मेरी कहानी

मेरी कहानी

शाम का धुंधलका और एक सोलह साल की लड़की अपनी किताबों की दुनिया में खोई अपने को रानी झाँसी समझ रही थी तभी उसके कानों में पिता के शब्द पड़े जो माँ से कह रहे थे की ऐसा रिश्ता जल्दी नहीं मिलेगा ।माँ का जवाब था अरे अभी वो छोटी हैं और फिर मेडिकल में भी उसका सिलेक्शन हो गया है ।डॉक्टर बनना चाहती है वो ।पिता ने कहा जानती नहीं हो क्या मेरी परिस्थिति ? चार चार लड़कियां हैं एक एक को पर नहीं करूँगा तो सारी बेटियां कैसे निकल पाएंगी ।डॉक्टरी की पढाई का खर्चा उठाना मेरे बस की बात नहीं है उतने में तो अच्छे से इसकी शादी हो जाएगी माँ चुप रही और उनके जवाब की बात जोहता मन निराश हो गया ।उस लड़की को कानपूर ले जाने की तैयारी हुई जहाँ उसे ससुराल वाले देखने वाले थे ।लड़की गयी और वो नाजुक सी कोमल काली पहली ही नज़र में पसंद कर ली गयी ,उसकी आशाओं पर तुषारापात करते हुए जो सोच रही थी की मैं नापसंद कर दी जाऊँ। आखिर मन में डॉक्टर बनाने का सपना संजोये वो ससुराल के लिए विदा हुई लेकिन उसने एक ही शर्त अपने पिता के सामने रखी की उसकी पढाई नहीं छुड़ाई जाएगी । पिता ने ये बात ससुराल वालों से कही की मेरी बेटी आगे पढाई जारी रखना चाहती है और ससुर जी की तरफ से उसे अभयदान मिला की वह अपनी शिक्षा जारी रखे और उसे मायके में रहने की अनुमति भी मिली ताकि साइंस की वह छात्रा अपने ग्रेजुएशन को पूरा कर सके ।और इस तरह उसकी पढाई शुरू हो गयी ।लेकिन बीच में एक बड़ी बाधा आई ।पति देव अपनी नयी ब्याही पत्नी से दूर नहीं रह पाए और घर पर न बता कर क्रिकेट टूर्नाममेंट के बहाने ससुराल आने लगे ।और फलस्वरूप एक नए प्राणी के आने की संभावना हो गयी ।लड़की घबरा उठी रोने लगी ।लेकिन इस समय माँ ने पूरा सहारा दिया ।

डॉक्टर ने कहा की उम्र छोटी होने की वजह से बच्चे का आगमन होना ही सही रहेगा ।तो पेट में धड़कते उस नन्हे प्राणी को लेकर वो छोटी सी लड़की कॉलेज जाती ।यहाँ पर उसकी प्रोफेसर्स ने उसकी बहुत मदद की ।तीन साल में दो बच्चों की माँ बन कर और ग्रेजुएट बन कर उस लड़की ने ससुराल में अपनी गृहस्थी चलाने के लिए कदम रखा ।

लेकिन कहीं न कहीं मन में और उच्च शिक्षा पाने का सपना पलता ही रहा ।तीसरे बच्चे के बाद उसने एम ए इंग्लिश में दाखला ले लिया ।इधर काफी दिनों से उसे इंग्लिश लिटरेचर में रस आने लगा था और इसी विधा में आगे बढ़ने की उसने ठानी ।पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उसके मन में डॉक्टरेट करने का विचार आया और आखिर बहुत सालों की जद्दो जहद के बाद उसने पीएचडी की डिग्री हासिल की और आखिर ४२ वर्ष की उम्र में उसका डॉक्टर बनने का सपना पूरा हुआ डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर। वो लड़की और कोई नहीं मैं ही हूँ डॉ कनक लता तिवारी ।१७ वर्ष की नाजुक उम्र में माँ बनने वाली मैं ४२ की उम्र में अपने करियर के पायदानों पर चढ़ी और बीस साल के सफल टीचिंग करियर के साथ सोमैया महाविद्यालय से सम्मान पूर्वक रिटायर हुई ।लेखन मैने बहुत पहले ही प्रारम्भ कर दिया था ।१९९८ में मेरा पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ मौन का मुखर जो की स्वयं नीरज जी के हाथों से लोकार्पित हुई और उन्होंने मेरी कविताओं की भरी भूरी प्रंशसा की ।फिर तो लेखन का जैसे प्रवाह चल निकला और नोवेल्स ऑफ़ आर के नारायण एंड थॉमस हार्डी ,ऐलिस वॉकर ए कंपाइलेशन। आत्म कथा जो आत्म कथा नहीं हैं , अनसुलझे प्रश्न कहानी संग्रह अदि प्रकाशित हुए और होते ही जा रहें हैं ।फेमिना ,वामा ,सखी जागरण ,गृहशोभा ,सरिता , मुक्ता ,सरस सलिल ,में मेरी कहानियां प्रकाशित हुई। दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता २००१ में मुझे दो कहानियों पर पुरस्कार मिले ।उन्नाओ में मुझे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्नाओ गौरव पुरस्कार मिला ।कलकत्ता में मुझे साहित्य रचना के लिए ऋषि शंकर दीक्षित पुरस्कार मिला ।मैंने बाल साहित्य में भी लिखा जो की हिंदी के बाल काव्य संग्रह में प्रकाशित हुआ । इंग्लिश की बाल कहानियों का संग्रह पिंटू,स फर्स्ट बाईट अमेज़न पर उपलब्ध है ।

