लाल गुलाब
किताब के पन्नों के बीच
रखा है आज भी
तेरा दिया वो लाल गुलाब,
आज भी बसती है उसमें
सुगंध तेरे प्यार की।
समेटे है ना जाने कितनी यादें तुम्हारी,
वक्त ठहरता नहीं,कहीं भी,,, कभी भी।
पर जम गये हैं मेरे हृदय पटल पर
वो बीते हुए प्यारे लम्हें,
जो कभी संग बिताये थे हमने।
कभी हम दो जिस्म एक जान थे
और खाते कसमें साथ निभाने के,
पर वक्त ने हमें जुदा किया
खो गये तुम ना जाने किस
घुप्प गलियारे में,
दिल पुकारता है तुम्हें हर पल
मन खोजता है तुम्हें आज भी
उसी लाल गुलाब में
जो तुमने दिये थे मुझे
कभी प्यार में!
अनिता निधि
साहित्यकार