मातु विनत वंदना हमारी
तुम्हे समर्पित ह्रुदयांतर से ,मातु विनत वंदना हमारी,
अक्षर अक्षर बांध लिया है ,भाव- सुमन मुक्ताहारों से,
स्वर वैभव के गीत रचाकर ,सरगम के स्नेहिल तारों से
विश्वासों का दीप जलाये ,मातु सहज प्रार्थना हमारी .
मातु विनत वंदना हमारी
पाँव भटकतेजग-अरण्य में,मन बोझिल और पथ दुर्गम है,
लक्ष्य शिखर को छू पाना भी,शूल वेदना सा निर्मम है,
एक आशा अभिलाष जगाये ,मातु सरल कल्पना हमारी,
मातु विनत वंदना हमारी
जीवन के अंधियारे तम में ,पथ मेरा आलोकित कर दो,
आज लेखनी के शब्दों में ,नवल चेतना ,ज्योति-प्रखर दो,
आंसू से भीगे गीतों में ,भाव करुण दो,नूतन-स्वर दो,
अनुरागी मन की कविता में मातु मुखर कामना हमारी
मातु विनत वंदना हमारी।
पद्मा मिश्रा
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड