लॉकडाउन
‘कैद में है बुलबुल सय्याद मुस्कुराय’
कोरोना जनित लॉकडाउन में कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है।आज आवश्यक है कि कोरोना जनित लॉकडाउन पर विचार हो ।यह सामयिक है और हम उसमें से होकर
गुजर भी रहे हैं।कोरोना के आतंक से भयभीत तो हैं ही बचाव के लिए कमर भी कसे हुए हैं।
लॉकडाउन ने पूरा का पूरा मंजर ही बदल कर रख दिया है। समय की कमी की कितनी शिकायत रहती थी अब समय है कि काटें नहीं कट रहा हैं।पर कहते हैं न कि हर समस्या का समाधान होता ही है। सबने इसके भी विकल्प खोज लिए हैं अपनी अपनी तरह से। किताबों की धूल झाड़ कर उन्हें पढ़ा जा रहा है कुछ नया गढ़ा भी जा रहा है।रचनात्मक कार्य बहुत हो रहे हैं।नई नई चीजों को सीखने में समय का सदुपयोग हो रहा है।कुछ परिवार संग आनन्द मग्न हैं और रिश्तों को सहेजने,समझने में लगे हैं।कुछ सपनों के पुनर्निर्माण में जुटे हैं।स्वास्थ्य के प्रति भी लोग सजग हुए हैं।व्यायाम आदि कर स्वयं को फिट रखने की कोशिश कर रहे हैं।घरों में रहकर शुद्ध सात्विक भोजन कर रहे हैं।
लॉकडाउन ने महिलाओं के कार्यभार में इजाफा कर दिया है। बच्चों के स्कूल न जाने और बड़ों के कार्य स्थल पर न जाने की वजह से काम बढ़ गया है। सहायिकाओं की मदद भी नहीं मिल रही है । विकट समय में महिलाएँ परिजनों के साथ मिलकर सारा कार्य खुशी खुशी संभाल रही हैं।
सरकार कोरोना वायरस से बचाने के लिए कटिबद्ध है।राज्य में रह रहें लोगों के साथ साथ दूसरें राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों की चिंता भी है।उन मजदूरों के वापस लौटने के बाद उन के स्वास्थ्य की जांच करना और उन्हें रोजगार देना सबसे बड़ी चुनौती है।जो प्रतिदिन कमा के खाने वाले हैं उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई है।वे अपनी व अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए प्रशासनऔर स्वयंसेवी संस्थाओं पर निर्भर हैं।वे जो अपनी जीविका के लिए घर परिवार से दूर बसे हैं प्रशासन से सहायता मिलने के बावजूद दयनीय हालत में हैं।ईश्वर ही उनका मालिक है।
कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के वजह से हम अपने घरों में कैद हो गए हैं।इस दौर में लोगों को हो रही परेशानी और अर्थ व्यवस्था को लगे झटके के बीच कुछ सकारात्मक भी सामने आया है वह है साफ होती हुई हवा। वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में कमी आई है।प्रदूषण में यह गिरावट यातायात, निर्माण कार्यों ,उद्योग और ईंट भट्ठों के काम के रूकने की वजह से आई है।
यातायात में कमी के कारण रोड एक्सीडेंट कम हो रहे
हैं। वातावरण सुन्दर एवं स्वच्छ लग रहा है ।चिडि़यों की चहचहाहट जो गुम हो गई थी फिर सुनाई देने लगी है।नदियां स्वच्छ हो गई हैं।अन्न व अन्य वस्तुओं का महत्व लोग समझ रह रहे हैं व अपव्यय कम कर रहे हैं।
संकट के इस दौर मेंं हमें डॉक्टरों, नर्सों और अस्पताल के स्टाफ का आभारी होना चाहिए जो अपनी जान पर खेल कर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हमें सफाई कर्मियों, पत्रकारों ,अखबार वितरकों ,पुलिस विभाग, दूधवालों आदि के प्रति भी अपना आभार प्रकट करना चाहिए जिनके कारण हम अपने घर में सुरक्षित हैं।
महामारी के समय आवश्यक है कि हम लॉकडाउन के नियमों का सावधानी पूर्वक पालन करें।मानव जीवन को बचाने के लिए यह बेहद जरूरी है। कभी कभी जाने अनजाने में हम मनमानी पर उतर आते हैं तो कभी कभी निर्दोष व्यक्ति भी पुलिस की ज्यादतियों का शिकार हो जाता है। दोनों में संतुलन होना बहुत जरूरी है।आज मौत का साया हम सबपर मंडरा रहा है।कोरोना संकट से उबरने के लिए सभी संभावित प्रयास कर रहे हैं।हो सकता है यह संकट हमें आगे की रणनीति तय करने में मदद करें।
कोरोना वायरस से उपजी परस्थितियों ने हमारे सामाजिक तानेबाने को बदल कर रख दिया है। यह महामारी केवल शरीर को ही नष्ट नहीं कर रही बल्कि सामाजिकता के मूल सिद्धांत को भी समाप्त कर रही है।अब अतिथि देवोभव की भावना उतनी प्रभावशाली नहीं रह पाएगी।वैवाहिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में मास्क एवं सेनेटराइज की व्यवस्था करना शायद जरूरी होगा।सामाजिक दूरी मेन्टेन करने के साथ साथ हो सकता है कोरोना रहित मेडिकल प्रमाण पत्र भी साथ रखना पड़े।कोरोना जनित लॉकडाउन के कारण आज हम जिस शांतिपूर्ण वातावरण में रह रहे हैं हमें अपने जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने ही होंगे।जीवन यापन का तरीका बदलना होगा।यह तो बाद की बात है वर्तमान में कोरोना जैसी घातक बीमारी से बचने के लिए लॉकडाउन ही सबसे सुरक्षित तरीका है जिसका हमें अनुशासित ढंग से पालन करना चाहिए। यह भी तय है कि लॉकडाउन के पश्चात हमारा जीवन पहले जैसा तो नहीं ही रहेगा।
आनंदबाला शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड