अपनी बात

अपनी बात

मन के दरवाजों पर मेरे सपनो की पहली दस्तक थीं मेरी कवितायेँ ..न जाने कहाँ कहाँ ,किन अनजानी गलियों से गुजर कर जीवन की यात्रा तय करती रहीं मेरे साथ साथ ….उम्र के पड़ावों को पार करती ,संघर्षों के शैल शिखरों को विजित करती …वे पलती रहीं मेरे अंतर्मन की गहराईयों में …पर लक्ष्य को नहीं भूलीं ..मेरी कहानियों जिन्दगी के आसपास साँसें लेती हैं. जीवन के सुख,दुःख, हर्ष विषाद प्रेम की सुन्दरतम अनुभूतियों का दर्पण बन समाज को सच दिखाना ही उनकी सार्थक अभिव्यक्ति है, भटके हुए कदमों को उनके सपनों की राह तक पहुंचाना ,और संवेदना के एक नए क्षितिज का निर्माण करना मेरी कहानियों की सृजन यात्रा का पाथेय है.मेरे शब्दों .भावनाओं ,संवेदनाओं और सृजन की सुन्दरतम अनुभूतियों के लिए मुझे मेरे पाठकों,गुरूजनो का आशीर्वाद भी भरपूर मिला,,,,

 

स्वतंत्रता सेनानी दादाजी की प्रिय पौत्री ,जिनसे बचपन में ही देशभक्ति का पहला पाठ सीखा -और ‘अपनी पहली बाल रचना ”हम भारत के बच्चे हैं ,अपने प्रण के सच्चे हैं ” धर्मयुगमें प्रकाशित देख कर भाव बिभोर , बड़े ही मनोयोग से पिताजी की डायरी में छुपाकर कवितायेँ लिखती –प्राध्यापक एवं स्वयं साहित्यकार पिता (डॉ मणीन्द्र नाथ पाण्डेय ) ने उत्साहवर्धन किया। पिता की प्रेरणा,स्नेह और वात्सल्य निरंतर मेरा मार्गदर्शन करता रहा।

यह तुम्हारा स्नेह ही तो था,
जो संघर्षों के जंगल में,
किसी बासंती बयार की तरह,
सहलाता रहा मेरे शूल चुभे पांवों को.
फूलों की सेज न सही,
हरियाली तो थी मेरे सामने ..
खुले आकाश की तरह.
कुछ सपने थे इन्द्रधनुषी, ..
कल्पना के पंखों पर तैरते हुए..
किसी अज्ञात मंजिल की तलाश में-
यह तुम्हारा स्नेह ही तो था-
जिसने मेरे थके पांवों को एक दिशा दी,

 

फिर कविताओं और कहानियों के बीज पुष्पि पल्लवित होने लगे ,स्कूल के समारोहों से लेकर सार्वजानिक मंचों से काव्य पाठ कर और पुरस्कृत होते हुए मेरा उत्साह बढ़ता गया ,मेरी सहेलियां ,अध्यापिकाएं सभी महादेवी वर्मा कह कर बुलातीं और मै खुद को महादेवी ही समझती ..आज यह सोच कर भी हंसी आती है, पर वह तो बचपन का उत्साह था। के पुस्तकालय में अनेक साहित्यकारों की पुस्तकें थीं, प्रेमचंद,रेणु, महादेवी वर्मा,प्रसाद, पंत,निराला,भगवती चरण वर्मा, वृंदावन लाल वर्मा आदि को भी पढ़ा,, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित मुझे शिवानी और प्रेमचंद ने किया ,शिवानी की कहानियों ने जहां मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी,चौदह फेरे,सुरगमा,कैजा,मझली दीदी, कहानियां वर्षो तक याद रहीं,, वहीं प्रेमचंद के उपन्यासों ने पाठकों के हृदय तक पहुंच पाने की कला सिखाई,,गबन,गोदान,कर्मभूमि, रंगभूमि,निर्मला, और उनकी कालजयी कहानियों”कफन, ईदगाह,पच परमेश्वर,तो आज भी मन को उद्वेलित करती है,,यद्यपि अपनी किशोरावस्था में उन की वैचारिक गंभीरता को भले ही न समझ पाई थी लेकिन नियमित अध्ययन ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है,,उस समय कानपुर से प्रकाशित दैनिक जागरण में मेरी कहानियां और कविताएं छपने लगी थीं,,साथ ही विद्यालय , और महाविद्यालय की पत्रिकाओं में भी ,सोलह वर्ष की उम्र में विवाहोपरांत जमशेदपुर में आकर मेरी कविताओं को एक पहचान मिली, हिंदुस्तान में मंधान जी ने पहला अवसर दिया ,और हिंदुस्तान से लेकर ”जटायु” तक लगातार मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुईं ,उन्ही के सौजन्य से –”अक्षरकुम्भ” और ”सहयोग” से जुड़ कर मै विधिवत कवयित्री और कथाकार के रूप में जानी गई।

 

माँ मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं ..सुख दुःख हर्ष विषाद के पलों में एक मार्गदर्शक -गुरु की भूमिका निभाती थीं, मेरे आंसुओं ,मेरी पीड़ा को अपने आंचल में समेट लेतीं , एक किशोरी से जिम्मेदार गृहिणी , और साहित्य्नुरागी बनने तक के सफ़र में पल पल मेरा साथ निभाती रहीं ।माँ का असमय चले जाना आज भी कचोटता है मुझे, उनके निधन के बाद लिखी कविता,

मैं छूना चाहती हूँ तुम्हारा आँचल,
देखना चाहती हूँ -वो ममता भरी आँखें..
समेटना चाहती हूँ -तुम्हारी मुस्कान,
सुनो माँ!…कहीं जाना नहीं,
बस यूँ ही रहो मेरे आसपास,
अहसास बनकर-
मेरा साथ और विश्वास बनकर,
…हमेशा!,,,

उसके बाद भी जिंदगी रुकी नहीं,नियति अपना खेल दिखाती रही,, पिताजी भी चले गए और छोटी बहन भी,, एक नितांत अकेलेपन से गुजरना पड़ा, परंतु मेरी कलम ने मेरा साथ नही छोड़ा,, मेरे विषाद में मित्र बन चलती रही मेरे साथ साथ,

साहित्यिक यात्रा

मेरी साहित्यिक यात्रा में डॉ जूही समर्पिता ,जो हमेशा मेरे साथ मानसिक प्रेरणा बन खड़ी रहीं, ,सुधा दी,मेरे पितृ तुल्य -डॉ बच्चन पाठक ‘सलिल’ जी एवं डॉ सत्यदेव ओझा जी ,डा नरेंद्र कोहली का स्नेह व् मार्गदर्शन मिला, इस बीच डॉ शांति सुमन ,डॉ अरुण सज्जन ,डॉ सी भास्कर राव , डॉ साहा ,रेनुश्री अस्थाना,अशोक प्रियदर्शी ,डॉ हरी प्रकाश ”वत्स” जी आदि के सान्निध्य का अवसर भी प्राप्त हुआ ,मै उन सभी की अत्यंत आभारी हूँ । संप्रति अर्पणा संत सिंह और गृहस्वामिनी पत्रिका का भी योगदान मानती हूं, जिसके माध्यम से मुझे अपनी बात कहने का अवसर मिला ,आभार आप सभी का,स्नेहाशीष की कामना में—-

सृजित संग्रह

प्रकाशित–, साहित्यअमृत,धर्मयुग, कादम्बिनी, परिकथा, वर्तमान साहित्य,सेतु,नव्या,जटायु,स्वर मंजरी झारखंड प्रदीप, प्रभात खबर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर,आदि अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय,राष्ट्रीय,पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
आकाश वाणी से नियमित रचनाओं का प्रसारण
पुस्तकें प्रकाशित–कहानी संग्रह सांझ का सूरज, कविता संग्रह–सपनों के वातायन
बालकाव्य संग्रह–नन्हे सपने
उपन्यास–चंदन माटी
अन्य पुस्तकें सृजन रत,,(प्रकाशन की प्रतीक्षा में )

सम्मान एवं पुरस्कार

बाल साहित्य परिषद द्वारा “जयप्रकाश भारती” सम्मान
डॉ नरेंद्र कोहली द्वारा प्रदत्त–“अक्षर कुंभ अभिनंदन” सम्मान,
रांची की साहित्यिक संस्था ने “किशोरी देवी साहित्य सम्मान” प्रदान किया,
अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक संस्था”विश्व हिंदी संस्थान कनाडा के द्वारा ” विश्व हिंदी कथा शिल्पी ” सम्मान प्रदान किया गया,

पद्मा मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर
email-padmasahyog@gmail.com

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