माँ

माँ

वो मां ही तो है,
जिस ने सबसे पहले , सिखलाया धीरज रखना
सिखलाया बिन व्याकुलता ,
भी संपन हो सकता है हर कार्य।

सिखाया उसी ने, सरलता से जीना
उलझनों के बीच रहकर भी,
जीत हार के संग, समान व्यवहार
का पाठ भी, सबसे पहले उसने ही पढ़ाया।

मन जब दुख से घबरा जाता
मां ने ही बताया था,
दुख के बाद, सुख अवश्य आता है
जीवन तो सुख दुःख का चक्र है।

पलटती हूं अतीत के पन्नों को,
एहसास यही होता है,
पूर्ण समर्पण की प्रतीक, है मां
अपनी सारी इच् छायों को मन में रख,
सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं मां।

आज जब मैं भी मां बन गई हूं,
झल्ला उठती हूं, कभी कभी,
ये कहकर, जीना है मुझे भी अपनी जिंदगी
फिर ये ख्याल आता है,
क्या मां ने कभी ऐसा सोचा नहीं होगा?
सोचा भी होगा तो महसूस नहीं होने दिया हमें।

मां ने शायद इसलिए
आत्म निर्भर, स्वावलंबी बनाया हमें,
उसकी ममता ने ही तो सिखलाया,
अपनी ममत्व का सृजन करना ,
उस मां की प्रार्थना ही तो है,
जो आज भी हर कठिनाई से उबार देती है हमें,
शत शत नमन है हर मां ।

स्मारिका सिन्हा

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