माँ!!तुझ से ही तो…
जीवन में उजाला था,
तेरे बगैर खुद को…
बड़ी मुश्किल से संभाला था।
तुम अटूट बंधन….
एक मजबूत स्तंभ थी,
झकझोरती हुई संवेदना…
अनवरत बहती धारा थी।
तेरी आँचल में ही तो…
हंस के,रो के…
सारा बचपन गुजारा था,
तेरे बगैर खुद को…
बड़ी मुश्किल से संभाला था।
ना जाने कितने जन्मों से…
अनचाही यातनाएं सहती ही रही,
फिर भी जननी बन सदैव…
भाग्य पर इतराती ही रही।
दुःख की हर घड़ी में…
तुझको ही तो पुकारा था,
तेरे बगैर खुद को…
बड़ी मुश्किल से संभाला था।
जाने कहाँ से पायी थी…
धरती सी सहनशक्ति,
दया, करुणा, स्नेह और…
ममता की प्रतिमूर्ति।
हमने तो तुझ -सा…
कहाँ कुछ भी पाया था??
तेरे बगैर खुद को…
बड़ी मुश्किल से संभाला था।
जैसे गई…
वैसे तो न जाना था।
ज्यादा ना सही…
कुछ पल तो ठहरना था।
सुहागिन विदाई की कामना ने,
पहली बार तुझे…
स्वार्थी बना डाला था।
तेरे बगैर खुद को…
बड़ी मुश्किल से सम्भाला था।
डॉ सुधा सहज