जब टूट गया था बांध
कहीं दूर आंखों की पुतलियों के
क्षितिज के पार
जब टूट गया था बांध
उस रोज….
नमक… समुद्र हो गया था..
मन डूबा था
अथाह जलराशि
की सीमाहीन धैर्य तोड़ती
सीमाएं
एक सीप के एहसासों के
कवच में जा समायी थी
और जन्म
हो गया था
एक स्वेत बिंदु
मोती
निष्कलुष
निष्कपट
निष्कंटक
परंतु
निष्कासित
निष्कर्ष
नमक
समुद्र.. जो हो गया था
नमकीन था जीहवा
का स्वाद
और मीठास
कहीं
ख्वाबों
से
भी गायब…
कहा न..
एक नमक कण ..
…… समुद्र हो गया था…!
बालिका सेनगुप्ता,
त्रिभाषी कवियित्री एवं लेखिका, अधिवक्ता एवं मोटिवेशनल काउंसलर