सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना

माता सरस्वती ऐसा तू वर दे
अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे

पाप इस धरा पर
बहुत बढ़ गया है
मनुज ही मनुज का
रिपु बन गया है

भटके हुए राही के पथ
आलोकित कर दे
अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे

चाहत है कइयों की पर
पढ़ नही पाते
निर्धनता राह में उनके
रोड़ा अटकाते

अज्ञानता का अंधियारा हर ले
अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे

सत्य और प्रेम ही मैं
सदा लिख पाऊँ
अन्याय के खिलाफ
आवाज उठाऊँ

लेखनी में मेरी तू
ऐसी स्याह भर दे
अंतर्तम सबका ज्योतिर्मय कर दे

सुस्मिता मिश्रा
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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