पधारो हे अतिथि

पधारो हे अतिथि

नववर्ष कुसुम हुआ है आज पुष्पित पल्लवित,
देखो मोरे घर आंगन द्वारे
उजास प्रकाश का स्त्रोत सांझ सकारे
पधारो हे अतिथि अभिनंदन तुम्हारा
इनकी सुगंध और निराली अदाएं
बरसातीं हैं लिए, मेह नेह, इनकी हवाएँ
दवाओं से बढकर करतीं असर इनकी अप्रतिम अदाएं
अलौकिक दुआएं,
ये चांद रातों में, अमृत बरसाएं, झूमें गाएं
किसी सुबह की सुहानी मोड़ पर
ज्योतिबिंदु की किरणें, इनकी पोर पोर पर
स्नेहिल स्निग्ध पल्लवी, छितराती, बिखेरती
,झिलमिल चांदनी की आभा, रूहों पर
अपना अमित अमिट असर
करती हर नकारात्मकताओ को बेअसर
तितलियों ने डाला डेरा, हुई आकृष्ट, बंधी मोह के डोर
चुपचाप मौन हो टुक टुक निहारती
भूले, न मचाती शोर
मुस्कुराती,नजरें मिलाती, जीवन का नव संगीत गाती
हंसना सीखो हमसे, ये हंस हंस कर यूं बताती
अभिलाषित, आनंदित, उत्साहित, ये ओस बिंदु स्वाती
इठलातीं, बलखातीं, दिनोंदिन निखरती जाती
कभी अलसाती, दुलार खातीं,हठात हठात
खिलखिलातीं, जीवन धर्म निभातीं
अनुरागिनी, यें अनुरंगिनी, जीवन संगिनी
बचपन और बचपना की निर्दोषता
और असीम शांति को गले लगातीं
प्रेम प्यार पातीं, संग संग, साथ साथ अथाह लुटातीं
ये स्वर्ग के खजानों से ईश्वर का संदेश लाती
हां, लातीं अनुपम पाती
हां लातीं अलौकिक पाती
जलाती पुनः पुनः लौ, जगाती ज्योत
दिलों के दियों की बाती।।

बालिका सेनगुप्ता
साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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