कब हारा चुनौतियों से

 

कब हारा चुनौतियों से

‘डॉ विकास सिंह का नाम हृदय चिकित्सा के क्षेत्र में बिहार के चर्चित और विश्वसनीय चिकित्सकों में आता है।’- अक्सर लोगों से यह सुनने को मिलता है- सुनकर अच्छा भी लगता है और साथ ही साथ अपनी जिम्मेदारी आप पर भरोसा करने वालों की वजह से कितना बढ़ जाता है , इसका अहसास भी होता है।

पीछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है जिंदगी कितनी अनोखी होती है और आपको कितने सारे रंग दिखलाती है। बचपन की कई बातें तो आज भी आंखों के सामने इतनी साफ सी है मानो कल की ही बात हो ।हमारी पढ़ाई समुचित हो- इसके लिए मम्मी -पापा हम सब को लेकर गांव से पटना आ गये। उनकी सारी मेहनत , उनका सारा संघर्ष कभी दिमाग से बाहर नहीं हो पाया ।जब कुछ भी उनके लिए ठीक नहीं चल रहा था और सहारे के लिए दूर-दूर तक कोई नहीं था- ऐसी हालात में भी उन्होंने हिम्मत बनाये रखा और परेशानियों की परछाई भी हम पर पड़ने नहीं दी। मां-बाप होते ही ऐसे हैं ।अपनी जिम्मेदारियों का अहसास शायद उस समय ही हो गया था ,इसीलिए अपनी ओर से मैंने मेहनत और लगन में कोई कमी नहीं छोड़ी । आचार्य श्री किशोर कुणाल के संरक्षण में संचालित ज्ञान निकेतन ,पटना से कक्षा 1 से 10 की पढ़ाई की । हर कक्षा में प्रथम ही आता और इसके लिए शिक्षकों और गुरुजनों का विशेष प्रेम और लगाव मिला ।

सीबीएसई में दसवीं कक्षा में 90 प्रतिशत अंक आये जो उस जमाने में कुछ ही लोगों को आते थे । बात 1996 की है। नाना जी कि इच्छा थी कि आगे की पढ़ाई सायंस कॉलेज, पटना में करूँ। उस समय दसवीं के बाद बड़े शहरों की ओर मुड़ जाने का एक ट्रेंड था जिसके नंबर अच्छे आती थे, इसलिए आधे -अधूरे मन से मैंने नाना जी की बात मानी। हालाँकि सायंस कॉलेज के फैराडे हाउस में बिताए गए वो दो साल आज भी अपनी जीवन के सबसे यादगार समय में से हैं। पहली बार अपने- अपने स्कूल के सबसे अच्छे विद्यार्थियों के जमावड़े में खुद को भी खड़ा पाया। इंटरमीडियट के प्रथम वर्ष की परीक्षा में जब मैंने सारे विषयों में टॉप किया तब अपने ऊपर विश्वास काफी बढ़ गया कि इस भीड़ में मैं अपनी जगह बना सकता हूँ। उस पल की खुशी बहुत बड़ी थी जो आज भी रोमांचित कर जाती है ।सायंस कॉलेज के ज्यादातर दोस्त अप आज अपनी क्षेत्र में ऊंचाइयों को छू रहे हैं ।

इंटरमीडियट परीक्षा के नतीजे आने से पहले, अपने पहले ही प्रयास में मेडिकल की दो परीक्षाओं में चयन हो गया – एएफएमसी , पुणे और बिहार राज्य की एनट्रन्स् परीक्षा ।यह एक बड़ी उपलब्धी थी । ‘होम-सिक’ होने की वजह से पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने का निश्चय किया और कहानी बढ़ गई ।एमबीबीएस में कई सारी ऊँचाइयों को छूने का मौका मिला – विषयों में ऑनर्स, कई सारे गोल्ड मेडल और विश्वविद्यालय टॉपर होने का गौरव हासिल हुआ । यह आसान कतई नहीं था लेकिन परिवार का साथ और भगवान के आशीर्वाद ने इसे इतना मुश्किल भी नहीं रखा। घर -परिवार में दूर-दूर तक कोई डॉक्टर पेशे से नहीं था इसलिए मेरी छोटी-छोटी अचीवमेंट को भी सबने उत्साह से सेलिब्रेट किया।

