चुनौतियाँ हमसे बड़ी नहीं

चुनौतियाँ हमसे बड़ी नहीं

मैं पुष्पांजलि मिश्रा जीवन के चार दशक पार करने के बाद जब अपने जीवन के बारे में सोचती हूँ तो इसे ईश्वर की कृपा मानती हूँ और भविष्य के लिए आशावादी हूँ ।ईश कृपा, माता-पिता व गुरु जनों का आशीष, अपनों के प्यार से सजे, नकारात्मकता और निराशा से दूर अपने इस जीवन को और बेहतर जीने के लिए संकल्परत हूँ ।
वन एवं खनिज संपदा से सम्पन्न झारखंड राज्य की राजधानी राँची में 9 अक्टूबर 1977 को पिता श्री देवेन्द्र ठाकुर एवं माता श्रीमती इंदिरा ठाकुर की दूसरी संतान के रूप में मेरा जन्म हुआ ।मुझसे बड़ा एक भाई तथा दो छोटी बहनें हैं ।मेरे पिता एक व्यवसायी तथा माता कुशल गृहिणी रहीं हैं ।


मेरे पिता एक बेहतरीन इंसान हैं ।उम्दा सोच, अच्छा स्वभाव व दूसरों की मदद करना उनकी खासियत है ।मैंने उन्हें परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए देखा है ।वे हमारे शिक्षक भी हैं ।नम्र स्वभाव व डाँट डपट ज्यादा न करने के कारण हम चारों भाई-बहन पिता के नजदीक रहे हैं ।

मेरी माँ एक कुशल गृहिणी हैं ।वे स्वभाव से शांत, धैर्यवान ,संघर्षशील तथा बहादुर हैं ।कठिन परिस्थितियों में भी विचलित होते हमने उन्हें कभी नहीं देखा ।पिता के साथ हर समय मज़बूती से खड़े होकर उन्होंने हम चारों भाई-बहनों के जीवन को दिशा दी ।विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद का दामन थामे बढ़ना हमने माँ से ही सीखा है ।

अनुशासनप्रिय व समय की पाबंद माँ के कारण घर में सब कुछ व्यवस्थित ढ़ंग से होता था ।
राँची के संत अन्ना कान्वेंट से मैंने दसवीं तक की पढ़ाई की ।बचपन से ही मैं चंचल, शरारती तथा बहादुर हूँ ।स्कूल के दिनों से ही स्पष्टतः सीधे सीधे अपनी बात कहना मेरे स्वभाव में रहा है ।गलत परंपराओं तथा मान्यताओं के विरूद्ध हूँ व खुलकर उनका विरोध करती हूँ ।इसी कारण उन दिनों मेरी सहेलियाँ मुझे हँस कर कभी-कभी ‘ झांसी की रानी ‘भी कहती थीं ।मेरे हिंदी शिक्षक श्री महेन्द्र मिश्रा के मार्गदर्शन के कारण हिंदी के प्रति मेरा लगाव दिनों दिन बढ़ता गया साक्षरता गतिविधियों में विशेष रूचि के कारण स्कूल के दिनों से ही विभिन्न निबंध, भाषण ,वाद विवाद आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेकर जीतती रही।विद्यालय में सर्वोत्तम गाइड चुनी गई तथा राष्ट्रपति गाइड भी बनी ।काॅलेज में भी ऐसा ही चलता रहा ।मेरी कुछ रचनाएँ अखबारों में भी छपीं ।भाषण, कार्यक्रम के आयोजन व स॔चालन आदि में बढ़ चढ़ कर भाग लेती रही ।इस तरह राँची महिला महाविद्यालय से स्नातक किया ।उसके बाद इतिहास व हिन्दी से एम. ए .तथा बी. एड. की पढ़ाई की ।बी एड की पढ़ाई में मुझसे छोटी बहन गीतांजलि का भी खास सहयोग रहा ,अन्यथा नन्ही सी बेटी को लेकर वह बहुत मुश्किल होता ।वर्तमान में शिक्षा विषय से इग्नू से एम. ए. कर रही हूँ । अध्ययन व अध्यापन में रूचि के कारण हिंदी शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूँ ।

 


