पहचानने स्वयं को
अधिकतर लोगों को कहते सुना है कि मेरी इससे जान -पहचान है ,मेरी उससे जान -पहचान है ।मेरी ऊँचे स्तर तक जान -पहचान है ।कई लोगों से मेरे संबंध हैं तो यह बहुत अच्छी बात है ।आपका यह गुण है कि आप बहुत लोगों को जानते हैं ,आपकी पहचान का दायरा बहुत विस्तृत है ।सही भी है ,आज के समय में कौन ,कब ,किसके काम आ जाये ,कोई कह नहीं सकता । लेकिन कभी आपको यह नहीं लगता कि आपकी स्वयं से कितनी पहचान है ? आप अपने आप को कितना जानते हैं ? क्या आपने कभी इसके लिये प्रयास किया है स्वयं को पहचानने की ?
क्या आप इन सब जान -पहचान के संबंधों को ढोते -ढोते थक नहीं जाते ? झुँझला नहीं जाते ? यदि नहीं तो आप में अद्भुत क्षमता है ,सबको सहने ,सुनने ,समझने की । आप सभी के साथ सामजस्य कर लेते हैं । बहुत अच्छी बात है किंतु एक बार अपने अंतर्मन में झाँक कर देखिये , इनमें से कितने लोगों को आप शत -प्रतिशत जानते हैं ? उनकी इच्छाएँ ,शौक़ , रुचियाँ ,जीवन -शैली ,समस्याएँ ,आदतें , क्या और कितना जानते हैं ? तो उत्तर होगा ..नहीं , सबके बारें में नहीं , कुछ चंद लोगों के बारे में ही , जो आपके निकट हैं ,जो ख़ास हैं ।यह ज़रूरी भी नहीं कि ,आप सबके बारे में जाने और समझे, क्योंकि किसी के पास अतिरिक्त समय नही है ।इससे बेहतर है कि आप अपने आप को जानिये ।स्वयं से स्वयं की पहचान करायें ।तब देखिये ,आप कितने ख़ुश रह सकते हैं ।चिंता मुक्त होकर जीवन जी सकते हैं । जीवन का आनंद उठा सकते है।
क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि आपको किन बातों से ख़ुशी मिलती है ? किन बातों से ग़ुस्सा आता है ? तो कृपया ग़ौर करें ,स्वयं से स्वयं की पहचान कराना बेहद आवश्यक है । जब आप अपने भीतर की गहराइयों तक उतरेंगें तब आपको अपने भीतर कई प्रकार के माणिक्य मिलेंगे , जो आपकी अपने आप से पहचान कराने में सहायक होगें ।
तो फिर देर किस बात की ?ज़रा सोचिये ! कहीं दूसरों से अधिक जान -पहचान के चक्कर में आप अपने आप से दूर तो नहीं होते जा रहे ? समन्वय और संतुलन ,
भर देते जीवन में ख़ुशियों के रंग की तलाश स्वयं से पहचान से ही संभव है।
इंदु गांधी
जमशेदपुर, झारखंड