इंटर्नशिप के दौरान ही एमडी में चुनाव हो गया ।ऑल इंडिया में अच्छा रैंक आया और पटना मेडिकल कॉलेज में एमडी (मेडिसिन) की पहली सीट अपनी योग्यता से हासिल की । इसी दौरान मेरी शादी डॉ सरिता से हुई जो एक डेंटिस्ट हैं। सरिता का आना जिंदगी में कई रंग भर लाया।

 

हालॉकि जीवन में हर कुछ अच्छा नहीं होता – कई मुश्किलें भी आती है और मेरी जिंदगी भी इससे अछूती नहीं रही । एमडी करने के दौरान अपने विभागाध्यक्ष द्वारा दिये गये शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर सरिता से शादी करने का नतीजा हुआ कि मुझे खुले आम परीक्षा में अनुत्तीर्ण कर दिया गया और यह बात भी मेरे तक पहुंचाई गई कि एमडी की डिग्री मुझे कभी हासिल करने नहीं दी जाएगी ।अभी तक ऐसी कहानियाँ ही सुनी थी, यकीन नहीं हो रहा था कि कोई शिक्षक ऐसा भी हो सकता है । पता नहीं कितने ‘विकास’ की कहानी यहीं समाप्त हो जाती। यह भी लगता है कि शायद इन्हीं प्रताड़नों से तंग आकर कुछ लोग जान भी दे देते हैं। लेकिन मैं इतना कमजोर कतई नहीं था। हालाँकि यह एक बहुत मुश्किल दौर था और कोई रास्ता नहीं दिखने पर मैंने पटना हाई कोर्ट में एक अर्जी डाली और एक ही निवेदन किया कि टॉपर के साथ मेरी परीक्षा लेकर देख लिया जाये। यदि मैं उससे कम अंक लाता हूँ तो अर्जी खुद वापस ले लूँगा । कोर्ट में इस बात का संज्ञान लिया- अगली परीक्षा के लिए यह सुनिश्चित किया गया कि डॉक्टर्स की एक पूरी टीम होगी और इस बाधा को भी मैंने पार कर लिया – अच्छे अंकों से उत्तीर्ण घोषित हुआ।

 

इसी दौरान जीवन का एक यादगार पल मिला – जब पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम सर से दिल्ली स्थित उनके निवास पर पत्नी के साथ मिलने का मौका मिला। दरअसल हुआ यह था कि एक डिबेट कंपटीशन में सर मुख्य अतिथि थे और अवार्ड देने के समय ही उन्होंने आकर मिलने का निमंत्रण दिया । अब इस मौके को कैसे जाने देता – करीब 45 मिनट सर ने हमारे साथ गुजारे, आगे के गायब प्लान जाने और कई सारे सलाह दिये। इतने खूबसूरत लम्हों को आजतक सहेज कर रखा है।

इसी बीच एक नया और बेहद खूबसूरत रिश्ता मुझसे जुड़ा, मेरे बेटे का आगमन मेरे जीवन में हुआ। दक्ष के आने से सभी रिश्ते और वापस में मजबूत हुए और मेरी सकारात्मक ऊर्जा भी बढी।

 

अगले ही साल मेडिकल साइंस के आखिरी पड़ाव- पोस्ट डॉक्टरेट डिग्री डीएम (कॉर्डियोलॉजी) के लिए लखनऊ स्थित अति प्रतिष्ठित केजीएमसी में दाखिला मिला। पढ़ाई पूरी करके 2013 में ही पटना वापस आकर अपने लोगों के बीच हूँ। पढ़ाई हालाँकि छूटती नहीं- अमेरिका और यूरोप के सबसे प्रतिष्ठित फैलोशिप भी इस दौरान हासिल किया। बिहार के कॉर्डियोलॉजिकल सोसायटी ने ‘यंग कॉर्डियोलॉजिस्ट अवार्ड ‘ से सम्मानित किया और 2018 में डॉक्टर्स की सबसे बड़ी ऑर्गेनाइजेशन- एपीआई बिहार ने ‘बेस्ट स्पीकर अवार्ड’ से नवाजा ।

आपके अपनों का सहयोग , उनका आप पर विश्वास और आपका खुद पर विश्वास- अगर ये मिल जायें तो कुछ नामुमकिन नहीं । कमसे कम मैंने अपने अब तक की जिंदगी में यही सीखा है।

डॉ विकास सिंह
एम.डी,डी.एम,एफ.ए.सी.सी
कंसल्टेंट (कार्डियोलॉजिस्ट)
डायरेक्टर,4ए हार्ट हॉस्पिटल, पटना

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