महिला दिवस के बहाने..

महिला दिवस के बहाने..

तू जिन्दगी का कोमल अहसास है,
छुएँ तुझे तो सारा आकाश है,
लगती किसी कविता सी,
मन के बहुत पास
कोई ,अधूरी प्यास हो तुम
घर, अंगना दौड़ती
ममता की छाँव बनी तुम,
माँ हो, प्रिया, बहन, पत्नी, बेटी मेरी,
जिन्दगी के टूटते संबंधों में ,
संजीवनी सी रिश्तों की सांस हो तुम ,
बच्चों की किलकारियों सी,
जोश और उल्लास हो,
नारी तुम केवल ..
सपनों की खोई हुई आस हो.
चाहत तुम, मेरा विश्वास हो ,
तुम दुनिया की भीड़ में भी,
तनहा खड़ी,जीवन की हर जंग में,
विजयिनी सी तुम
प्रेम,नेह, गरिमा का मुखरित मृदु हास हो.

पद्मा मिश्रा
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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