मैं तेरी परछाई सब कहते हैं।
मैं तेरी ही परछाई हूं मेरी माँ! ऐसा सब कहते हैं
पर यह कैसे संभव है माँ!
मैं तेरी परछाई,
कैसे हो सकती हूँ माँ ?
बिना पलक झपकाए,
जग कर सारी सारी रातें,
मैं ने कभी तुम्हारी सेवा की है
क्या माँ ?
नहीं ना?
फिर मैं तेरी परछाई कैसे माँ ? खुद भूखे प्यासे रहकर अनगिनत उपवास रखकर,
कभी तुम्हारे लंबी आयु की,
मन्नतें मांगी है माँ?
नहीं ना?
फिर मैं तेरी परछाई,
कैसे माँ ?
फटी खूँट मे,जोगाकर पैसे,
मैं ने कभी तुम्हारे लिए,
बनारसी साड़ी खरीदा है माँ ?
नहीं ना ?
फिर मैं तेरी परछाई,कैसे माँ? लड़ कर के, या फिर अडिग रह के काट बेड़ी बिवशता की,
मैं ने कभी,आजादी व आत्मविश्वास के, पंख
तुम्हे दिलाया है माँ ?
नहीं ना?
फिर मैं तेरी परछाई,कैसे माँ? खून पसीने के गारे से,
तुमने बनाया मेरा स्वीट होम, मैंअबतक बंद करा पाई हूँ क्या?
कोई भी एक ओल्ड एज होम
नहीं नहीं ना माँ ?
फिर मैं तेरी परछाई कैसे माँ ?
कुमुद “अनुन्जया”