पलायन

पलायन

पलायन क्यों?
खतरे से घबराना क्यूं??
क्यों का कोई अर्थ नहीं,
तुम्हें लगता कि…..
हम जा रहे उस ओर,
जहां कुछ तो होगा !!
पर !
यह पलायन जरूरी नहीं,
पूरा देश हमारे साथ है,
फिर क्यों?
आपदा व विपत्ति से घबराना,
आग्रह है सुरक्षा का,
दायित्व हमें निभाना है,
दुःख की घड़ी में भारत मां को,
कोरोना महामारी से बचाना है,
रोक लो !!!!!
बढ़ते कदम पलायन के,
मौत को पीछे छोड़ दो,
गृहत्याग की मत सोचो,
अब पलायन नहीं, प्रयास करो,
महामारी से बचने का, अथक प्रयास करो,
मौत से अब सौदा नहीं,
दूरियां जरूरी हैं,
घर में रहना बहुत जरूरी है,
जनहित में काम करना है,
सरकार सुविधाएं दे रहीं हैं,
पलायन से सब बचके रहो,
देश के रखवाले तुम,
सजग हो पुकार लो,
सुनने वाली सरकार है,
किसी का अब भय नहीं,
निडर बन पलायन न करो,
यही अंतिम प्रयास है,
कोरोना से खुद को बचाने का,
दूरियां कायम करो,
धैर्य सब प्रबल करो,
न रहेगा कोई ग़म हमें,
देश पे विपदा आई है,
एक-एक योद्धा जंग लड़ रहा,
महामारी को भगाने का,
सामाजिक दूरी बनाना है,
सख्ती से घर में रहना है,
“एकला चलो रे”
इस सिद्धांत पे चलना है,
अब पलायन नहीं,
पर!!!!!
सजग प्रहरी बनना है,
अब और नहीं…
मरने देंगे कोरोना महामारी से,
हर ओर सन्नाटा है पसरा,
पर खोना नहीं धैर्य अपना,
अटल संकल्प है लेना,
“पलायन”नहीं है करने का…

पद्मा प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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