए वैचारिक भाव बोध की चेतना पैदा करना मेरी अभिरुचि में शामिल हो गया। अनवरत चलने वाली मेरी कलम कहती है-
” न टूटना पसंद है
ना तोड़ना पसंद है
मुझे जिंदगी से मौत तक
बस जोड़ना पसंद है”…..
समग्रता के लिए पूर्ण चिंतन करता हुआ मेरा यह मन शून्य से समग्र की ओर बढ़ रहा है । कर्तव्य में व्यवहारिकता ,विचार में स्वावलंबन ,गति में समाजवाद ,चिंतन में परहित सुख समाहित हो जाए तो इस धरती पर हमारे वजूद का होना सार्थक कहलाएगा। उम्मीद से बंधी हूं ,शब्दों को जी रही हूं ,कर्तव्य को सीख रही हूं, संभवतः सत्य का प्रकाश मिल जाए ।
डाॅ उमा सिंह किसलय