“माँ तेरे सोच जैसा….”
मेरे सारे सपनों को , अपना ही मानकर
मेरी परेशानियों में , हाथ मेरा थामकर
मुझमें वह एक अटूट विश्वास भरती थी
बस , हर वक़्त एक चमत्कार करती थी
कब सोती, कब वह जगती , रब ही जाने
पर , मिन्नतें दुआयें , वह हजार करती थी
अपनी आंखों में सपने कल के पालती थी
किस्मत पर भी वो रह – रह वार करती थी
हजारों ऐब थे मुझमें , नहीं कोई हुनर था
हर कमी को खूबी में तब्दील वह कर दी थी
मैं कुछ भी तो नहीं, बस खारे समंदर सा था
रहमतों से अपनी एक मीठी झील कर दी थी
उनकी पहचान क्या , उसकी अरमान क्या
और वो क्या, सब उसने मेरे नाम कर दी थी
यह सब हैं मेरे बचपन की बातें , कुछ यादें
आज मैं जैसा हूँ , जितना हूँ , सब तेरी कृपा
“अंश हूँ मैं माँ तेरा” , बिल्कुल ही हूँ तेरे जैसा
अजय हूँ अजय ही रहूँगा, ‘माँ तेरे सोच जैसा’
…..अजय मुस्कान
*जब – जब भी आपको देखता हूँ, सोचता हूँ*
*तब -तब होंठों पर एक ही फ़रियाद आती है*
*भगवान ! आपको जिंदगी में हर ख़ुशी दे दे*
*क्योंकि..हमारी ख़ुशी आपके बाद आती है।*