पुत्री को पत्र

पुत्री को पत्र

प्रिय तान्या
खुश रहो

कुछ दिनों से देख रही हूँ तुम बीच बीच में बहुत भावुक हो जाती हो।कल ही तुमने बातों बातों में मुझसे कहा कि माँ कभी-कभी लगता है मैं तुम्हारेजैसी होती जा रही हूँ। अब तो वही सब करने लगी हूँ जिनका मैं कभी मजाक बनाया करती थी। माँ तुम्हारा दर्द अब मुझे अपना सा लगता है।राह देखती तुम्हारी आँखें अब मेरी आँखों में बदल गई हैं। वर्षों तक जिस उपेक्षा को तुमने झेला अब मैं झेल रही हूँ
तुम्हारी तरह ।खुद को मैं तुम्हारे स्थान पर पाती हूँ।ऐसा क्यों हो रहा है माँ? सुनकर पहले  तो कुछ  अच्छा भी लगा पर बाद में मैं सोच में पड़ गई।यादों में डूबती उतरती मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहूँ फिर सोचा कि पत्र लिखूँ शायद पत्र में मैं अपने मन की बातें अच्छी तरह से
समझा पाऊँ,कह पाऊँ। तुम्हारी बातों ने मुझे अतीत में पहुँचा दिया है।मीठी यादें तो बहुत अच्छी लगती हैं पर कुछ ऐसी भी हैं जो कतई अच्छी नहीं हैं उन्हें बदलना चाहती हूँ।नहीं  चाहती वे तुम्हारे जीवन में घटें , दोहराई जाएं।

तुम्हारे बचपन की याद आते ही अनायास ही होंठों पर मुस्कान आजाती है।तुम्हारा वो मन लगा कर पढ़ना।हर कक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होना। प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कार जीतना।कितना आल्हादकारी समय था वह।उन पलों को फिर से जीना चाहती हूँ।वह तुम्हारा हर साल साइकिल की फरमाइश करना और न मिलने की स्थिति में भी कुछ न कहना।मन तो करता है उन सभी चीजों का ढ़ेर लगा दूं जो उस वक्त तुम्हारे मन में थीं।
काश!उस समय को मैं फिर से जिऊँ पर अपनी
शर्तो पर। ठीक से तो याद नहीं पर बहुत सी बातें उस तरह से नहीं हुईं जैसा में चाहती थी।लोगों का कहना है मैं तुम्हें अच्छी तरह से ट्रेनिंग नहीं दे पाई । कोशिश तो पूरी की थी अपनी तरफ से पर कोई भी इन्सान पूरी तरह से पारंगत कहाँ हो पाता है।एक दिन अचानक तुमने ससुराल से फोन किया और कहा कि मम्मी मुझे अनरसे  बनाने हैं कैसे बनाऊँ? अगर ठीक नहीं बने तो… विधि तो मैंने बता दी पर कई दिनों तक यह विचार सताता रहा कि मैं शायद अच्छी माँ नही बन पाई।

सोचकर हँसी तो आ रही है पर कितना अच्छा हो
मैं एकबार फिर से तुम्हारी माँ बनूँ।उन अहसासों को फिर से जिऊँ पर उसी तरह जैसा मैं चाहती हूँ।  अपने उदर में उन मासूम धड़कनों को फिर से सुनूँ,स्पन्दन को फिर से महसूस करूँ।प्रसव पीड़ा को फिर से सहूँ पर डर के साथ नहीं, साहस के साथ।प्रथम स्पर्श की अनूभूति को फिर अनुभव करूँ।तुम्हारे साथ बिताए हर पल को सजगता के साथ आनन्दपूर्वक महसूस करूँ। तुम्हारी हँसी, रुदन, उदासी, खुशी हर भाव के साथ जिऊँ।तुम्हारी बालसुलभ क्रीड़ाओं का आनन्द लूँ और तुमसी ही बन जाऊँ।

प्रिय तान्या मैं नहीं चाहती तुम परम्परा की उसी
पगडंडी पर चलो।चाहूंगी तुम अपनी राह खुद चुनों और उस पर चलो।अत्याचार एवं तिरस्कार को कभी
न सहो।सम्मान के साथ जिओ। जीवन केवल एकबार मिलता है। भरपूर जिओ और दूसरों को भी  जीने के लिए प्रेरित करो।अभी बस इतना ही।

स्नेह के साथ

तुम्हारी माँँ

 

आनन्द बाला शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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