देश सर्वोपरि

 

देश सर्वोपरि

देश है घर मेरा देश है घर तेरा
फिक्र खुद की अगर है बचा लो इसे
राह रौशन रहे चाह रौशन रहे
तुम बनो सारथी और सँभालो इसे !

गाय ,गंगा , हिमालय की हो आरती ,
माँ से बढ़कर है हम सब की माँ भारती ,
आओ वंदन करें अभिनंदन करें ,
माटी चंदन है सर पे सजा लो इसे !!

देश है घर मेरा देश है घर तेरा …..

राम धुन से हो गुंजित अवध की डगर ,
यमुना की लहर , आरती का पहर ,
वेद फिर से पढें देश फिर से गढें ,
फिर से सतयुग की धरती बना दो इसे !!

देश है घर मेरा देश है घर तेरा
फिक्र खुद की अगर है बचा लो इसे !

 

 

मिलकर चलना होगा तंत्र को जनता के साथ

स्वतंत्रता के इतने सालों बाद और गणतंत्र राष्ट्र का अभिमान जीने के बावजूद अब यह आत्ममंथन जरूरी है कि तंत्र किस हद तक गण के साथ है और देश का है । अर्थात जो हमारे रहनुमा हैं वो जनता- जनार्दन के लिए किस हद तक ईमानदार हैं । देश कोई जमीन का टुकड़ा भर नहीं है बल्कि यह कर्तव्यनिष्ठ जनता की देशभक्ति और उम्मीदों से लबरेज जज्बे की जमीन है । राष्ट्र के विकास के लिए जरूरी है कि प्रशासन का हर अंग हर तंत्र जनता को उनके जीवन की सुरक्षा के लिए एक निम्नतम सुविधाएँ मुहैया कराएँ । आधारभूत आवश्यकताएँ हर नागरिक के लिए जरूरी होती हैं । लोगों को अपने देश से इतनी अपेक्षा तो होती ही है कि उसे एक सुरक्षित और सौहार्दपूर्ण वातावरण मिले , ताकि वह अपनी योग्यता के अनुसार अपने जीविकोपार्जन की व्यवस्था कर सके ।

जिस राष्ट्र में जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई है वहाँ अमन-चैन की गंगा प्रवाहित है । समस्या तब पैदा होती है जब गरीबी और बेरोजगारी का आलम बनने लगता है । इसमें तनिक भी संशय नही है कि “भूखा पेट अपराध करता है और खाली जेब गुनाहगार होती है ! ”
इस कड़वी सच्चाई को ध्यान में रखते हुए सरकार को सबसे पहले शिक्षा और रोजगार के अवसर को दुरूस्त करना होगा । युवाओं की ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक दिशा में हो , इस बात की ताकीद करनी होगी ।

 

पर जनतांत्रिक व्यवस्था की खुशहाली सिर्फ एक पक्ष पर तो निर्भर नहीं करती । जनता को भी अपनी जवाबदेही तय करनी होगी । अधिकारों के साथ -साथ कर्तव्य को पूरा करने की मानसिकता तैयार करनी चाहिए । जिन देशों की सामाजिक व्यवस्था उन्नत है वहीं की अर्थव्यवस्था समृद्ध है और सामाजिक व्यवस्था का सुदृढ होना हर व्यक्ति की सोच और विचार पर निर्भर है । यदि राष्ट्रभक्ति और कर्मठता हर नागरिक की विचारधारा हो तो देश की जड़ें खुद ब खुद मजबूत हो जाएगी । अब जबकि हमने देश को विश्वगुरू बनाने का स्वप्न देखा है तो जरूरी है कि देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन हम संजीदगी से करें ताकि विश्व के नक्शे पर यह राष्ट्र आदर्श बनकर उभरे।

 

डॉ कल्याणी कबीर
साहित्यकार और शिक्षाविद
जमशेदपुर,झारखंड

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