महिला सशक्त भी है और सक्षम भी
महिला सशक्तिकरण और सक्षमीकरण की नारेबाजियों का दौर है। जो मन में अनेक विचारों को जन्म देता है।
मैं स्वयं एक स्त्री हूँ,.. स्त्री वर्ग के लिए आगे आकर कार्य करती हूँ, सृजन के क्षेत्र में स्त्री विमर्श से बचती हूँ क्योंकि मैं स्त्री पुरुष के विमर्श की बजाय मानव विमर्श की पक्षधर हूँ। मेरी कुछ रचनाएँ (जैसे मानव विमर्श, मैं स्त्री हूँ, चारदीवारी, संकल्प, सृजन शब्द से शक्ति का, अब वक्त आ गया उठा शमशीर, ऐसा ही क्यों सोचा जाए, समीकरण बदल गए हैं, काश! कभी सोचा होता,.. आदि इत्यादि) स्त्री की क्षमताओं के साथ स्त्री को पुरुष के समकक्ष स्थापित करने के लिए एक प्रयास, एक दिशा, एक सोच का प्रतिरुप है।
मैं सशक्तिकरण की पक्षधर बिल्कुल नहीं हूँ क्योंकि मैं ये मानती हूँ कि खुद को अबला या कमजोर मानने वाली स्त्री को सिर्फ ये अहसास दिलाना है कि वह कमजोर नहीं है क्योंकि वह सृष्टि की कर्णधार है।
स्त्री रचेगी नहीं तो सृष्टि बसेगी नहीं
ये कटु सत्य है।
पुरुष का पौरुष तभी सार्थक है जब स्त्री समर्पित होकर उसके पौरुष को स्वीकार कर अंगीकृत करे। बलात्कार, व्यभिचार, अत्याचार, गर्भपात आदि सभी नकारात्मक तत्व एक विशाल सुखद सामाजिक व्यवस्था में मात्र घुन की तरह है जो कि सावधानी और सुरक्षा के थोड़े से उद्यम से रोके जा सकते हैं। जिसके लिए हर बार पुरुष वर्ग को कोस कर सहानुभूति बटोरने की बजाय स्त्री को अपना सशक्त स्वरूप जागृत रखकर खुद जे प्रति आपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वाह करना होगा।
महिला कमज़ोर नहीं है हम उचित शिक्षा और सजग प्रयासों से समाज में अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठाने में समर्थ हैं इसलिए सशक्तिकरण किसलिए?? हाँ! हमें हमारा सामाजिक परिवेश सक्षम नहीं होने देता जिसके कारण समर्थ होते हुए भी हम अपने लिए, परिवार, समाज और देश के लिए कुछ कर पाने से चूक जाते हैं। इसलिए हमें जरूरत सक्षमीकरण की है।
महिला सशक्त है और अपनी शक्तियों का समझने के लिए अनिवार्य है स्त्री शिक्षा और आत्मनिर्भरता। स्त्री पढ़ेगी तभी शिक्षित भविष्य गढ़ेगी और स्त्री अपने पैरों पर खड़ी होगी तभी चलने की हिम्मत कर पाएगी।
बचपन से कूट कूट कर संस्कार भरे जाते हैं स्त्री को पराया धन कहकर जबकि स्वाभिमान एक अनिवार्य संस्कार होना सबसे जरूरी है।
स्त्री को स्त्री का प्रतिद्वंदी बनाती सामाजिक व्यवस्था ‘फूट डालो राज करो’ जैसी नीतियों की परिचायक है। स्त्री को स्त्री की पीड़ा समझकर पुरुष प्रधानता वाले समाज का नाव निर्माण करना होगा।
स्त्री को सशक्त करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है कि स्त्री सशक्त है ये वो भी समझ जाए और पुरुषवर्ग भी और इसके लिए जरूरी है कि स्त्री समर्थ हो, सक्षम हो, अपने अधिकारों के प्रति सजग हो और खुद को खुद की परिस्थितियों के लिए उत्तरदायी माने।
अब सवाल ये है कि कैसे होगा सक्षमीकरण? कौन से क्षेत्र हैं जहाँ स्त्री अपनी आर्थिक निर्भरता को खत्म कर सके, जिससे अपने निर्णय लेने में समर्थ हो।
सक्षमीकरण के कारक
शिक्षा
अर्थ
आत्मविश्वास
अपनों का प्रेम, सहयोग और विश्वास
सक्षमीकरण के उपाय एवं क्षेत्र
शिक्षा संबंधी कार्य जैसे शिक्षण, प्रशिक्षण, ट्यूशन, कोचिंग, आंगनवाड़ी, बालगृह , पालनाघर आदि कार्य में सहयोगी या सहभागी बनना।
लघु उद्योग , गृह उद्योग, कुटीर उद्योग आदि आरम्भ करना या उनसे जुड़कर काम करना।
ऑनलाइन बिज़नेस में उत्पादों के क्रय-विक्रय से जुड़ना और लोगों को उससे जोड़ना।
लेखन, प्रकाशन, और मीडिया से जुड़े कार्यों में सक्रिय होना।
ब्लॉग और ईबुक का प्रकाशन करना।
ऑनलाइन डेटा सेविंग और टंकण, प्रूफ रीडिंग आदि का कार्य करना।
चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ. नर्सिंग, फिजियोथेरेपी, एक्युप्रेशर आदि से जुड़ना।
राजनीति, समाजसुधारक और प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में कार्य करना।
ऐसे ही अनेक कार्य हैं जो कि महिला सक्षमीकरण ने सहायक होंगे। इन सभी क्षेत्रों में योग्यतानुसार कर्मचारियों से मालिक तक सभी तरह के ओहदों पर महिलाएं काम कर सकती हैं।
तो आइए अनेकता में एकता की विशेषता लिए भारत देश की आधी आबादी को सशक्त और सक्षम बनाकर पुराने सभी मिथकों को तोड़कर नए आयाम स्थापित करें और साबित कर दें कि महिला सशक्त भी है और सक्षम भी तभी शायद सशक्तिकरण और सक्षमीकरण की नारेबाजियां बंद हो और स्त्री पुरुष के नए समीकरण समाज और देश में स्थापित हो सके।
डॉ.प्रीति सुराना
वरिष्ठ साहित्यकार और संपादक
संस्थापक अन्तरा-शब्दशक्ति