 

अभी मैं नवी मुंबई में एक कॉलम इंग्लिश न्यूज़ पेपर में लिखती हूँ और स्क्रिप्ट राइटिंग पर भी काम कर रही हूँ ।
मुंबई की बात आयी तो जिक्र करना चाहूंगी की उन्नाव से मुंबई का सफर भी घटना क्रम से भरा रहा ।पारिवारिक परिस्थितियों के चलते परिवार सहित मुंबई आना पड़ा और सही मानों में मुंबई ने मेरे व्यक्तित्व के नए आयाम खोले और मेरा संपूर्ण विकास वहीँ हुआ । शुरू शुरू में लम्बा समय उन्नाओ में बिताने के बाद मुंबई की भाग दौड़ से मैं घबरा उठी ।नाजुक शरीर वहां की लोकल ट्रैन के थपेड़े नहीं सह पा रहा था ।लेकिन मन की लगन ने पाँव रुकने नहीं दिए और फिर तो मैं रुकी ही नहीं ।आगे ही आगे बढ़ती गयी ।संगीत सीखने की अपनी इच्छा का भी यहाँ विस्तार मिला और अब मैं क्लासिकल हिंदुस्तानी संगीत में संगीत विशारद कर रही हूँ ।मेरे अंदर सेवा का संस्कार शुरू से ही था किसी भी जरूरतमंद को देखते ही मैं द्रवित हो उठती थी ।

 

मुंबई आकर मैंने लायंस इंटरनेशनल संस्था की सदस्यता स्वीकार की और तन मन स सेवा कार्यों में जुट गयी। अपने कॉलेज के बच्चों के साथ वर्सोवा बीच की सफाई में हिस्सा लेना ,म्युनिसिपल स्कूलों में सेनेटरी पद वेंडिंग मशीन लगाना ,जरुरत मंद बच्चों की फीस के पैसे भरना ,ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में कंप्यूटर देना ,स्कूल नोट बुक देना अदि तरह के क्षेत्रों में मैंने काम किया और करती ही जा रही हूँ। लायंस इंटरनेशनल की तरफ से मुझे कई अवार्ड मिले जिसमे नारी अश्मिता वुमन ऑफ़ डी ईयर ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है ।मेरी कहानियां नियमित रूप से आल इंडिया रेडियो पाए प्रसारित होती हैं ।कई सामाजिक संस्थाओं ने मेरे योगदान को सम्मानित किया है । शिक्षा के क्षेत्र में साहित्य के क्षेत्र और पत्रकारिता के क्षेत्र में मैंने अपनी पहचान बनाई है माता पिता के दिए हुए उत्तम संस्कार मेरी उन्नति के करक हैं और मैं अपने परिवार की आभारी हूँ खासकर अपने पति की जिन्होंने हर तरस से मेरा साहस बढ़ाया ।

उन्नाव की पावन धरणी ने साहित्यिक संस्कार के जो बीज बोये थे मुंबई में वे संपूर्ण पौधे के रूप में विकसित हुआ हैं ।आज भी ये यात्रा अनवरत जारी है ।

मैं जियूँगी आकाश को अपनी बाँहों में भर कर,
जब तक जियूँगी तैर जाऊंगी गरजते समुद्र की फेनिल तरंगों पर
धरा को भर लूँगी अपनी मुट्ठी में ,
और बंद रखूंगी तब तक
जब तक मिट नहीं जाती सारी विसंगतियां

 

डॉ कनक लता तिवारी
साहित्यकार

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