” कोरोना महामारी “
है
डरा
संसार
महामारी
कहे कोरोना
निकृष्ट उपाय
खोजे टीका विज्ञान
है
मुँह
ढ़कना
दूरी रख
सुरक्षा कर
स्वयं परिजन
शत्रु बना कोरोना
है
रोग
विकट
संक्रमण
ज्वर खाँसते
हाँफते विकल
कोरोना सावधान
है
विश्व
चिंतित
कैसे करें
रक्षा इससे
मानव जीवन
हताशा ये कोरोना
है
कर्म
सेवा ही
चिकित्सक
जुझ हैं रहे
दिनरात एक
बचाने कोरोना से
हे
मनु
संतान
नमन हो
कर्म धर्म को
कोरोना से बचे
रह के आप घर
है
मूल्य
बदला
सोच ऐसी
भय या जीत
शैली जीवन की
कोरोना का प्रकोप
है
मन
मंथन
नियति ये
समझे हम
कोरोना का सीख
स्थिर नहीं समय
ये
सच
अटल
सदा रहा
परिवर्तन
युग सा कोरोना
विपत्ति भय ऐसा
हे
देवी
दीजिए
कृपा दान
करिये संहार
शत्रु सा कोरोना
जो
लौटे
जीवन
खिले स्वप्न
जाये कोरोना
खिलखिलाये
सुख मिले सदियों !
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड