ये अंतर्नाद है

ये अंतर्नाद है

मेरा जन्मस्थल पाटलिपुत्र (पटना) वैदिक काल से ही अपना एक ऐतिहासिक गौरव समेटे हुए है। मेरे दादा मेवालाल लक्ष्मण प्रसाद जौहरी स्वतंत्रता सेनानी थे और अपने समय में पटना के प्रसिद्ध जौहरी भी थे।मेरे पिता जी राजा राम मोहन राय स्कूल में टीचर थे,बाद में कृषि विभाग में हो जाने पर सरकारी नौकरी में रहे और संयुक्त कृषि निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। मेरी मां यूपी के आजमगढ़ की है।हम दो बहनें हैं।नानी घर भरा पूरा परिवार था।कच्चे व पक्के घर दोनों का सामंजस्य था। वहां का बचपन पटना के जीवन से बिल्कुल अलग था। उसकी याद आज भी मानस पटल से जाती नहीं।

क्या जिन्दगी थी!!!!!
बचपन के मस्ती भरे पल,
वो! नानी घर का बचपन,
बड़ा सुहावना लगता गर्मी छुट्टियों में,
वो! हनुमान चालीसा की गूंज से,
सबेरे तड़के उठ जाना,
छत पर खटिए पर सोना,
डंडे वाला मच्छड़दानी लगाना,
दौड़ कर नाना को जगाना,
और फिर !
उनके जूते देना,
और उनके संग तड़के सैर को निकल जाना,
रास्ते भर उनकी अच्छी बातें सुनना,
लोगों को” जय राम जी की”
बोलकर अभिवादन करना,
आज भी याद आ जाता है,
कहीं खेत! कहीं अमराईया,
वो! ढेले से आम को गिराना,
क्या निशाना था मेरा!
कुंए का पानी भर कर पीना,
वहां चबूतरे पर बैठ सुस्ताना,
फिर ! वापसी में सब्जी खरीदते जाना,
ताजी सब्जियों का एहसास,
हटता नहीं मन की गहराइयों से,
वो !
गरम-गरम कचौड़ी व जलेबियां,
संग आलू – चने की सब्जी,
आहा!!!!
क्या स्वाद था !
उस हलवाई नाना की बनाई चीजों का,
बालुशाही की तो बात ही कुछ और थी,
वो! मटर के खेत,
और उनकी फलियां खाना,
रंग- बिरंगी छोटे डलिए में,
चूड़ा- गुड़ खाने का स्वाद ही कुछ और था,
वो ! दूकान के सामने गरम-गरम बताशा बनाते देखना,
साथ ही उसका रसास्वादन,
सब यादों में सिमट कर रह गई है,
वो! बड़े से आंगन में चापाकल से पानी निकालना,
और ठंडे पानी से नहाना,
पालथी मारकर पीढ़े पर रखकर खाना,
प्रथम निवाले को प्रणाम कर निकालना,
सब कुछ याद है,
फिर जाड़े की छुट्टियों में,
वो! उचके पे बेर और करौंदे तोड़ना,
घर की गैया का दूध पीना,
दही और राबड़ी का तो जैसे बौछार था,
क्या मस्ती के पल थे,
वो! बंदरों का जमावड़ा,
नन्हें बंदरों का मां से चिपकना,
छत पे आ जाना,
डर तो लगता पर मजा भी बहुत आता,
वो तश्वीरे !
आज भी मानस पटल पे हैं,
न कि मोबाइल में ।

