बुझा नहीं हूँ!

बुझा नहीं हूँ!

जीवन के इस मुकाम पर जब नौकरी-पेशा की उम्र का ३९ वर्षों का अनुभव और बच्चे-परिवार के प्रति कर्तव्य का इतिश्री हो चुका है,बयान करना कठिन है।


फिर भी,दृष्टि बीते दिनों पर जाती है,तो कई घटनाएं और व्यक्तियों का चेहरा प्रत्यक्ष होता है मानस पटल पर।१९७० में बिहार बोर्ड की अंतिम परीक्षा उतीर्ण करना,आठवीं कक्षा से विज्ञान विषय में अध्ययन बीएस.सी.औनर्स प्राणी शास्त्र का अध्ययन।१९७४ के जयप्रकाश आंदोलन में भागीदारी आदि महत्वपूर्ण जीवनानुभव है।विद्यार्थी जीवन आठवीं कक्षा में १९७१ में प्रथम कविता का लेखन श्रीमती इन्दिरा गांधी के वैश्विक शौर्य गाथा पर बंगलादेश के अभ्युदय के पश्चात।आठवीं कक्षा से लगातार कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने और निबंध प्रतियोगिता और वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर मंत्रियों और रोटरी क्लब के द्वारा प्रमाण पत्र प्राप्त करना जीवन में एक भरोसा ,विश्वास और जज्बा पैदा किया।विद्यार्थी जीवन में विद्यालय और गाँव के पुस्तकालय से पुस्तकालयाध्यक्ष होने का लाभ प्राप्त कर प्रेमचंद और समकालीन साहित्यकारों की लगभग १००० पुस्तकों का अध्ययन जीवन में संवेदना और साहित्य का अमिट प्रभाव छोड़ा।
पारिवारिक दायित्व में आकर और जीवनयापन की आपाधापी में स्वावलंबन की भावना से ग्रसित होकर प्राइवेट नौकरी और ट्यूशन से १९७८ से ही खुद को जोड़ लिया।फिर अधूरी शिक्षा को पूरा करने की जद्दोजहद ,पुनः बी.ए.,बी.एड.एम.ए.पीएच् डी.से लेकर एम .एड.२०१७ तक पूरा किया।केन्द्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में पी जी टी की मिली हुई नौकरी परिस्थितिवश छूटने का दर्द कम नहीं है,पर अधिक कष्ट हिन्दी विषय में व्याख्याता पद की नौकरी छूट जाने का है।


प्राथमिक शिक्षक सह पिता जी की मृत्यु आँखों के समक्ष,मृत माँ को नहीं देख पाना और छोटी बहन और बड़े भाई की असमय मृत्यु गहरी संवेदना देती रहती है।जिन रिश्तों को केवल स्नेह और समर्पण से सीचा उसमें सांसरिक व्यवहारिकता और स्वार्थपरता से हृदय पर आघात हुआ वहीं प्रतिस्पर्धा की राजनीति से आवाक हुआ।

सबके बावजूद जीवन में शोधनिदेशक डा.विमलेश कुमार श्रीवास्तव बिहार वि.वि.मुजफ्फरपुर, जैसे नेकदिल इंसान, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जैसे महाकवि का सानिध्य तीन दशक तक जीवन को दशा और दिशा प्रदान किया है। बड़ी पुत्री की उत्कृष्ट प्रतिभा और उसका विवाहोपरांत जीवन में संघर्ष और डा.जूही समर्पिता जैसी आज के युग में विलक्षण विदुषी से भी प्रेरित होता रहा हूँ।जीवन में वैसे कई महान व्यक्तियों का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से गहरा प्रभाव पड़ा ,पर डा.राजेन्द्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति की जीवनी, विवेकानंद का साहित्य, और सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियों का विशेष प्रभाव अपने ऊपर महसूस करता हूँ।

मेरी प्रथम पुस्तक शोधप्रबंध की “भगवती चरण वर्मा की काव्यचेतना1998में प्रकाशित हुई,फिर क्रमशः 2006 में प्रथम कव्य संग्रह”नीड़ से क्षितिज तक” सहित कुल तीन काव्य पुस्तक, दो समीक्षा पुस्तक, एक निबंध पुस्तक और दस पाठ्यक्रम की पुस्तकें।अठ्ठारह पुस्तकें अबतक प्रकाशित हो चुकी हैं और रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान पटना, कला श्री सम्मान, दिल्ली, मुजफ्फरपुर, सहित विश्व हिन्दी परिषद सह भारत सरकार राजभाषा विभाग द्वारा साहित्य सेवा सम्मान प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे मिला है।

मेरी अपनी रचित कुछ पंक्तियां पाथेय बनती हैं—

नहीं ठहरती रात अंधेरी
हर दिन सूरज निकला करता
चलें बंधुवर ,राह है लंबी
करतब अपना करते जाना है”
और
“मैं टूटा नहीं हूँ
झुका नहीं हूँ
गिरा नहीं हूँ
बुझा नहीं हूँ!
और अंत में—–
“सज्जन सरल इंसान बनकर
सौ फिसदी हूँ ठगा -सा
यह सोंच चौराहे
पर फिर-फिर
फिर अकेला मैं खड़ा हूँ।”

डॉ अरुण सज्जन
वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद
सह-प्राध्यापक
डी.बी.एम.एस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
लोयोला स्कूल जमशेदपुर

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