प्रेम की पूरकता

प्रेम की पूरकता

तुम कोई गीत लिखो
तुम कोई गीत लिखो, और मै गाऊं,
गीत माटी के, गीत फसलों के,
गीत सुबह-शाम ,गोधूली-विहान के.
तुम कोई सूरज गढ़ों, और मै ..
किरणों का परचम सजाऊं,
मन की मञ्जूषा में यादों के साये हैं,
भूले बिसरे नगमे बादल बन छाये हैं,
जीवन के आँगन में तुम,
सावन की पहली फुहार बन बरसो,
और मै बूंदों की पालकी उठाऊं
भावना के मंदिर में देवता विराजे हैं,
प्रिय की अभ्यर्थना में,
साज सभी साजे हैं,
सूने मन मंदिर में तुम,
पूनम का चाँद बनो,
और मै, आशाओं की चांदनी बिछाऊं,
नदिया ने सीखा है ,केवल बहते जाना,
लहरों की सरगम पर सपने बुनते जाना,
नैनो की गागर में,
सागर सा प्यार लिए,
बादल सा राग बनो,
और मै मनुहारों की रागिनी सुनाऊं,
तुम कोई गीत रचो, और मै गाऊं।

पद्मा मिश्रा
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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