मेरी प्रारंभिक शिक्षा संत जोसेफ कान्वेंट स्कूल, पटना में हुई। आगे विद्यालय की पढ़ाई रांची संत मारग्रेट गर्ल्स हाई स्कूल में क्योंकि मेरे पिता श्री हरीश चंद्र सर्राफ(संयुक्त कृषि निदेशक) थे। जहां- जहां उनका स्थानांतरण हुआ , शिक्षा वहां-वहां से प्राप्त की इंटर(राजेंद्र कालेज,छपरा),स्नातक(एस.पी.कालेज, दुमका) स्नातकोत्तर ,प्राणिशास्त्र (ओल्ड .पी.जी.डिपार्टमेंट, भागलपुर)बी.एड.(रांची यूनिवर्सिटी) किया। मुझे गायन,नृत्य,अध्यापन और सबसे ज्यादा खेल में रूचि रही। यही कारण था कि मैं बचपन से विद्यालय और कालेज में भाग लेती रही और जीतना तो पक्का था।स्नातक में एस.पी.कालेज , दुमका में मुझे इंडोर गेम्स चैम्पियन का शील्ड डा के.के.नाग के द्वारा प्रदान किया गया और उसी दिन उन्होंने ये घोषणा कि ये” सिद्हो कन्हो यूनिवर्सिटी” बनेगा,जो आज है।मेरा रुझान शुरू से साहित्य की ओर रहा,सो स्कूल, कालेज के मैगजीन के लिए कुछ न कुछ लिखने का शौक रहा, परन्तु कभी संग्रह नहीं किया।

२२जनवरी,१९९५ में डॉ.एस.के.प्रसाद(सीनियर कंसल्टेंट,टी.एम.एच.)से शादी के पश्चात् बिरसा की धरती,लौहनगरी चली आई जो अब मेरा कर्मक्षेत्र है। मुझे अध्यापन का बहुत शौक था,सो शादी के तुरंत बाद १९९५ में मैंने विमेंस कॉलेज के जन्तुविभाग (स्नातक व स्नात्कोत्तर) में अध्यापन कार्य किया।बी.एड.ग्रैजुएट कालेज से की।बी.एड(२००६) के बाद शारदामणि गर्ल्स हाई स्कूल में और फिर डी.ए.वी.पब्लिक स्कूल(बिष्टुपुर) में अस्थाई शिक्षिका के रूप में कार्य किया। परन्तु संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों ने मुझे पुनः गृहस्वामिनी बना दिया।

कहते हैं कभी कभी जिंदगी में ऐसा मोड़ आता है कि सुषुप्त कला को जाग्रत करने में किसी न किसी का आत्मिक योगदान रहता है। इसका श्रेय स्वर्गीय पिता जी एवं डॉ आशा गुप्ता (मेरी भाभी) को जाता है। उन्हीं से प्रेरित होकर मैंने पुनः लिखना शुरू किया। मेरे पिता जी अक्सर मुझे कहा करते थे”जीवन को यूं ही व्यर्थ न जाने देना, कुछ न कुछ लिखते रहना”क्योंकि मैं उन्हें ही अपनी कविताएं पढ़ाया करती थी। मैंने दोनों बच्चियों के उच्च शिक्षा हेतु चयन के पश्चात् शौक को गले लगाया और फिर तबसे मेरी लेखनी कर्मक्षेत्र की ओर उन्मुख हो गई। मेरी कविताएं प्रायःआस-पास के परिवेश, सामाजिक समस्याओं, जीवन में घटित यादों , बचपन की यादें जो जीवन में कुछ न कुछ दे जाएं,वो मेरी कविताओं का शीर्षक बनती रही और अंतर्नाद बन कविताओं का गागर भरती रही । मेरी दो प्यारी बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी स्तुति आदर्श असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर और सॉफ्टवेयर डेवलपर (टीसीएस बीएफसीआई केआई डिजिटल) में है।छोटी बेटी जयति आदर्श मेडिकल सेकंड एयर(एमबीबीएस), इंटरनेशनल स्कूल ऑफ मेडिसिन मे अध्ययन कर रही है। बेटा हर्ष आदर्श राजेंद्र विद्यालय में बारवीं कक्षा में है।

अंत में मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मेरी १२१ कविताओंं का संग्रह “अंतर्नाद” शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। मेरे पति डॉ.एस.के.प्रसाद का इसमें सर्वस्व योगदान है। इनके प्रोत्साहन से ही मेरी लेखनी धीरे धीरे ही सही पर अनवरत चलती रही।

ये”अंतर्नाद”है-
नव उल्लास,नव प्रयास,
नव कामना,नव साधना,
नई कृति,नई जागृति।

पद्मा प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर

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