बेटा मजदूरिन का

बेटा मजदूरिन का

एक बेटा मजदूरिन का,
मुँह ना देखा था पिता का।
दहलीज पर झोपड़ी के,
था ,तरसता भूख से,
तलाशती आँखों से माँ को,
हर चेहरे को निहारती।
थकी पलकों को सहला जाती,
नींद अपने आँचल में।
कभी जागता कभी सोता।
ना जाने माँ कब आयेगी।
सिने से लगायेगी, लाल को
एक था भूखा भिखारी,
बूढ़ा पर था इन्सान ।
भूखा भूख मिटाये कैसे
रोते, तड़पते नौनिहाल का।
गोद में ले पुचकार रहा।
कर रहा रखवाली उस लाल का।

बाल मजदूर

हम नन्हें बच्चे नादान।
कोमल,नाजुक नन्हीं जान।
ईश्वर के है हम वरदान,
हमें किये हैं तुमको दान।
पालन पोषण करो हमारा।
हम तेरे आँखों का तारा।
वीज तुम्हारे आंगन के है।
सींच-सींच के हमें उगाना,
पौधे से तुम पेड़ बनाना।
फल फूल तुम्हें मैं दूगा।
अपने छाओं में पालूगा।
थोड़ा बड़ा होने दो हमको
फिर ना होगा गम तुमको
खुब मजदूरी करेगें हम,
जी जान लगा के दम
जब तक हूं बालक नादान,
नही कराना हमसे काम।
सुनों हमारे जन्मदाता,
करो आज हमसे ये वादा,

छाया प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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