मधुमास

मधुमास

मधुर मधुर मधुमास खिला
मन पुलकित उल्लास मिला।

भासमान है सूर्य बिम्ब
चल रहा साथ निज प्रतिबिम्ब।

प्रकृति ओढ़ी है नव दुकूल
मन में उठते हैं भाव फूल।

कोकिला करे कुहू पुकार
गायें भी भरती हुंकार।

मन वासंती जागे उमंग
बह रही ख़ुशी की नव तरंग।

दे रही थाप गोरी पी के संग
चढ़ रहा प्रेम का पीत रंग।

नव विहान ले रहा वितान
जलद से शोभित आसमान।

शोभायमान है निशीथ चन्द्र
उठती लहरें ज्यों बीच समुन्द्र।

दीप्तिमान हुई तरावालि
उपवन में विकसित कुसुमावलि।

करे हिलोर मन जिजीविषा
छाए हरीतिमा है अभिलाषा।

 

नीरजा मेहता ‘कमलिनी’
वरिष्ठ साहित्यकार

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