नारी का अस्तित्व
हां मैं भी चाहती हूँ अपनी पहचान बनाना!
चाहती हूँ अपना अस्तित्व स्थापित करना!
ढूंढती हूँ हर गली,हर मोड़ पर!
अपने अतीत में,
मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ…..??
कभी बेटी,,,कभी बहन,…
कभी बहु और कभी पत्नी,..
ना जाने कितने नामों से मैं पहचानी जाती हूँ!
पर ढूंढती हूँ अपनी असली पहचान,…..
मैंने महसूस किया,मैंने पाया,…
मेरी पहचान बहुत ”सबल” है!
हाँ मैं ”नारी हूँ”
मेरी पहचान सृष्टि की रचयिता के रूप में है!
मेरे बिना सृष्टि का निर्माण अधूरा है!
मेरी पहचान ”सहनशील” के रूप में है,
मैं असह्य पीड़ा सह सकती हूँ!
मैं जानी जाती हूँ एक ”संयमा” के रूप में!
मैं हर कठिन पल में संयम रखती हूँ!
मेरी पहचान एक ”माँ” के रूप में है।
मैं सम्पूर्ण सृष्टि की जननी हूँ!
मेरी पहचान ”शक्ति” के रूप में है!
मैं अपने बच्चो के लिए असीम ”शक्ति” धारण करती हूँ!
अपने बच्चों का अहित करने वालों को समूल नष्ट करती हूँ!
मैं ”धैर्य” को धारण करने वाली हूँ!
मेरी पहचान ”पृथ्वी” के रूप में है!
मैं समूल सृष्टि को धारण की हुयी हूँ!
कभी उफ्फ्फ नहीं करती!
मेरी पहचान ”अर्पणा” के रूप में है!
मैं ”समर्पित” हूँ अपनों के लिए!
मैं पालनहार के रूप में पहचानी जाती हूँ!!
मैं अबला नहीं,…..
मेरी पहचान सबला के रूप में है!!
हाँ मैं सबला हूँ!!
मणि बेन द्विवेदी
साहित्यकार
उत्तर प्रदेश