पवित्र प्रेम
प्रेम, इश्क़, मुहब्बत महज़ शब्द नहीं होते
इसमें निहित होता है किसी का एहसास
कई ‘सुनहरे ख़्वाब’,
कुछ खट्ठी मीठी ‘स्मृतियाँ’
प्रेम एक पल में
किसी एक व्यक्ति से होने वाली
”क्षणिक अनुभूति” होता है।
जहाँ निहित होता है निःस्वार्थ ”समर्पण’
देह से परे दो आत्माओं का ”अर्पण”
एक ”विश्वास” समाहित होता है इन शब्दों में
कहीं अपनापन का एहसास छुपा होता है
इन शब्दों में,
हाँ ये महज शब्द नहीं होते,
आकर्षण से परे मन की
”उच्च अवस्था” को दर्शाता है प्रेम।
अनंत असीम हर स्वार्थ से परे
जो बंधता नहीं शब्दों में,
नहीं व्यक्त होता लफ़्ज़ों में
हृदय की सरल अभिव्यक्ति जो
प्रकाशित करता है ”अंतर्मन” को
आह्लादित करता है रोम रोम को
अकल्पित रंगो का ”शाश्वत रूप”
एतबार की नींव पर टिका ये पावन पवित्र रिश्ता
बस मुख़र होता है एक ‘प्रणय निवेदन’
सर्वस्व समर्पण का विशुद्ध भाव
जहाँ निहित होता है श्रद्धा का अर्पण,
प्रतिबिम्बित होता आशाओं का दर्पण,
प्रेम अनंत विस्तार लिए
धरा का धैर्य लिए,
हर बंधन से परे ”विशुद्ध शाश्वत”
इन शब्दों में निहित होता है एकरूपता
कभी न टूटने वाला ”एक यक़ीन’
प्रेम में भरा होता है हृदय की अभिव्यक्ति
असीम संवेदना,
पवित्रता का एक ”अलौकिक एहसास”
जो अद्भुत प्रेरणा से हृदय को
ओत प्रोत करता है।
जहाँ संवाद मौन हो जाता है।
”देह से परे” बस दो आत्माओं का
”विशुद्ध मिलन” होता है
कहते हैं ”सच्चा प्रेम’ कभी पूर्ण नहीं होता
वो सदैव अधूरा रहता है,
प्रेम जीना चाहता है वो मरना नहीं चाहता
क्यूंकि,….
प्रेम की पूर्णता प्रेम की समाप्ति होती है,
जहाँ प्रेम की अनुभूति महका जाता है रोम रोम
चंदन सरीखा।
वहीँ ढाई आख़र के शब्द हमें बांधते है
एक दूजे से
उस मन्नत के धागे की तरह
ओठ पर सजे पाक़ दुआओं की तरह!!
मणि बेन द्विवेदी
साहित्यकार
वाराणसी , उत्तर प्रदेश