औरत ,औरत की दुश्मन

प्रायः यह जुमला सुनने को मिल ही जाता है जब कभी किसी औरत को दूसरी औरत द्वारा प्रताड़ित या परेशान किया जाता है।
काफ़ी लोगों का यह मानना है कि अधिकतर औरत ही औरत की परेशानी का कारण होती है। यदि हम आस – पास नज़र डालें और औरतों के प्रति हो रहे अपराधों के तह में जाएं तो पाएंगे कि कहीं न कहीं किसी औरत की संलिप्तता रहती ही है ।
औरतों के प्रति होने वाले मुख्य अपराध हैं – बलात्कार , यौन उत्पीड़न, दहेज , बाल विवाह, घरेलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या एवं लड़कियों का व्यापार या तस्करी।
एक – एक कर विवेचना करने के क्रम में   सबसे घृणित अपराध बलात्कार की बात करें तो हम पाएँगे कि इसके पीछे की मानसिकता में हमारे समाज के विकृत ताने बाने का प्रभाव है जहाँ लड़कों के प्रति उदार रवैये ने उन्हें उच्छृंखल ही नहीं औरतों के प्रति दमनकारी भी बना दिया है । अपने चारों ओर नज़र डालें तो लड़का और लड़की के प्रति भेदभाव घर मे माँ ही सबसे अधिक करती है और जहाँ लड़कों के लिये हर गलती माफ़ और उन्हें काफी हक़ प्राप्त है, वहीं लड़कियों के लिये पाबंदियां और दूसरे आचार और नियम हैं। ये बात अलग है कि धीरे धीरे समाज के दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है किंतु  मूलभूत समस्या घर में माँ, दादी के द्वारा किया जाने एएल भेद भाव भी मुख्य कारण है।कई बार महिलाओं में क्षमता होते हुए भी परिवार द्वारा पर्याप्त अवसर नहीं दिये जाने की कुंठा एवं हीं भावना भी महिलाओं में कई प्रकार की नकारात्मक भावनाएं भर देती हैं और वे भी अवसर मिलते ही अपनी उन अव्यक्त कुंठाओं के कारण अन्य महिला से नकारात्मक एवं आपराधिक व्यवहार कर बैठती हैं।

किसी भी बच्ची या लड़की के यौन उत्पीड़न या शोषण का शिकार होने पर घर की महिलाएं ही इस बात को छिपाने पर ज़ोर देती हैं जिससे समाज मे बदनामी नहीं हो जाए। औरतों की मनसिकता की इस कमज़ोरी की वजह से उत्पीड़क का मनोबल बढ़ जाता है और वे आगे भी ऐसी हरकत करते रहते हैं।
यदि घरेलू हिंसा और दहेज की बात करें तो यहां भी ज्यादातर सास, ननद, जिठानी जैसे रिश्तेदारों की संलिप्तता रहती है।  गहने, सामान के लालचऔर सामाजिक प्रतिष्ठा के चक्कर में वे भी नई बहू से दहेज की अपेक्षा करती हैं और मार पीट और प्रताड़ना में शामिल रहती हैं।
उसी प्रकार लड़कों की चाहत में कन्या भ्रूण हत्या में भी प्रायः घर की बुजुर्ग महिलाएँ, सास वगैरह का हाथ होता है। सबसे दुखद ये है कि एक माँ भी खुद बेटी को जन्म देना नहीं चाहती क्योकि बेटे के जन्म से उसे एक सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है।
जहाँ तक लड़कियों के तस्करी का सवाल है, उस खरीद फरोख्त में, साजिश में महिलाओं की कहीं न कहीं संलिप्तता होती ही है।
ये दुखद है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं ही जाने अनजाने महिलाओ के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखती हैं और यह महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में इजाफा करता है  भले ही इसके पीछे भी औरतों के मन मे सदियों से बैठी असुरक्षा की भावना हो या औरतों में पाई जाने वाली सहज ईर्ष्या की प्रव्रित्ति  किन्तु महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के आंकड़े तो यही बताते हैं कि उसमें किसी अन्य महिला जा भी हाथ होता है।
आवश्यकता है कि महिलाएं आत्ममंथन करें कि ऐसी कौन सी कमज़ोरी या कारण है जिसके चलते महिलाओं को भी अपराध मे शामिल होती जा रही हैं।उन्हें अपने मन मे छिपे भय, असुरक्षा की भावना , ईर्ष्या और  लालच से मुक्ति पानी होगी। शिक्षा एवं आत्मनिर्भरता से ही मानसिकता में सुधार ला सकते हैं।

Post by Nidhi Srivastava

0
0 0 votes
Article Rating
8 Comments
Inline Feedbacks
View all comments