कैसे कहूं चहूं दिशा में गुणगान करु
ममता तेरी भावों में मैं बांध नहीं पाती
मां तुम मेरे लिए क्या हो कैसे बतलाऊ
चाहकर भी मै शब्दों में ढाल नहीं पाती
समय चक्र पर बैठे देखा है हरदम तुमको
सबकी खुशियों को गढकर प्रेम ही भरते देखा
खुद को मिटाकर हमे कामयाब बनाने
जुनून तेरी आंखों में हरपल तैरता देखा
तुम जैसा जग में कोई दूसरा ना ढूंढ पाती हूं
वाटिका के सुमन विकसित करने को आतुर
सुरभि में जन जन के मन जीतने की खातिर
स्नेह सेवा में तुमने किया सब कुछ सर्मपण
न रखा खुद को शेष मिटा दिया आकर्षण
तुझ जैसा जगभर में दूजा कमाल नहीं पाती हूं
प्रतिक्षण प्रगतिपथ पर अनवरत बढ चले हम
तुम्ही मेरे सपनों की आशा तुम्हीं मेरी प्रतिमा
तुम्हारी हथेलियों के पवित्र छुअन को महसूस कर
चिंता मनन की सभी लकीरें मिट जाती है
कठिन चुनौती में मां तुमसा कोई ढाल नहीं पाती हूं
चढ़ते तेरे आंखों पर मोटे सुनहरे चश्में के अंदर
आंखो में समाहित चमक कम नहीं पाती हूं
तू विभिन्न मौसम के रंगों में घुल घुलकर
मौन मुस्कान की आशा बनकर झर जाती हूं
तेरे इस आशिर्वाद की पूंजी को संभाल नहीं पाती हूं
शोभा गोयल
जयपुर