पहले मैं इंसान हूँ

पहले मैं इंसान हूँ

पहले मैं इंसान हूँ
फिर नारी हूँ
बेटी हूँ बहन हूँ पत्नी हूँ माँ हूँ
दोस्त हूँ दुश्मन हूँ रिश्वतों का दरीचा हूँ
जानती हूँ हज़ारों खामियां हैं मुझमें
पर जैसी हूँ अच्छी हूँ आखिर इंसान हूँ
देखती हूँ खुद को खुद की निग़ाहों से
अपूर्ण हो कर भी खुद में मैं पूर्ण हूँ
हवा का झोका हूँ फूलों की खुशबू हूँ
बसंती बहार हूँ तो सहरा सी वीरान हूँ
देवता नहीं हो तुम तो न समझो देवी भी मुझे
मेरे सभी ऐबों संग स्वीकार कर सको मुझे
अपनी सारी असफलताओं का जश्न‌
मैं मनाती हूँ
अपने औरत होने का उत्सव आज करतीं हूँ

डॉ रेणु मिश्रा

साहित्यकार

गुडगांव

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