विषाणु कोरोना
कोरोना वायरस की आपदा विश्वव्यापी थी। इस संकट से निपटने में हमारे सक्षम प्रधानमंत्री मोदी जी की दूरदर्शिता और कर्मठता का ही परिणाम था कि हमारे देश में कोरोना वायरस उतनी तेजी से नहीं फैला जैसा अन्य देश में फैला था। मोदी जी ने देश के फस्टफ्रंट पर काम करने वाले सभी डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मचारियों और पुलिस के लिए धन्यवाद देने के लिए भी सब को प्रेरित किया और उनका सम्मान कर उनका मनोबल बढ़ाया। इसके साथ ही देश में २१ दिन की तालाबंदी घोषित हो गई और हम सभी घरों में रहने के लिए अपनी रक्षा हेतु प्रतिबद्ध हो गये।
पति भी घर से ही आॅनलाइन आफिस चलाने लगे और बेटी की भी क्लासेस घर से ही आॅनलाइन शुरू हो गईं। काम करने वाला स्टाफ भी छुट्टी पर चला गया। अब जब सब की छुट्टियां घोषित हो गई थीं तो मेरा काम अचानक बहुत बढ़ गया था। पूरे घर का दारोमदार मेरे ऊपर आ गया था। ऐसे वक्त जब अमूमन सभी लोग अपने समय को कैसे बितायें इस सवाल से जूझ रहे थे मैं अपने लिए समय कैसे निकालूं इसी उहापोह में परेशान थी।
मुझे कुकिंग का शौक बिल्कुल नहीं था और मैं हमेशा इससे बचती रहती थी मगर इस समय मैंने अपने शौक के विपरीत अपने कर्त्तव्य को चुना और कमर कस के किचन का काम अपने ऊपर ले लिया।
सुबह नाश्ते से लेकर रात के खाने तक मेरा काम चलता रहता था। मैंने कोशिश की कि सबकी रुचि के अनुसार ही सबको सबके समय से भोजन उपलब्ध हो और इस दौरान मैंने परिवार को अपने हाथों भोजन करा जो आनंद अनुभव किया वह बयां के बाहर है। मैं अब तक इस आनंद से कैसे वंचित रही इसका मुझे आश्चर्य था । मैं चकित थी कि यह मैंने पहले क्यों नहीं किया। धन्यवाद मोदी जी का जो उन्होंने मुझे इस अद्भुत अनुभव से परिचित कराया और मेरे परिवार के मध्य भी प्रेम सौहार्द बढ़ाने में मदद की। सबको समय था एक दूसरे की बात सुनने का एक दूसरे को और अधिक समझने का। परिवार अब सचमुच परिवार की तरह ही रह रहा था।
इस दौरान मेरा लेखन भी जारी रहा।मेरी दो पुस्तकें छपने की प्रक्रिया में हैं। उनकी एडिटिंग वगैरह भी होती रही साथ ही समाज के प्रति भी अपने दायित्वों से मैं सचेत रही। सोशल मीडिया पर लगातार मैं कोरोनावायरस से सबको सचेत और अपडेट करती रही। मेरे पति सरकारी नौकरी में हैं तो उनकी तनख्वाह से सरकार खुद ही करोना वायरस से लड़ने के लिए फंड में पैसे काट ली थी मगर इस बार मैंने अपनी तरफ से भी अपने छोटे बजट से कुछ धन प्रधानमंत्री फंड में दान किए।
अभी लाॅकडाउन के दस दिन और बाकी हैं आशा है वो भी सकुशल बीत जायेंगे और कुछ नया सिखा जायेंगे।
जल्द ही हमारा देश और संपूर्ण विश्व इस वायरस से मुक्त हों और स्वास्थ लाभ करें इसी आशा और विश्वास के साथ आप सभी को शुभकामनाएं देते हुए मैं यहां इस लेख को विराम देती हूं।
इस अवसर पर मैंने एक कविता भी लिखी है जो आप सबकी नज़र करती हूं, शायद आपको पसंद आए :
विषाणु कोरोना
हे मानव
संभल जा अब भी तू
सृष्टि को न ललकार तू
अब भी हैं तुझ में ढेरों कमी
खुद को भगवान न मान तू
नहीं विजित कर सकता तू जमीं
नहीं मोड़ सकता हवा को अभी
समंदर मे तैराईं कश्तियां बेशक
समंदर फतह हुआ, ना ये समझ
एक अंगड़ाई से ध्वस्त हो जाएगा
नभ जल थल वज़ूद कहीं न मिल पाएगा
तू बस एक ज़र्रा मात्र है
इस ब्रह्माण्ड का आदि न अंत है
तू छोड़ दंभ और स्वीकार कर
एक विषाणु से यूं हार कर
औकात अपनी देख ले
गिरेबान अपनी झांक ले
खिलवाड़ से अब बाज आ
प्रकृति के आगे सर झुका
तेरी पोषक मां है वो
अभिमान उससे मत जता
वह दयामयी करुणानिधि
तुझे माफ कर देगी अभी
जीवन की उससे भीख मांग
कुकर्म अपने सब छोड़ आज
छोड़ प्रकृति से छेड़छाड़
क्रोध उसका न तू सह पाएगा
बेमौत मारा जाएगा
और कुछ न तू कर पाएगा
तू चेत जा अब भी अगर
तू बाज आ अब भी अगर
तो माफ कर दिया जाएगा
वज़ूद तेरा बच पाएगा
डॉ रेणु मिश्रा
साहित्यकार
गुड़गांव