स्नातक के बाद वर्ष 1999 में एक उच्च शिक्षित बिजनेसमैन श्री प्रकाश मिश्रा से मेरा विवाह हुआ ।शिक्षा से लगाव के कारण आगे की पढ़ाई में उन्होंने मेरी मदद की ।पुस्तक खरीदना व पढ़ना उनके शौक में शामिल है ।अपने दोनों बच्चों को वे स्वयं पढ़ाते हैं ।
मैं एक पुत्री तथा एक पुत्र की माँ हूँ ।अपने चंचल ,शरारती ,बहादुर व मेहनती बच्चों को देखकर स्वयं के बचपन का अनुमान लगाना सुखद एहसास देता है ।बारहवीं में पढ़ने वाली बेटी का पढ़ाई तथा सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले बेटे का खेल के प्रति ज़्यादा झुकाव है ।दोनों प्यारे बच्चों के लिए ईश्वर को तहे दिल से धन्यवाद देती हूँ । उनकी कृपा मेरे बच्चों पर हमेशा बनी रहे, दोनों अच्छे, सच्चे ,संस्कारी व सफल इंसान बनें, भविष्य में उनके सुयश से मेरी पहचान हो,यही कामना है ।

 

कुछ यादगार पल

विद्यालय में मेरे पापा को मेरे शिक्षक मेरे पिता के रूप में अच्छे से पहचानते थे ।यह बात मेरे पापा को गौरवान्वित करती थी और घर आकर वे सहर्ष इस बात की चर्चा करते थे ।अब अपने दोनों बच्चों के स्कूल जाने पर जब उनके शिक्षक हमारे बच्चों के नाम से हमें वैसे ही पहचान लेते हैं, तब मैं अपने पापा की खुशी और भावनाओं को महसूस कर पाती हूँ ।

मुझे आज भी वैसे ही याद है वर्ष 1998 ,जब मैं स्नातक तृतीय वर्ष में थी और मेरे कॉलेज में युवा महोत्सव मनाया गया था ।उसमें पाँच साक्षरता गतिविधियाँ थीं और पाँचों में मुझे पुरस्कार मिला था तथा सर्वश्रेष्ठ साक्षरता गतिविधियों के लिए विशेष रूप से मुझे चुना गया था ।
इण्टर में पढ़ने के दरम्यान महात्मा गाँधी की 125 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में एम ए तक की सीनियर के बीच प्रथम पुरस्कार तथा बेस्ट स्पीकर के टाइटल को पाने की याद आज भी रोमांचित करती है ।वर्तमान में बेटी में भी पुनः वही रूचि, जोश ,उर्जा व जुनून देखना सुकून देता है ।अपनी बेटी को स्वयं से आगे देखना और उसपर यह कमेन्ट कि ‘माँ की बेटी है ‘भावविभोर कर देता है ।

2018 में विद्यालय में मनाया गया सिल्वर जुबली कार्यक्रम ,अपने शिक्षकों तथा पुराने दोस्तों से मिलना, यादें ताज़ा करना, हमेशा के लिए अविस्मरणीय पल के रूप में ह्रदय पटल पर अंकित हो गया ।शिक्षकों का साथ पाकर यह फिर से विद्यार्थी बन जाने सा अनुभव रहा ।दसवीं के फेयरवेल के समय स्कूल में मिला टाइटल आज भी मुझमें नयी उर्जा का संचार करता है–

धीरे धीरे चलते चलते ,
पहुँचो तुम ऊँचाई पर ।
आँधी आए तूफाँ आए ,
डटे रहो सच्चाई पर ।।’

साहित्य (मुख्यतः गद्य) में रूचि के कारण साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हूँ ।कविता व कहानी लेखन हेतु प्रयासरत हूँ । एकल परिवार में बच्चों की जिम्मेदारी के कारण ये सब पीछे छूट गया था, अब पुनः उन्हें समेट कर फिर से इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हूँ ।मेंरे जीवन पर मेरे तीन शिक्षकों श्रीमती जूही समर्पिता, श्रीमती मीना आज़ाद एवं श्री महेन्द्र मिश्रा का विशेष प्रभाव रहा है ।ईश्वर की कृपा, माँ -पापा, माँजी-बाबूजी व गुरूजनों के आशीष तथा मार्गदर्शन ,भाई-बहन व पति के सहयोग से यहाँ तक पहुँची हूँ ।इन सबको आभार ।

मंजिल अभी दूर है, रास्ता बहुत बाकी है,
इस रास्ते पर हौसला मेरा साथी है ।
हार न मानना, मेरे स्वभाव में है ।
अभी तो धरा है पग इस क्षेत्र में,
कार्य अभी बहुत बाकी है ।
अनवरत प्रयास से मंजिल मिलेगी ,
आत्मविश्वास, धैर्य और परिश्रम मेरे साथी हैं ।

मेरा मानना है—

अगर मन में ठान ले इंसान,
तो सब हो जाता है आसान ।

पुष्पांजलि मिश्रा
शिक्षिका

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