जज्बा तो बहुत हैं आधी आबादी में

जज्बा तो बहुत हैं आधी आबादी में

अतीत की ओर पीछे मुड़कर जब हम देखते हैं तो गणतंत्र शब्द बहुत पुराना हैं ,वैदिक युग से पूर्व राजाओं का शासन हुआ करता था। लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण लोगों ने शासन प्रणाली में बदलाव के लिए प्रजातंत्र में शासन की स्थापना की। गण का मुख्य अर्थ समूह है और इसलिए गणराज्य का अर्थ था लोगों के समूहों द्वारा संचालित राज्य। पाणिनि ने भी संघ शब्द से गण का अभिप्राय माना है लेकिन यहां धार्मिक संघों ने धार्मिक संघों के रूप में संघ का प्रयोग किया है। बाद में इन्हीं धार्मिक संघों का अनुकरण राजनीतिक संघों ने किया समय के प्रवाह के साथ व्यवस्थाएं बदलती रहीं लेकिन अंग्रेजी शासन के बाद भारत में गणतंत्र प्रणाली शुरू हुई तो महिलाओं को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में सम्माननीय स्थान प्राप्त हैं । शिक्षा के विकास ने नारियों को और जागरूक किया है। भारतीय राजनीति के इतिहास में अहिल्याबाई होलकर , रानी लक्ष्मीबाई , रानी दुर्गावती, विजयालक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू ,कमला नेहरू ,मीराबेन ने शुरू से ही इसमें अहम भूमिका निभाई हैं लेकिन इनकी गिनती नगण्य है।15वीं लोकसभा में भी सिर्फ 59 महिला सांसद बनीं । इसमें 17 महिलाएं 40 वर्ष से कम उम्र की है जो देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखतीं हैं। गणतंत्र व्यवस्था में धीरे-धीरे प्रवेश होने लगा है। जिस में सुधार के लिए महिलाओं ने कमर कसी हैं । सत्ता के विकेंद्रीकरण में पंचायती राज में महिलाओं की अहम भूमिका रही हैं। जगह-जगह महिलाएं अपनी सेवा देकर गणतंत्र को मजबूत बना रहीं हैं। श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति पद को धारण कर पूरी महिलाओं को गौरवान्वित किया। यह लोकतंत्र का सर्वोच्च पद है ।

बहत्तर वे संविधान संशोधन में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रावधान लाया जा रहा था ।यद्यपि यह पूरी तरह कारगर नहीं हुआ है, लेकिन कुछ राज्य में पंचायती राज में महिलाएं 50% तक भी अपनी सहभागिता देकर निरंतर अपनी पकड़ मजबूत बना रहीं हैं। पहले पहले चुनाव में 5% महिलाएं थीं ।वर्तमान में 14.3% महिलाएं हैं ,यद्यपि अभी यह विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। इसका कारण है महिलाओं को नीति निर्धारण में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता हैं ।निरक्षरता ,कार्य और परिवार का दायित्व पुरुषों की तुलना में महिलाओं को परिवार में अधिक समय देना पड़ता है । राजनीतिक नीति निर्धारण में महिलाओं की रुचि भी थोड़ी कम है । इसी कारण महिलाएं कम ही राजनीति में आ आतीं हैं। विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का आधार ना केवल आरक्षण होना चाहिए बल्कि इसके पीछे पहुंचे और अवसर तथा संसाधनों का समान वितरण भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। लैंगिक समानता का माहौल होना चाहिए इस तरह हम नए गणतंत्र में अधिक से अधिक महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित कर पाएंगे और आधी आबादी अपना प्रतिनिधित्व स्वयं कर पाएगीं।

डॉ अनिता शर्मा
साहित्यकार एवं शिक्षाविद
जमशेदपुर, झारखंड

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