जागें फिर हम भारत वासी!

जागें फिर हम भारत वासी!

जागें फिर हम भारतवासी,
हे,महाकाल, पर्वतवासी।
धर रुद्ररुप घट-घटवासी,
जागें फिर हम भारतवासी।

भारत पर संकट छाया है,
फिर रक्तबीज बन आया है।
अब रक्षक बन काशी वासी,
जागें फिर हम भारत वासी।

वोट बैंक के बीच भंवर में,
जाति-धर्म हैं सब के प्यादे ।
अब भारत माँ इनकी दासी!
जागें फिर हम भारत वासी।

है हंस चुगता दाना,मुक्ता ,
खाता कौआ हे,कैलासी।
तांडव रुप धरो हिमवासी,
जागें फिर हम भारतवासी।

हे महाकाल,तूँ हो विराट,
नटवर,शंभू औघड़दानी।
हे,नीलकंठ, डमरुधारी,
हम रहें सिर्फ भारतवासी।

प्रभु ,मरघट धुनि रमाया था,
प्रभु,भूत-दूत नचाया था।
इन्हें मर्दन कर पर्वतवासी,
जागें,फिर हम भारत वासी।

जागें फिर हम भारतवासी!

डॉ अरुण सज्जन
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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